Navratra 2021: नवरात्र, नौ दिन की साधना, जानिए आखिर क्‍या है इस साधना का वैज्ञानिक रहस्‍य

आज हम बात करते हैं कि हर त्‍योहार की तरह नवरात्र एक ही बार क्‍यों नहीं होते हैं। जैसे होली दीपावली गणेश उत्‍सव आदि। विशेष माह की तिथियों पर त्‍योहार विशेष दिन आते हैं। नवरात्र के पवित्र दिनों में पृथ्वी का अक्ष सूर्य के साथ उचित कोण पर होता है।

By Prateek GuptaEdited By: Publish:Mon, 11 Oct 2021 12:50 PM (IST) Updated:Mon, 11 Oct 2021 12:50 PM (IST)
Navratra 2021: नवरात्र, नौ दिन की साधना, जानिए आखिर क्‍या है इस साधना का वैज्ञानिक रहस्‍य
वर्ष में दो बार नवरात्र होने के पीछे वैज्ञानिक कारण भी हैै।

आगरा, जागरण संवाददाता। नव शक्ति की आराधना के नौ दिन यानि नवरात्र। ये पवित्र दिन सनातन धर्म के लिए विशेष महत्‍व रखते हैं। यूं तो नवरात्र वर्ष में चार बार आते हैं लेकिन सांसारिक लोगों के लिए शारदीय और चैत्र नवरात्र में आराधना का विधान होता है। जबकि बाकि दोनों नवरात्र गुप्‍त नवरात्र कहलाए जाते हैं, जिन्‍हें गुप्‍त साधना करने वाले साधक करते हैं। अब बात करते हैं कि हर त्‍योहार की तरह नवरात्र एक ही बार क्‍यों नहीं होते हैं। जैसे होली, दीपावली, गणेश उत्‍सव आदि। विशेष माह की तिथियों पर त्‍योहार विशेष दिन आते हैं और उत्‍सव के साथ संपन्‍न कर लिये जाते हैं लेकिन नवरात्र वर्ष के माह में जनमानस मनाता है। इस मान्‍यता के पीछे सनातन धर्म के साथ विज्ञान का आधार भी छुपा है।

नवरात्र के इस रहस्‍य के बारे में धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी का कहना है कि नवरात्र के पवित्र दिनों में पृथ्वी का अक्ष सूर्य के साथ उचित कोण पर होता है। यह वह समय होता है जब हमारी पृथ्वी उस अलौकिक मेरुप्रभा को अधिकतम मात्रा में ग्रहण करती है। अन्य अवसरों पर पृथ्वी के अक्ष की दिशा गलत होने के कारण यह मेरुप्रभा प्रत्यावर्तित होकर वापस ब्रह्माण्ड में चली जाती है। वैज्ञानिकों का कहना है मेरुप्रभा में नौ प्रकार के ऊर्जातत्व विद्यमान हैं जो जीवन निर्माण और जीवनी शक्ति के अलावा प्राकृतिक शक्ति में सहयोगी होते हैं।

दो माह क्‍यों है विशेष

पंडित वैभव जोशी के अनुसार मार्च या अप्रैल चैत्र और सितंबर या अक्टूबर का समय चैत्र एवं आश्विन के महीनों में पड़ता है, जब दिन और रात लगभग बराबर होते है। यही वह समय होता वर्ष में दो बार जब पृथ्वी का अक्ष सूर्य के साथ सबसे अधिक सही कोण पर होता है और पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव का मुख मेरुप्रभा ग्रहण करने के लिए सबसे अधिक खुला होता है। परिणाम स्वरुप हमारी पृथ्वी में दैवीय ऊर्जा का विशाल भंडार भरने लगता है।

नौ दिनों में होता है नव जीवन का संचार

इस समय धरती पर चारों ओर हरियाली ही हरियाली छा जाती है। फल-फूल-पत्तियों की वृद्धि हो जाती है। पेड़ों पर बौर आ जाता है। कोयलों की कूक सुनाई देने लगती है, भंवरों का गुंजन सुनाई पडऩे लगता है। आरोग्य बढऩे लगता है, स्फूर्ति बढ़ जाती है। पंडित वैभव के अनुसार इन दोनों माह में ऋतु परिवर्तन होने लगता है। कण-कण में, अणु-परमाणु में हलचल होने लगती है और हो जाता है चारों ओर नव जीवन का संचार।

वैज्ञानिक प्रयोग में भी सिद्ध हो चुका ऊर्जा तत्व

पंडित वैभव बताते हैं वैज्ञानिक प्रयोगों से यह सिद्ध हो चुका है कि वे ऊर्जा तत्व इस अवधि में एक विशेष प्रकार की विद्युत धारा के रूप में परिवर्तित होकर उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों पर चादर की तरह फैले रहते हैं। प्रत्येक ऊर्जा तत्व अलग अलग विद्युत धाराओं के रूप में बदलता है। वे नौ प्रकार की विद्युत् धाराएं जहां एक ओर प्राकृतिक वैभव का विस्तार करती हैं, वहीं दूसरी ओर समस्त जीवधारी प्राणियों में जीवनी शक्ति की वृद्धि और मनुष्यों में एक विशेष चेतना विकसित करती हैं। भारतीय संस्कृति और साहित्य में उन नौ प्रकार की विद्युत धाराओं की परिकल्पना नवदुर्गा के रूप में की गयी है, नौ देवियों के रूप में की गयी है। प्रत्येक देवी एक विद्युत धारा की साकार मूर्ति है। देवियों के आकार, प्रकार, रूप आयुध वाहन आदि का भी अपना रहस्य है, जिनका सम्बन्ध इन्ही ऊर्जा तत्वों से ही है।

रात की साधना देती है ऊर्जा

ऊर्जा तत्वों और विद्युत धाराओं की गतिविधि के अनुसार प्रत्येक देवी की पूजा-अर्चना का विधान है और इसी विशेष विधान के लिए नवरात्रि की योजना की गयी है। प्रत्येक देवी की ऊर्जा की एक रात होती है। रात्रि में देवी की पूजा-अर्चना का विधान इसीलिये है क्योंकि इन दिनों मेरुप्रभा रात्रि के समय अधिक सक्रिय रहती है। हमारी भारतीय संस्कृति में इसीलिये इस अवसर को नवरात्र के पर्व के रूप में मान्यता दी गयी है। साथ ही यह विधान किया गया है साधक अधिक से अधिक रात्रि जागरण करें और पृथ्वी पर झरती हुई मेरुप्रभा की निर्झर वर्षा में अपने को सराबोर कर दिव्य लाभ अर्जित करने का पुण्य प्राप्त कर सके।

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