मुगल भी समझते थे पानी का मोल, फतेहपुर सीकरी में बना ऐसा सिस्टम, बर्बाद नहीं जाती बारिश की एक भी बूंद
फतेहपुर सीकरी में बेहतरीन जल प्रणाली से मुगल सहेजते थे टैंकों में बारिश का पानी। आज भी काम करता है 450 वर्ष पुराना सिस्टम। बारिश का पानी कवर्ड नालियों से टैंकों तक पहुंचता था। बुलंद दरवाजा समेत सभी महलों में है प्राचीन जल प्रणाली।
आगरा, निर्लोष कुमार। बूंद-बूंद से सागर भरता है। 450 वर्ष पूर्व डेढ़ दशक तक मुगलिया सल्तनत की राजधानी रही फतेहपुर सीकरी में ऐसा सिस्टम है कि यहां बारिश की एक भी बूंद बर्बाद नहीं जाती। पहाड़ी और पथरीले इलाके में फतेहपुर सीकरी को राजधानी बनाने वाले मुगल शहंशाह अकबर ने कुदरत की अनमोल देन पानी की कीमत को समझते हुए भवनों के निर्माण में इस बात का विशेष ध्यान रखा था कि बारिश की कोई बूंद व्यर्थ नहीं जाए। इसके लिए छत से लेकर अंडरग्राउंड टैंकों तक कवर्ड नालियां बनाई गई थीं, जिनसे बारिश का पानी टैंकों तक पहुंचता था। प्राचीन जल प्रणाली आज भी अस्तित्व में हैं।
मुगल शहंशाह अकबर ने वर्ष 1569 में सूफी संत शेख सलीम चिश्ती के आशीर्वाद से पुत्र सलीम (शहंशाह जहांगीर) का जन्म होने के बाद फतेहपुर सीकरी को अपनी राजधानी बनाया था। इतिहासकार फतेहपुर सीकरी को अकबर द्वारा राजधानी बनाने की वजह राजपुताना पर नियंत्रण करना भी बताते हैं। करीब डेढ़ दशक तक मुगलिया राजधानी रही फतेहपुर सीकरी में मुगल काल में बनी बेहतर जल प्रणाली आज भी अस्तित्व में है। यहां बने स्मारकों व भवनों में ऐसी व्यवस्था है कि बारिश का पानी बर्बाद नहीं होता। वो परिसर में बने टैंकों तक जल प्रणाली के माध्यम से पहुंच जाता है। बारिश होने पर शेख सलीम चिश्ती की दरगाह की छत का पानी पोले खंभों व कवर्ड नालियों में होते हुए अंडरग्राउंड टैंक तक पहुंचता है। इसमें संग्रहीत वर्षा जल का उपयोग लोग पेयजल की किल्लत होने पर मुगल काल में किया करते थे। दरगाह परिसर का वर्षा जल बुलंद दरवाजे के दक्षिणी कोने पर स्थित झालरा शाही तालाब और लंगरखाना में बने अंडरग्राउंड टैंक तक पहुंचता है। दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, खजाना खास आदि भवनों का पानी जल प्रणाली के माध्यम से तालाब में पहुंचता है। यह प्रणाली आज भी बेहतर तरीके से काम कर रही है।
अधीक्षण पुरातत्वविद वसंत कुमार स्वर्णकार बताते हैं कि फतेहपुर सीकरी में मुगलकालीन बेहतर जल प्रणाली है। यहां वर्षा जल को एकत्र कर उसका जरूरत पड़ने पर इस्तेमाल किया जाता था।
राजधानी परिवर्तन की कमी बना था पानी
इतिहासकार अकबर द्वारा फतेहपुर सीकरी से हटाकर लाहौर को राजधानी बनाने की बजाय पानी की कमी बताते हैं। अधीक्षण पुरातत्वविद वसंत कुमार स्वर्णकार बताते हैं कि फतेहपुर सीकरी में जमीन पथरीली थी और यहां पानी की कमी थी। यहां बारिश के जल को एकत्र जरूर किया जाता था, लेकिन वो जनता और सेना के हाथियों व घोड़ों के लिए पर्याप्त नहीं था। इसलिए अकबर ने लाहौर को अपनी राजधानी बनाया था।
लंगर बनाने में होता था बारिश के पानी का इस्तेमाल
एप्रूव्ड टूरिस्ट गाइड एसोसिएशन के अध्यक्ष शमसुद्दीन बताते हैं कि लंगरखाना में बने अंडरग्राउंड वाटर टैंक में बुलंद दरवाजा व दरगाह परिसर की छतों के पानी को मुगल काल में एकत्र किया जाता था। बारिश का पानी कवर्ड नालियों से टैंक में पहुंचता था। टैंक में एकत्र होने वाले बारिश के पानी का इस्तेमाल लंगर बनाने व पेयजल के रूप में हाेता था।