Boxing: आगरा के मुक्‍के में है दम, स्‍टेडियम में संसाधनों का अभाव और भेदभाव से पिछड़ रहे मुक्केबाज

एकलव्य स्पोर्ट्स स्टेडियम में डेढ़ वर्ष से नहीं है कोच। कोचों के बदलने से प्रभावित होता है खिलाड़ी का खेल। दो में से एक रिंग खराब है। यहां खिलाड़ी अभ्यास तक नहीं कर पा रहे हैं और बहुत से खिलाड़ी प्राइवेट एकेडमियों का रुख कर रहे हैं।

By Prateek GuptaEdited By: Publish:Wed, 28 Jul 2021 08:31 AM (IST) Updated:Wed, 28 Jul 2021 08:31 AM (IST)
Boxing: आगरा के मुक्‍के में है दम, स्‍टेडियम में संसाधनों का अभाव और भेदभाव से पिछड़ रहे मुक्केबाज
आगरा के स्‍टेडियम में मुक्‍केबाजों को बुनियादी सुविधाएं ही नहीं मिल पा रही हैं।

आगरा, जागरण संवाददाता। टोक्यो ओलिंपिक में जिन खेलाें में भारत को पदक की आस है, उनमें मुक्केबाजी प्रमुख है। अब तक ओलिंपिक में विजेंद्र सिंह (2008) और एमसी मैरीकाम (2012) ही कांस्य पदक जीत सके हैं। इस बार मुक्केबाजों से अधिक पदकों की उम्मीद देश को है। देश के नौ मुक्केबाज एमसी मैरीकाम, लवलीना बोरगोहेन, पूजा रानी, सिमरनजीत कौर, अमित पंघाल, मनीष कौशिक, विकास कृष्ण, आशीष कुमार, सतीश कुमार ओलिंपिक में देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। आगरा के मुक्केबाजों का मुक्का राष्ट्रीय स्तर पर तो पदक दिला रहा है, लेकिन उससे आगे खिलाड़ी नहीं बढ़ पा रहे हैं। संसाधनों का अभाव तो है ही, चयन प्रकिया में पारदर्शिता नहीं होने की वजह से खिलाड़ी भेदभाव का भी शिकार होते हैं।

आगरा में एकलव्य स्पोर्ट्स स्टेडियम के साथ आधा दर्जन से अधिक एकेडमियों में खिलाड़ियों को मुक्केबाजी का प्रशिक्षण दिया जाता है। एकेडमियां तो निजी संसाधनों से चल रही हैं, लेकिन स्टेडियम की दशा ठीक नहीं है। कोरोना काल में यहां डेढ़ वर्ष से मुक्केबाजी कोच ही तैनात नहीं हो सका है। मुक्केबाजी की दो में से एक रिंग खराब है। कोच के अभाव में यहां खिलाड़ी अभ्यास तक नहीं कर पा रहे हैं और बहुत से खिलाड़ी प्राइवेट एकेडमियों का रुख कर रहे हैं। स्टेडियम में पूर्व में मुक्केबाजी के कोच रहे गौरव ठाकुर बताते हैं कि मुक्केबाजी को बढ़ावा देने के लिए सबसे पहले चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता लानी होगी। सभी खिलाड़ियों को खेलने व अभ्यास करने का मौका मिले। आपसी खींचतान खत्म होनी चाहिए। सुविधाओं को बढ़ाया जाए। खिलाड़ियों की संख्या को देखते हुए ग्लब्स व अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं, न कि माह के आधार पर खर्चे को धनराशि।

यह किया जाना चाहिए

- बाक्सिंग रिंग की स्थिति को सुधारा जाए।

- खुली जगह की बजाय इंडोर हाल में बाक्सिंग रिंग बनाई जाए।

- खिलाड़ियों के अभ्यास के साथ उनके लिए फिजियो की सुविधा हो।

- मानदेय कोच हर वर्ष बदलते रहते हैं। स्थायी कोचों की तैनाती होनी चाहिए।

- ट्रायल में पारदर्शिता हो और किसी तरह का भेदभाव खिलाड़ियों के साथ न हो।

- कोच द्वारा खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देने में खेल संघों का हस्तक्षेप नहीं हो।

- अधिक से अधिक प्रतियोगिताओं में खिलाड़ियों को खेलने का मौका मिले।

- स्कूल के स्तर पर प्रतियोगिताओं का आयोजन हो।

संसाधनों की कमी को किया जाए दूर

आगरा कैंट स्टेशन पर चीफ कैरिज एंड ट्रेन के पद पर तैनात ब्रजेश मीणा प्रोफेशनल मुक्केबाज हैं। मार्च में मिस्र के हमजा उमर को हराकर वो देश के नंबर वन प्राेफेशनल मुक्केबाज बने थे। 12 में से 10 फाइट विरोधी खिलाड़ियों काे नाक आउट कर जीतने वाले ब्रजेश कहते हैं कि संसाधनों की कमी से ताजनगरी के मुक्केबाज नेशनल लेवल से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। हरियाणा व पंजाब खिलाड़ियों को हर संसाधन उपलब्ध कराते हैं, लेकिन उप्र में स्थिति उतनी अच्छी नहीं है। यहां प्रतिभाओं की काेई कमी नहीं है। खिलाड़ियों के चयन में पारदर्शिता बरतने के साथ अच्छे खिलाड़ियों का चयन किया जाए, तो आगरा के खिलाड़ी भी अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंच सकेंगे।

खिलाड़ियों की पीड़ा

मुक्केबाजों के राष्ट्रीय स्तर से आगे नहीं बढ़ पाने की वजह सुविधाआें की कमी है। हर वर्ष कोच बदल दिए जाते हैं, जिससे दूसरा कोच आने पर खिलाड़ियों को समझने में समय लगता है। सुविधाएं बढ़ाई जाएं और स्थायी कोच तैनात किए जाएं।

-भोजराज सिंह, राष्ट्रीय खिलाड़ी

महिला खिलाड़ियों को परिवार व समाज से उतना सहयोग व प्रोत्साहन नहीं मिल पाता है, जितना कि पुरुषों को मिलता है। समाज को अपनी सोच बदलनी चाहिए। खिलाड़ियों को सहयोग, प्रोत्साहन व सुविधाएं मिलेंगी तो वो अच्छा प्रदर्शन करेंगी।

-मानसी शर्मा, राष्ट्रीय खिलाड़ी

स्टेडियम में संसाधनों का अभाव है। अच्छे उपकरण नहीं हैं। डेढ़ वर्ष से कोच की तैनाती नहीं हो सकी है। खिलाड़ियों के साथ पक्षपात कर ट्रायल में अपने-अपने खिलाड़ियों को भेजा जाता है। इससे आगरा के खिलाड़ी नेशनल लेवल से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं।

-रिषभ शर्मा, राष्ट्रीय खिलाड़ी

स्थायी कोच की तैनाती होनी चाहिए। बार-बार कोच का तबादला न हो। इससे खिलाड़ियों का अभ्यास प्रभावित होता है-मानदेय कोच का कार्यकाल सत्र के मध्य में ही खत्म हो जाता है, जिससे खिलाड़ियों को प्रतियोगिताआें में उनका निर्देशन नहीं मिल पाता है।

-गगनदीप, राष्ट्रीय खिलाड़ी 

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