Unemployment: मार्बल पच्चीकारी के हुनरमंद हो गए खाली हाथ, धीरे धीरे छोड़ रहे परंपरागत पेशा
आगरा में हुनरमंद हाथ फूड होम डिलीवरी को मजबूर। कोरोना काल में डेढ़ वर्ष से खाली हाथ बैठे हैं पच्चीकार। फूड डिलीवरी के साथ शोरूम पर नौकरी करने को बाध्य। कोई जुड़ गया जोमेटो से तो कोई स्विगी से।
आगरा, निर्लोष कुमार। ताजगंज के तेलीपाड़ा निवासी अशरफ सिद्दीकी करीब एक दशक से पच्चीकारी का काम कर रहे थे। कोरोना काल में हुए लाकडाउन ने उनकी नौकरी छीन ली। हुनरमंद होने के बावजूद वो आनलाइन फूड डिलीवरी कंपनी में नौकरी करने को बाध्य हैं। अशरफ कहते हैं कि अगर नौकरी नहीं करता तो भूखों मर जाता। कम पढ़ा-लिखा होने से अच्छी नौकरी मुझे नहीं मिलती। इसी तरह ताजगंज के तांगा स्टैंड निवासी इमरान डेढ़ वर्ष पूर्व तक पच्चीकारी किया करते थे। डेढ़ वर्ष से कोरोना काल में उनका पुश्तैनी काम बंद पड़ा हुआ है। इन दिनों वो ताज पूर्वी गेट स्थित एक हैंडीक्राफ्ट शोरूम में नौकरी करने को मजबूर हैं। इमरान कहते हैं कि हुनरमंद हूं तो क्या हुआ। दो वक्त की रोटी के लिए कुछ न कुछ काम तो करना ही पड़ेगा।
मुगल शहंशाह शाहजहां ने ताजमहल की तामीर करने वाले जिन कारीगरों को ताजगंज में आबाद किया था, आज उनके वंशज पुश्तैनी काम छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं। पच्चीकारी के उनके हुनर को देख विदेशी अचरज किया करते थे, कोरोना काल में काम ठप होने से उनके समक्ष रोजी-राेटी का संकट है। इसके चलते कोई आनलाइन फूड डिलीवरी कर रहा है तो कोई हैंडीक्राफ्ट शोरूम में नौकरी कर गुजर-बसर करने को मजबूर है।
ताजमहल का निर्माण वर्ष 1632 से 1648 के मध्य हुआ था। ताजमहल का निर्माण करने वाले कारीगरों और खूबसूरत पच्चीकारी करने वाले शिल्पियों के लिए शाहजहां ने ताजगंज बसाया था। उन कारीगरों के वंशज आज भी यहां रह रहे हैं और परंपरागत पच्चीकारी के काम से जुड़े हुए हैं। कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते लगी पाबंदियों से उनके समक्ष आजीविका का संकट विकराल होता जा रहा है। पच्चीकारी का सामान आगरा आने वाले विदेशी पर्यटकों द्वारा अधिक खरीदा जाता है। मार्च, 2020 से इंटरनेशनल फ्लाइट व टूरिस्ट वीजा सर्विस पर रोक लगे होने से विदेशी पर्यटक नहीं आ पा रहे हैं। वहीं, शोरूम व एंपोरियम में पुराना माल बचा हुआ रखा है। इससे पच्चीकारों को बिल्कुल काम नहीं मिल पा रहा है। उन्हें जीविकोपार्जन के लिए दूसरे काम-धंधों का रुख करना पड़ रहा है।
कभी 70 हजार हुआ करते थे शिल्पी
आगरा टूरिस्ट वेलफेयर चैंबर के अध्यक्ष प्रहलाद अग्रवाल ने बताया कि कुछ वर्ष पूर्व तक हैंडीक्राफ्ट कारोबार में करीब 70 हजार शिल्पी काम किया करते थे। कोरोना काल से पूर्व करीब 35 हजार शिल्पी थे। कोरोना काल में काम पूरी तरह ठप है और मजबूरी में शिल्पी पुश्तैनी काम को छोड़कर दूसरे काम-धंधे या नौकरी करने पर मजबूर हुए हैं।