आगरा में रोड एक्सीडेंट में घायल हुआ लकड़बग्घा, रीढ़ की हड्डी में है फ्रैक्चर
तेज रफ्तार वाहन की चपेट में आने से घायल हुई मादा लकड़बग्घा। अस्पताल में चल रहा इलाज बचने की संभावना कम। वाइल्डलाइफ एसओएस के अस्पताल में उसका इलाज चल रहा है। इंडियन स्त्रिप्ड हायना लकड़बग्घों की एकमात्र प्रजाति है जो भारतीय उपमहाद्वीप में पाई जाती है।
आगरा, जागरण संवाददाता। खेरागढ़ के भिलावली गांव से तेज रफ्तार वाहन की चपेट में आने से गंभीर रूप से घायल मादा लकड़बग्घा को वाइल्डलाइफ एसओएस रैपिड रिस्पांस यूनिट ने रेस्क्यू किया। मादा लकड़बग्घा की रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट आई है। वाइल्डलाइफ एसओएस के अस्पताल में उसका इलाज चल रहा है।
शुक्रवार को एक राहगीर ने खेत में जानवर को बेहोश अवस्था में देखा और स्थानीय अधिकारियों व वाइल्डलाइफ एसओएस को सूचना दी। तीन सदस्यीय टीम वन विभाग के अधिकारियों के साथ गांव पहुंची। मादा लकड़बग्घा का पीछे का हिस्सा पूरी तरह से लकवाग्रस्त था। वो चलने में असमर्थ थी। अस्पताल में हुए मेडिकल परीक्षण में पता चला कि मादा लकड़बग्घा की रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर है। वाइल्डलाइफ एसओएस की पशु-चिकित्सा सेवाओं के उप-निदेशक, डी. इलियाराजा ने बताया कि एक्स-रे में लुंबोसैक्रल एरिया (रीढ़ की हड्डी में जगह) में फ्रैक्चर का पता चला है। उचित उपचार देने की कोशिश की जा रही है, पर बचने की संभावना काफी कम है।
वाइल्डलाइफ एसओएस के सह-संस्थापक और सीईओ कार्तिक सत्यनारायण ने कहा, हमारी टीम लकड़बग्घे की स्थिति पर करीबी से नजर रख रही है। शहर में वन्यजीव गलियारों एवं अंडरपास की कमी इस तरह की घटनाओं का प्रमुख कारण है, जिसके कारण कई जानवर सड़क या रेलवे की पटरी पार करते समय अपनी जान जोखिम में डालते हैं और अक्सर वाहनों या ट्रेन की टक्कर के शिकार हो जाते हैं।
दुनिया के 20 फीसद लकड़बग्घे भारत में
लकड़बग्घों को खतरनाक जानवरों के रूप में देखा जाता है और वे संस्कृति, लोकगीत और यहां तक कि फिल्मों में भी व्यापक रूप से गलत तरीके से प्रस्तुत किए जाते हैं। इंडियन स्त्रिप्ड हायना, लकड़बग्घों की एकमात्र प्रजाति है, जो भारतीय उपमहाद्वीप में पाई जाती है और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षित है। इनकी अनुमानित जनसंख्या 10,000 से कम है और इन्हें आईयूसीएन रेड लिस्ट में नियर थ्रेटेंड के रूप में वर्गीकृत किया गया है। पूरे विश्व के करीब 20 फीस लकड़बग्घे अकेले भारतमें पाए जाते हैं, परन्तु शिकार के कारण उनकी आबादी लगातार घट रही है। प्राकृतिक आवास के घटने और जंगल में खाने की कमी के कारण भोजन की तलाश वह मानव बस्तियों में घुस आते हैं।
जानवर के जख्मी होने पर यहां दें सूचना
भारत में हर साल सैकड़ों जानवर जैसे नीलगाय, लकड़बग्घा, गीदड़, तेंदुए, और हाथी सड़क या ट्रेन दुर्घटनाओं के कारण अपनी जान गवाते हैं। यदि आपको किसी भी प्रकार का ऐसा जंगली जानवर दिखे, जो घायल हो या जिसे उपचार की ज़रुरत हो, तो वाइल्डलाइफ एसओएस को उनके हेल्पलाइन नंबर (+ 91-9917109666) पर इसकी सूचना दी जा सकती है।