कान्हा की नगरी में अलौकिक है भोर, साधना से होती है यहां साधकों की दिनचर्या शुरू

अक्षय तृतीया पर स्वामी हरिदास ने ठा. बांकेबिहारी का वह श्रृंगार किया जिसके दर्शन से बद्रीनाथ के दर्शन का पुण्य प्राप्त होता है। यही कारण है कि अक्षय तृतीया के दिन बद्रीनाथ के जब दर्शन खुलते हैं तो वृंदावन के संत बद्रीनाथ नहीं जाते।

By Tanu GuptaEdited By: Publish:Mon, 26 Oct 2020 03:17 PM (IST) Updated:Mon, 26 Oct 2020 03:17 PM (IST)
कान्हा की नगरी में अलौकिक है भोर, साधना से होती है यहां साधकों की दिनचर्या शुरू
वृंदावन की भूमि का ही असर है, कि सदियों से यहां जो भी साधक आया यहीं का होकर रह गया।

आगरा, जेएनएन। साधकों की स्थली श्रीधाम वृंदावन में भक्ति का प्रभाव ऐसा कि कोई भी व्यक्ति इस भूमि पर कदम रखता है तो हृदय भक्ति से झंकृत हो जाता है। भूमि का ही असर है, कि सदियों से यहां जो भी साधक आया

यहीं का होकर रह गया। ऐसे कई प्रमाण हैं कि सैकड़ों की नहीं हजारों की संख्या में ऐसे साधक हैं, जिन्होंने वृंदावन की धरती पर कदम रखा तो इसकी परिधि से बाहर कदम ही नहीं रखा। फिर चाहे कितनी भी जरूरत इस वृंदावन से बाहर जाने की क्यों न हो। एक उदाहरण अक्षय तृतीया पर ठा. बांकेबिहारी के प्राकट्यकर्ता स्वामी हरिदास के उस वाकये से स्पष्ट होता है, जिसमें अक्षय तृतीया पर स्वामी हरिदास ने ठा. बांकेबिहारी का वह श्रृंगार किया

जिसके दर्शन से बद्रीनाथ के दर्शन का पुण्य प्राप्त होता है। यही कारण है कि अक्षय तृतीया के दिन बद्रीनाथ के जब दर्शन खुलते हैं तो वृंदावन के संत बद्रीनाथ नहीं जाते, ठा. बांकेबिहारी के दर्शन कर बद्रीनाथ दर्शन का पुण्य प्राप्त करते हैं। इन साधकों की दिनचर्या पर आज प्रकाश डालें तो किसी बड़े साधक से कम नहीं। वृंदावन में साधना करने वाले साधकों की दिनचर्या भोर की पहली किरण से पहले ही शुरू हो जाती है। वृंदावन में साधना करने वाले साधक भोर में ही चार बजे पंचकोसीय परिक्रमा को निकलते हैं, उसके बाद आराध्य दर्शन और फिर अपनी साधना में रत हो जाते हैं। पंचकोसीय परिक्रमा में आम दिनों में केवल ये साधक ही नजर आते हैं। 

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