Self Help Groups: सुई-धागे से जिंदगी में खुशियों की तुरपाई, कहलाने जाने लगा अब ये हुनरमंदों का गांव

Self Help Groups बेरोजगारी का दर्द झेल रहे दंपती में हुनर से बदली अपनी व अन्य महिलाओं की तकदीर। ब्लाक फतेहाबाद के गांव भीकनपुर के लक्ष्मी स्वयंसहायता समूह ने कइयों को दिया आजीविका का साधन। स्‍कूल ड्रेस बनाने के भी आर्डर आने लगे।

By Prateek GuptaEdited By: Publish:Mon, 27 Sep 2021 10:29 AM (IST) Updated:Mon, 27 Sep 2021 10:29 AM (IST)
Self Help Groups: सुई-धागे से जिंदगी में खुशियों की तुरपाई, कहलाने जाने लगा अब ये हुनरमंदों का गांव
फतेहाबाद के गांव भीकनपुर मे सिलाई करतीं हुई समूह की महिलाएं। जागरण

आगरा, मुन्नालाल शर्मा। हुनर दहलीज से बाहर निकला तो बरकत की राह खुल गई। बेरोजगारी जिंदगानी की बखिया उधेड़ रही थी तो सुई-धागे से जिंदगी में खुशियों की तुरपाई कर दी। यह कहानी है ब्लाक फतेहाबाद के गांव भीकनपुर के लक्ष्मी स्वयंसहायता समूह की। इन्होंने सुई-धागे को हथियार बना लिया। गांव में बच्चों की स्कूल ड्रेस हो या ग्रामीणों के कपड़ों की सिलाई। इस कारोबार में महिलाएं मिसाल पेश कर रही हैं। भीकमपुर अब हुनरमंदों का गांव कहा जाने लगा है।

ये तीन साल के संघर्ष की कहानी है। कपड़ों की सिलाई करने वाले रामप्रकाश कुशवाहा फतेहाबाद में भाग्य आजमाने पहुंचे थे लेकिन असफलता और तंगी ने दामन न छोड़ा। बच्चों की पढ़ाई तक छूट गई। पत्नी मोहन देवी का 2018 में बनाया गया स्वयंसहायता समूह निष्क्रिय था। गांव की मीरा देवी, राजकुमारी, संगीता आदि के सामने भी जीविका का संकट था। मोहन देवी ने कपड़ों की सिलाई का काम शुरू करने का निर्णय लिया। पति रामप्रकाश ने भी गांव की अन्य महिलाओं को सिलाई सिखाने की ठानी लेकिन सिलाई मशीन खरीदने को रकम नहीं थी। ऐसे में राष्ट्रीय आजीविका मिशन उनका सहारा बना। मिशन से 15 हजार रुपये ऋण लेकर मशीन खरीदी और काम शुरू किया। महिलाएं स्कूल जाकर बच्चों की ड्रेस का आर्डर लेने लगीं। इसके बाद उन्हें अच्छे आर्डर मिलने शुरू हो गई। अब उनकी ड्रेस की जबरदस्त डिमांड है।

आर्डर थमे, लेकिन महिलाएं नहीं

कोरोना काल में जब लोग घरों से से बाहर नहीं निकल रहे थे, तब स्वंयसहायता समूह द्वारा 20 हजार मास्क बनाकर बाजारों में बेचे गए। कुछ पैसे हाथ आए तो समूह ने कटिंग मशीन खरीदकर टी-शर्ट बनाना शुरू कर दिया। आगरा, फीरोजाबाद, धौलपुर समेत कई जनपदों में टीशर्ट बेची गई। बाजार में कैपरी की डिमांड बढ़ी तो स्वयं सहायता समूह ने बड़ी संख्या में कैपरी बना डालीं। वर्तमान में समूह प्रतिमाह दो लाख रुपये का उत्पाद बेचता है। मोहन देवी कहती हैं कि अब चालीस हजार कमाती हूं। समूह की अन्य महिलाएं भी औसतन 15 हजार रुपये प्रति माह कमा रही हैं। उनके मुताबिक और ऋण मिल जाए तो लोअर, टीशर्ट और हौजरी की मशीन खरीदेंगी।

लक्ष्मी स्वयं सहायता समूह उन्नति के पथ पर है। राष्ट्रीय आजिविका मिशन द्वारा इनके कार्य को देखते हुए इन्हें सम्मानित किया गया है। इन्हें आवश्यकतानुसार ऋण दिलवाने का प्रयास किए जा रहा है।

मंगल यादव, खंड विकास अधिकारी, फतेहाबाद

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