Mudiya Mela: मुड़िया पूर्णिमा पर मुंडन कराकर मुड़िया संत निभाएंगे सदियों पुरानी ये परंपरा

Mudiya Mela सुबह राधा श्याम सुंदर मंदिर और शाम को महाप्रभु मंदिर से निकलेगी शोभायात्रा। 556 में सनातन गोस्वामी के गोलोक गमन के बाद गौड़ीय संतों ने सिर मुड़वाकर उनके पार्थिव शरीर के साथ सप्तकोसीय परिक्रमा लगाई थी।

By Tanu GuptaEdited By: Publish:Wed, 21 Jul 2021 06:01 PM (IST) Updated:Wed, 21 Jul 2021 06:01 PM (IST)
Mudiya Mela: मुड़िया पूर्णिमा पर मुंडन कराकर मुड़िया संत निभाएंगे सदियों पुरानी ये परंपरा
गोवर्धन में पिछले कई वर्षों से दो मुड़िया शोभायात्रा निकलती हैं। फाइल फोटो

आगरा, जेएनएन। गोवर्धन के महाप्रभु मंदिर पर सनातन परंपरा एक बार फिर जीवंत होगी। श्रीपाद सनातन गोस्वामी की भजन स्थली पर मुड़िया संत गुरुवार को सिर मुड़वाकर परंपरा का निर्वहन करेंगे। शनिवार को संत सनातन गोस्वामी के राधा श्याम सुंदर मंदिर से सुबह और महाप्रभु मंदिर से शाम की बेला में शोभायात्रा निकाली जाएगी। चैतन्य महाप्रभु मंदिर के महंत गोपाल दास ने बताया कि अधिवास महोत्सव के साथ मुड़िया शोभायात्रा महोत्सव गुरुवार से शुरू हो जाएगा। पिछले कई वर्षों से दो मुड़िया शोभायात्रा निकलती हैं। सुबह राधा श्याम सुंदर मंदिर से तो शाम की बेला में महाप्रभु मंदिर से सनातन परंपरा का निर्वहन होता है। मुड़िया संतों की मान्यता के अनुसार, पश्चिम बंगाल में मालदा के गांव रामकेली के रहने वाले सनातन गोस्वामी बंगाल के राजा हुसैन शाह के यहां मंत्री थे। चैतन्य महाप्रभु की भक्ति से प्रभावित होकर सनातन गोस्वामी उनसे मिलने बनारस आ गए। चैतन्य महाप्रभु की प्रेरणा ने उन्हें भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति और ब्रजवास करा दिया। ब्रज के विभिन्न स्थलों पर सनातन ने भक्ति की। वह वृंदावन से रोजाना गिरिराज प्रभु की सप्तकोसीय परिक्रमा करने गोवर्धन आते थे। चकलेश्वर मंदिर पर बनी भजन कुटी उनकी भक्ति की साक्षी रही है। मुड़िया संतों के अनुसार, 1556 में सनातन गोस्वामी के गोलोक गमन के बाद गौड़ीय संतों ने सिर मुड़वाकर उनके पार्थिव शरीर के साथ सप्तकोसीय परिक्रमा लगाई। तभी से गुरु पूर्णिमा को मुड़िया पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। अबकी बार गौड़ीय संतों द्वारा 465वां मुड़िया महोत्सव धार्मिक आयोजनों के साथ मनाया जा रहा है।

भक्ति के बल पर सनातन ने प्रकट कर लिए ''गिरिराजजी''

 देश में व्यास पूर्णिमा और गुरु पूर्णिमा के नाम से विख्यात आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा ब्रज में मुड़िया पूर्णिमा या पूनौ के नाम से विख्यात है। परिक्रमा की शुरूआत संत सनातन गोस्वामी के तिरोभाव के साथ हुई। ब्रज से जुड़ी पांडुलिपियों में उल्लेख है कि ठा. मदन मोहन के साधक एवं चैतन्य महाप्रभु के अनुयायी सनातन गोस्वामी प्रतिदिन आराध्य की सेवा पूजाकर गिरिराजजी की परिक्रमा करने जाते थे। जीवन के अंतिम पड़ाव में जब परिक्रमा करने में सक्षम न रहे सनातन को भगवान ने दर्शन देकर गिरिराज शिला प्रदान की और कहा कि वह उसी शिला की परिक्रमा करेंगे तो गिरिराज परिक्रमा का पुण्य मिलेगा। राधा दामोदर मंदिर में यह शिला आज भी विद्यमान है। इसके बाद जब सनातन गोस्वामी का तिरोभाव हुआ तो उनके शिष्यों ने मुंडन कराकर सनातन गोस्वामी के पार्थिव शरीर को गिरिराज परिक्रमा हरिनाम संकीर्तन करते हुए कराई। उनके अनुयायी हर साल गुरु पूर्णिमा के दिन गिरिराज परिक्रमा संकीर्तन करते हुए करते हैं। बाद में इस पूर्णिमा का नाम मुड़िया पूर्णिमा पड़ गया। अब इसका स्वरूप बदल गया है। गोवर्धन के ही गौड़िया संत मुंडन कराकर परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं। कोरोना संक्रमण के चलते प्रशासन ने मुड़िया मेला निरस्त कर दिया है, इसलिए मुड़िया परंपरा सूक्ष्म रूप में निभाई जा रही है।

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