Seminar on TTZ: National Seminar में हुआ TTZ के नियमों पर मंथन, प्रदूषण से बचाने को ताजमहल की टैफलोन कोटिंग की मांग
Seminar on TTZ टीटीजेड का क्षेत्र हो कम प्रतिबंध से विकास की गति हुई धीमी। सेंट जोंस कालेज में हुआ राष्ट्रीय सेमिनार टीटीजेड के नियमों पर दोबारा विचार पर हुई चर्चा। टीटीजेड की वजह से आगरा को हो रहे नुकसान पर भी वक्ताओं ने चिंता व्यक्त की।
आगरा, जागरण संवाददाता। ताजमहल को प्रदूषण से बचाने के लिए कारों की तरह टैफलोन कोटिंग करा दी जाए। इससे धूल और गोल्डीकाइरोनोमस से बचाव हो सकेगा। ताज ट्रिपेजियम जोन(टीटीजेड) की परिधि को भी कम करने की जरूरत है। यह विचार सेंट जोंस कालेज में गुरुवार को आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार में वक्ताओं ने रखे। ताज ट्रिपेजियम रिथिंक फार ग्रोथ एंड सस्टेनेबिलिटी विषय था। टीटीजेड की वजह से आगरा को हो रहे नुकसान पर भी वक्ताओं ने चिंता व्यक्त की।
हर साल हो ताजमहल की सफाई
पर्यावरण विद डा. राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि जिस तरह कारों में टैफलोन कोटिंग कराई जाती है, उसी तरह ताजमहल पर कराई जाए। इसके लिए पहले ताजमहल को हाइड्रोफिलिक एजेंट से धुलवाया जाए।उन्होंने कहा कि ताजमहल के पांच किलोमीटर के घेरे को सेंसेटिव घोषित कर दिया जाए।इसमें सिर्फ ई-व्हीकल चलें। गैस इस्तेमाल करने की अनुमति न हो।सिर्फ बिजली से चलने वाले इंडक्शन पर खाना बनाने की अनुमति दी जाए।
डस्ट मैनेजमेंट की है जरूरत
नीरी के पूर्व निदेशक डा. राकेश कुमार ने कहा कि टीटीजेड को बने 22 साल हो चुके हैं।अब इसे सोशियो-इकोनोमिक प्रारूप में देखना होगा।टीटीजेड के तहत कई प्रतिबंध लगे हैं।टीटीजेड की गाइडलाइंस पर फिर से विचार करना होगा। टेक्नोलाजी, सेटलाइट व नए उपकरणों की मदद से विस्तृत अध्ययन करना होगा।यह देखना होगा कि इतने प्रतिबंधों और नियमों की आज के समय में कितनी जरूरत है और कहां जरूरत है।मैक्रो डिटेल की जगह माइक्रो डिटेलिंग पर काम करना होगा। उन्होंने डस्ट मैनेजमेंट पर सबसे ज्यादा जोर दिया, वर्ना स्थिति और बिगड़ जाएगी।आगरा के पर्यावरण को पर्यटकों से नुकसान नहीं है। इस समय आगरा की हवा में डस्ट यानी धूल के कण ज्यादा है।
टीटीजेड का क्षेत्र कम हो
इंडियन एसोसिएशन आफ एयर पोल्यूशन कंट्रोल के अध्यक्ष डा. जेएस शर्मा ने कहा कि टीटीजेड का 10 हजार 400 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र कम करना होगा। टीटीजेड के प्रतिबंधों की वजह से इंडस्ट्री का विकास ही नहीं हो रहा है।जनसंख्या हर साल बढ़ रही है, लेकिन उस हिसाब से संसाधन व विकास नहीं बढ़े हैं। जिस समय टीटीजेड लागू हुआ था, उस समय और आज के समय में जमीन आसमान का अंतर है।उनका मानना है कि 1970-80 के दशक की तुलना में सल्फर डाइआक्साइड का स्तर काफी कम हुआ है। आर्थिक विकास के लिए इंडस्ट्री लगानी ही पड़ेंगी।इसके अलावा मानिटरिंग स्टेशन की संख्या भी बढ़ानी होगी।
विभिन्न मुद्दों पर हुई चर्चा
सेमिनार का शुभारंभ डा. पीपी हाबिल व डा. राजू वी.जान ने किया। डा. सूसन वर्गीज ने मुख्य वक्ताओं का परिचय दिया।प्राचार्य डा. एसपी सिंह ने अतिथियों का स्वागत किया। जेएनयू के सीके वार्ष्णेय को सम्मानित किया गया। उदघाटन सत्र का संचालन डा. पदमा ने किया।धन्यवाद डा. डेविड ने दिया।प्रथम सत्र में सीपीसीबी के पूर्व सदस्य सचिव डा. बी.सेन गुप्ता ने मथुरा क्षेत्र पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।डा. गिरीश माहेश्वरी ने गोल्डीकाइरोनोमस के बारे में बताया।दूसरे सत्र में डा. प्रवीन त्यागी, डा. रामकुमार, डा. जेके मोइत्रा, डा. रंजीत कुमार व डा. पर्था वसु ने स्मारकों के संरक्षण स्वच्छ तकनीकी और स्थिरता के लिए आगरा और टीटीजेड पर किए गए कार्यों का उल्लेख किया। कार्यक्रम में डा. हेमंत कुलश्रेष्ठ, डा. एके कुलश्रेष्ठ, डा. शोभा शर्मा, डा. डीएस शर्मा, डा. जे.एन्ड्रयू, डा. सैमुअल गार्डन आदि उपस्थित रहे।