हम भूल गए हर बात मगर बलिदान नहीं भूले
क्रांति के सपूत गेंदालाल दीक्षित की जयंती पर नहीं हुआ कोई कार्यक्रम ग्रामीण आहत बोले हुकूमत चलाने वालों को माफ नहीं करेगी जनता
जागरण टीम, आगरा। अध्यापक की नौकरी से त्यागपत्र देकर आजादी के आंदोलन में कूदने वाले मई गांव के गेंदालाल दीक्षित के लिए सरकारी उपेक्षा से स्वजन ही नहीं गांव के लोग भी आहत हैं। मंगलवार को उनकी जयंती पर न तो कोई अधिकारी, जनप्रतिनिधि गांव में पहुंचा और न ही कोई कार्यक्रम आयोजित किया गया। तस्वीर पर दो पुष्प गुच्छ अर्पित करने वाला भी कोई नहीं दिखा। गांव के लोग कहते हैं कि आजादी के ऐसे तमाम नायकों को सरकार आज भी सम्मान नहीं दिला सकी है। हुकूमत चलाने वालों को जनता कभी माफ नहीं करेगी।
बाह की तीर्थनगरी बटेश्वर से सटे मई गांव में 30 नवंबर 1888 को जन्मे गेंदालाल दीक्षित पठन-पाठन में रुचि रखते थे। औरेया में शिक्षण कार्य के दौरान आजादी का बिगुल बजा तो जरा भी पीछे नहीं हटे। अपने नौकरी से त्यागपत्र देकर मतवालों की सेना में शामिल हो गए। तब चंबल बीहड़ बेल्ट में डाकुओं का खौफ था। क्रांतिकारियों ने चंबल के डाकुओं को अपनी सेना में शामिल करने का जिम्मा उन्हें दिया तब भी उनके कदम नहीं डगमगाए। वक्त का इंतजार किया और डाकुओं का हृदय परिवर्तन कराया। उनके हथियार आजादी की जंग में चमके तो गोरों की भी घिग्घी बंध गई। समय बीत गया। गांव के श्रीमोहन शर्मा, पूर्व प्रधान गंगा सिंह, दिनेश चंद मिश्रा, मोहनलाल, जगन्नाथ, मातादीन, राजबहादुर, अमर चंद कहते हैं कि सरकारें आई और गई लेकिन किसी ने भी उनकी शहादत को सलाम नहीं किया। गांव में खंडहर पड़ी हवेली इस बात का गवाह है। जिसके हकदार थे, वह सम्मान नहीं मिला
क्रांतिकारी गेंदालाल दीक्षित के परिवार के राम सिंह आजाद, महेश व नरेंद्र बटेश्वर में रहते हैं। वे कहते हैं कि बाबूजी (गेंदालाल दीक्षित) ने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ छोड़ दिया और आंदोलन में कूद गए लेकिन सरकार ने उन्हें वह सम्मान नहीं दिया, जिसके वह हकदार थे। स्वजन कहते हैं कि उनकी खंडहर हवेली को धरोहर के रूप में संजोया जा सकता है। खाद चौराहे पर प्रतिमा लगाने की उठती रही मांग
बटेश्वर के खाद चौराहे से मई गांव की दूरी महज एक किलोमीटर होगी। क्षेत्र के ग्रामीण और समाजसेवी संस्था टीम भारतीय के प्रमुख घनश्याम भारतीय यहां गेंदालाल दीक्षित की प्रतिमा लगाने की मांग करते आ रहे हैं। खाद चौराहे को गेंदालाल चौक रखने की मांग भी उठी लेकिन अनदेखी के चलते यह ठंडे बस्ते में चली गई।