मददगार बने रिश्तेदार, मंजिल पाने को मदद की दरकार

स्कूल फीस और कापी-किताबों को लेकर बचे चिंतित मां हैं कई बीमारियों से ग्रस्त रह चुकी हैं वेंटीलेटर पर

By JagranEdited By: Publish:Sat, 24 Jul 2021 11:30 PM (IST) Updated:Sat, 24 Jul 2021 11:30 PM (IST)
मददगार बने रिश्तेदार, मंजिल पाने को मदद की दरकार
मददगार बने रिश्तेदार, मंजिल पाने को मदद की दरकार

आगरा, जागरण संवाददाता। इंजीनियर पिता की 18 साल की बेटी को अपनी पढ़ाई और स्कूल की रैंक की फिक्र रहती थी। उसके साथ ही दोनों छोटे भाई-बहन की फीस और कापी-किताबों की फिक्र पिता ही करते थे। कोरोना की दूसरी लहर में 27 अप्रैल को पिता हमेशा के लिए साथ छोड़ गए। बेटी को अब अपनी स्कूल रैंक की जगह फीस जमा कराने की फिक्र है। मां की बीमारी और घर का खर्च चलाने की भी चिता है। रिश्तेदार मददगार तो हैं, लेकिन मंजिल पाने को मदद की दरकार है।

न्यू आगरा इलाके में रहने वाले इंजीनियर एक बिल्डर के यहां कार्यरत थे। परिवार में पत्नी के अलावा दो बेटियां और एक बेटा है। बड़ी बेटी इंटर करने के बाद बीएससी में प्रवेश की तैयारी कर रही थी। इसी दौरान पिता को कोरोना ने छीन लिया। जिसके बाद परिवार के सामने मुश्किलों का पहाड़ खड़ा हो गया। जिस कंपनी में पिता इंजीनियर थे, उससे संपर्क किया। कंपनी ने बड़ी बेटी को नौकरी करने या अपनी दुकान खोलने को कहा और दोनों बच्चों का दूसरे स्कूल में प्रवेश कराने की कहा। स्कूल में उन्हें फीस जमा नहीं करनी पड़ती।

इंजीनियर की विधवा कई बीमारियों से जूझ रही हैं, वेंटीलेटर पर भी रह चुकी हैं। बड़ी बेटी ने बताया कि नौकरी करने को उसे पढ़ाई छोड़नी पड़ेगी। दुकान का विकल्प चुनते हैं तो उस पर मां नहीं बैठ सकेगी, लिहाजा पढ़ाई प्रभावित होगी। छोटी बहन 11वीं और भाई आठवीं कक्षा में है, ऐसे में नए स्कूल में प्रवेश भी समस्या है। उनका कहना था कि घर का खर्च तो वह ट्यूशन पढ़ाकर और रिश्तेदारों की मदद से चला लेगी। वास्तविक समस्या उनकी पढ़ाई की है। जिसकी भारी भरकम फीस और कापी-किताब खरीदने के लिए धन कहां से आएगा। तीनों भाई-बहनों की पढ़ाई का एक साल का खर्चा करीब एक लाख रुपये है, जिसे उठाने में रिश्तेदार भी असमर्थ हैं। सत्यापन की धीमी प्रक्रिया से बढ़ रही मुश्किलें

इंजीनियर की बेटी ने बताया कि मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना के तहत अपने सारे कागजात दो सप्ताह पहले ही जमा करा दिए हैं। अधिकांश परिवारों की यही स्थिति है। उन्हें शीघ्र मदद की दरकार है। सत्यापन प्रक्रिया धीमी होने के चलते इन परिवारों का इंतजार बढ़ रहा है।

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