राह दिखाने वाली कोस मीनार को संवार रहा एएसआइ
हलवाई की बगीची के नजदीक स्थित कोस मीनार का चल रहा है संरक्षण मीनार पर चूने का प्लास्टर करने के साथ बनाया जा रहा है प्लेटफार्म
आगरा, जागरण संवाददाता। मुगल काल में राह दिखाने वाली कोस मीनार का संरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) द्वारा कराया जा रहा है। हलवाई की बगीची के नजदीक स्थित कोस मीनार के खराब हो चुके प्लास्टर को हटाकर दोबारा चूने का प्लास्टर किया जा रहा है। मीनार के चारों ओर रेड सैंड स्टोन का प्लेटफार्म बनाया जा रहा है। हालांकि, बारिश द्वारा काम में खलल डालने की वजह से काम पर ब्रेक लग रहा है।
एएसआइ द्वारा करीब एक पखवाड़ा पहले हलवाई की बगीची के नजदीक स्थित कोस मीनार का संरक्षण कार्य शुरू किया गया है। लाखौरी ईंटों से बनी करीब 30 फुट ऊंची मीनार के ऊपर हो रहे चूने के खराब प्लास्टर की जगह दोबारा प्लास्टर करने के साथ ही मीनार के चारों ओर रेड सैंड स्टोन का प्लेटफार्म बनाया जा रहा है। प्लेटफार्म के चारों ओर लोहे के एंगिल लगाकर फेंसिग की जाएगी। प्लास्टर का काम बारिश की वजह से इन दिनों रुका हुआ है। करीब 60-70 हजार रुपये की लागत से हो रहा काम बारिश द्वारा व्यवधान नहीं डालने पर इस माह के अंत तक होने की उम्मीद है।
आगरा में आठ हैं कोस मीनार
आगरा में एएसआइ द्वारा संरक्षित आठ कोस मीनार हैं। आगरा-फतेहपुर सीकरी मार्ग पर पांच और आगरा-मथुरा मार्ग पर तीन कोस मीनार हैं। आगरा-मथुरा रोड पर मरियम टाम्ब से आगे स्थित कोस मीनार के नजदीक प्राचीन सराय के अवशेष भी हैं। कोस है दूरी मापने का पैमाना
कोस दूरी को मापने का पैमाना है। एक कोस, दो मील या सवा तीन किमी के बराबर होता है। मुगल काल में कोस में दूरी मापी जाती थी। शेरशाह सूरी ने बनवाई थीं कोस मीनार
शेरशाह सूरी ने वर्ष 1540-45 तक शासन किया था। उसने ग्रांड ट्रंक रोड के किनारे हर दो कोस की दूरी पर कोस मीनार बनवाई थीं। उसके बेटे इस्लाम शाह सूरी ने प्रत्येक कोस मीनार के बीच में सराय बनवाई थीं। 30 फुट ऊंची कोस मीनार लाखौरी ईंटों व चूने से बनाई गई थीं। इनको देखकर सैनिक काफिले व राहगीर यात्रा किया करते थे। इन्हीं मीनारों पर डाक व्यवस्था भी चलती थी। जहांगीर ने कोस मीनारों को पक्की ईंटों व पत्थरों से बनवाने का आदेश किया था।