Kabul of Agra: यमुना पार में था आगरा का 'काबुल', यहां बाग लगाकर बस गए थे मुगल
हुमायूं के राज्याभिषेक वर्ष में 1530 ईस्वी में बनी थी यह मस्जिद। बाबर के मित्र और सामंत शेख जैन ख्वाफी ने कराया था निर्माण। मुगल शहंशाह हुमायूं ज्योतिष में काफी विश्वास करता था। उसने यमुना किनारे पर ज्याेतिष यंत्रशाला बना रखी थी।
आगरा, निर्लोष कुमार। काबुल भले ही अफगानिस्तान में हो, लेकिन मुगल काल में यमुना पार काबुल कहलाता था। पानीपत के युद्ध में विजय के बाद आगरा आए मुगलों ने यमुना पार में बाग लगवाए और वहीं बस गए थे। स्थानीय निवासी मुगलों के यहां रहने के कारण क्षेत्र को काबुल कहते थे। बाबर ने अपनी आत्मकथा 'बाबरनामा' में इसका उल्लेख किया है।
यमुना पार कछपुरा में स्थित हुमायूं की मस्जिद में लगे शिलालेख में यह पूरा ब्योरा दर्ज है। इस मस्जिद को हुमायूं के आदेश पर उसके राज्याभिषेक वर्ष 1530 ईस्वी में बनवाया गया था। मस्जिद में लगे फारसी शिलालेख के अनुसार मस्जिद को शेख जैन ख्वाफी ने अपने खर्चे पर बनवाया था। शेख जैन ख्वाफी कवि, बाबर का महत्वपूर्ण सामंत और मित्र था। हुमायूं मस्जिद का निर्माण इस क्षेत्र में बसे मुगलों की धार्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया गया था।
पंचमुखी है मस्जिद
यह मस्जिद पंचमुखी है और ईंट व चूने की बनी है। इसके ऊपर व्हाइट प्लास्टर किया गया था। इसके मध्य में मुख्य कक्ष के सामने के हिस्से पर भव्य ईवान बना है, जो इतना ऊंचा है कि उसके पीछे गुंबद छिप गया है। ऐसा दिल्ली की मुहम्मद बिन तुगलक की बेगमपुरी मस्जिद और जौनपुर की शर्की वंश की मस्जिदों में हुआ था। इसमें दोनों ओर चार-चार कक्ष बने हुए हैं, जिनके ऊपर अर्धवृत्ताकार लघु गुंबद हैं। इसका दक्षिणी भाग गिर चुका है और बाहर की तरफ चीनी टाइलों से अलंकरण किया गया था। पूर्ववर्ती लोदी शैली में बनी मस्जिद में पत्थरों का उपयोग नहीं किया गया है।
हुमायूं की ज्योतिष यंत्रशाला भी थी यहां
मुगल शहंशाह हुमायूं ज्योतिष में काफी विश्वास करता था। उसने यमुना किनारे पर ज्याेतिष यंत्रशाला बना रखी थी। यह अब खंडहर हो चुकी है। उसके अवशेषों में केवल एक बाबड़ी और एकाश्म शिला रह गई है, जिसमें 12 सीढ़ियां बनी थीं। इसे 11 सीढ़ी के नाम से जाना जाता है।