Shoe Market in Agra: आगरा की जूता मंडी पड़ी बदहाल, नहीं मिल रहे खरीदार

Shoe Market in Agra एडीए ने 11 साल पूर्व 21 करोड़ रुपये से किया था निर्माण। 280 में अभी तक 135 दुकानों की हुई है बिक्री। एक ही छत के नीचे जूतों की विस्तृत रेंज उपलब्ध कराने का था मकसद।

By Tanu GuptaEdited By: Publish:Sat, 24 Jul 2021 03:29 PM (IST) Updated:Sat, 24 Jul 2021 03:29 PM (IST)
Shoe Market in Agra: आगरा की जूता मंडी पड़ी बदहाल, नहीं मिल रहे खरीदार
11 साल पूर्व 21 करोड़ रुपये से किया गया था आगरा की जूता मंडी का निर्माण।

आगरा, अमित दीक्षित। आगरा का जूता किसी नाम का मोहताज नहीं है। हर साल करोड़ों रुपये की आमदनी होती है और इस व्यापार से लाखों लोग जुड़े हैं लेकिन एक ही छत के नीचे जूतों की विस्तृत रेंज कभी उपलब्ध नहीं हो सकी। जहां खरीदार सीधे जूते देखकर उसकी खरीद कर सकें। 11 साल पूर्व तत्कालीन बसपा सरकार ने इस सपने को पूरा किया। पचकुइयां से कोठी मीना बाजार मैदान रोड में जूता मंडी (प्रदर्शनी और प्रशिक्षण केंद्र) की स्थापना का निर्णय लिया गया। प्रयास अच्छा था एक ही जगह पर छोटे काश्तकार अपने उत्पादों का बेहतर तरीके से प्रदर्शन कर सकेंगे। आगरा विकास प्राधिकरण (एडीए) ने 21 करोड़ रुपये से 6870 वर्ग मीटर पर मंडी का निर्माण किया। इसमें 280 दुकानें, एक रेस्टोरेंट, एक बैंक कार्यालय, 22 गोदाम, एक प्रदर्शनी हाल और सभास्थल बनाया गया। यहां तक छह फूड कोर्ट भी बनाए गए। तत्कालीन शहरी विकास एवं लोक निर्माण विभाग के मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दकी ने आठ सितंबर 2010 को इसका शुभारंभ किया। एडीए अफसरों की लापरवाही के चलते जूता मंडी का प्रचार प्रसार नहीं किया गया और न ही इसे विकसित करने के लिए कुछ ठोस कदम उठाया गया। इसी के चलते अब तक 280 में 135 दुकानों की बिक्री हुई है जबकि 145 दुकानें नहीं बिकी हैं।

नहीं हुई आमदनी

जूता मंडी के निर्माण पर एडीए ने 21 करोड़ रुपये खर्च किए लेकिन अभी तक जिस तरीके से आमदनी होनी चाहिए। वह नहीं हुई है। दुकानों की कीमत छह लाख से लेकर 18 लाख रुपये तक है।

- जूता मंडी के प्रचार प्रसार पर ध्यान दिया जाएगा। दुकानों की बिक्री कैसे हो, इसका प्रस्ताव तैयार किया जा चुका है।

डा. राजेंद्र पैंसिया, उपाध्यक्ष एडीए

नहीं आते हैं खरीदार

दुकानदार मोहम्मद इरफान ने बताया कि वर्ष 2011 में दुकान ली थी। उम्मीद थी कि दुकान में खरीदार आएंगे लेकिन एक साल तक महज 20 खरीदार आए। इसके चलते दुकान को बेचना पड़ा।

दुकान लेने से क्या फायदा

मंटोला निवासी मोहम्मद चांद ने बताया कि वर्ष 2012 में दुकान लेने के लिए एडीए में संपर्क किया था फिर मंडी का एक राउंड लिया। जब वहां पता किया गया तो खरीदार न के बराबर मिले। इसी के चलते दुकान नहीं ली।

इसलिए बदहाल जूता मंडी

- एडीए ने जूता मंडी का निर्माण कर दिया लेकिन इसके प्रचार प्रसार पर ध्यान नहीं दिया गया।

- एक ही छत के जूता निर्यातकों और छोटे काश्तकारों को नहीं लाया गया।

- न तो बैंक खुली और न ही अन्य सुविधाओं को विकसित करने पर ध्यान दिया गया। 

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