कोरोना काल में रेखा बन गईं थीं अन्नपूर्णा, प्रसादम ने टाला था कोरोना पाजीटिव परिवारों का संकट

कोरोना पाजीटिव परिवारों को सुबह-शाम भोजन बनाकर घर पहुंचाया। निस्वार्थ सेवा से जुड़कर 15 से लेकर 600 परिवारों तक की सेवा। सभी सदस्यों ने शुरुआत में अपने घरों में स्वयं खाना बनाया और जरूरतमंदों तक पहुंचाना शुरू किया।

By Nirlosh KumarEdited By: Publish:Wed, 13 Oct 2021 04:28 PM (IST) Updated:Wed, 13 Oct 2021 04:28 PM (IST)
कोरोना काल में रेखा बन गईं थीं अन्नपूर्णा, प्रसादम ने टाला था कोरोना पाजीटिव परिवारों का  संकट
कोरोना काल में जरूरतमंद परिवारों तक सुबह-शाम पहुंचाया था खाना।

आगरा, जागरण संवाददाता। कोरोना वायरस के संक्रमण काल में कोरोना तो काल बन ही रहा था, एक नया संकट भी खड़ा हो गया था। कोरोना के संक्रमण की चपेट में आए परिवार घर में कैद होने को मजबूर हो गए थे। विशेषकर बुजुर्गों व बच्चों के समक्ष खाने का संकट खड़ा हो गया था। प्रशासन सहायता कर रहा था, लेकिन वो नाकाफी थी। ऐसे माहौल में कमला नगर निवासी रेखा हसीजा ने अन्नपूर्णा के रूप में अपने साथियों के साथ "प्रसादम' के रूप में अनुपम सेवा की। घरों तक सुबह-शाम साथियों की सहायता से भोजन पहुंचाया। 15 परिवारों से हुई शुरुआत 600 परिवारों तक पहुंच गई थी।

रेखा हसीजा बताती हैं कि प्रसादम ने कोरोना काल में अपनी निश्शुल्क खाना पहुंचाने की सेवा 11 अप्रैल को शुरू की थी। पहले दिन जरूरतमंद 11 कोविड पाजीटिव परिवारों को खाना पहुंचाया गया था। शुरआत कोरोना वायरस के संक्रमण में आए नजदीकी लोगों से की। इसके बाद धीरे-धीरे संपर्क करने वाले लोगों की संख्या बढ़ती चली गई। सभी सदस्यों ने शुरुआत में अपने घरों में स्वयं खाना बनाया और जरूरतमंदों तक पहुंचाना शुरू किया।

वाट्सएप पर आए मैसेज से मिली थी प्रेरणा

रेखा हसीजा ने बताया कि उन्हें इसके लिए वाट्सएप पर आए एक संदेश से प्रेरणा मिली थी। अपनी मित्र से उन्होंने इस पर चर्चा की और कोविड पाजीटिव परिवारों के घर खाना पहुंचाने की शुरआत की। जब अधिक लोग संपर्क करने लगे तो वाट्सएप ग्रुप "प्रसादम' बनाकर उससे सेवा करने के इच्छुक अन्य लोगों को जोड़ा। पायल डावर, नीना मुनियाल, वर्षा कपूर, सुमन महाजन, संगीता कत्याल, सुनील अग्रवाल, विनोद आहूजा आदि ग्रुप से जुड़े और कारवां बढ़ता गया।

लोगों से नहीं लेते थे पैसे

प्रसादम के ग्रुप में शामिल सदस्य कोरोना काल में लोगों के घरों में भोजन पहुंचाने का कोई चार्ज नहीं लेते थे और न ही उन्होंने किसी से इसकी मांग की। स्वस्थ होने पर सदस्य मुहिम से जुड़कर सेवा कार्य में आर्थिक रूप से सहयोग करते थे।

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