पहले बंदरों का भरते पेट तब करते रोजा इफ्तार
नार्थ ईदगाह कालोनी के रहने वाले इकबाल से है बंदरों की दोस्ती घर की छत पर रोज जुटते है झुंड कभी सिर तो कभी कंधे पर चढ़ जताते दुलार
आगरा, (अली अब्बास)। पिछले साल लाकडाउन में भूख से व्याकुल बंदरों को खुराक दे शारिक इकबाल उनके दोस्त बन गए और दोस्तों के बीच 'मंकी मैन'। दोस्ती का आलम यह है कि बंदर अब कभी उनके सिर पर तो कभी कंधे पर बैठ दुलारते हैं। उनके इर्द-गिर्द जमे रहते हैं, गलती करने पर डांट खाकर सहम जाते हैं। रमजान के महीने में भी शारिक शाम को बंदरों का पेट भरे बिना रोजा इफ्तार नहीं करते।
ईदगाह कालोनी निवासी शारिक इकबाल पेशे से अधिवक्ता हैं। वह बताते हैं कि बंदरों से उनकी दोस्ती पिछले साल अप्रैल में लाकडाउन के दौरान हुई। लोग घरों में कैद थे, ऐसे में बंदरों को भोजन नहीं मिल पा रहा था। एक शाम वह अपनी छत पर बैठकर चाय पी रहे थे, बंदर के चार बच्चे उनकी बालकनी पर आकर बैठ गए। उन्होंने अपने पास रखे बिस्कुट उन्हें खाने को दे दिए। इसे खाने के बाद वह बिना डरे उनके पास आकर बैठ गए। उन्हें कुछ और बिस्कुट खाने के लिए दिए, इसे खाकर वे चले गए। इसके बाद बंदर के ये बच्चे रोज शाम को उनके चाय पीने के समय छत पर आ जाते। वह उन्हें चने, बिस्कुट और केले देते। कुछ दिन बाद ही बंदरों के चार-पांच झुंड उनकी छत पर आने लगे। वह उनके हाथ से खाने का सामान लेकर चुपचाप दूर जाकर खाने लगते। करीब एक महीने में बंदरों से उनकी खूब दोस्ती हो गई। शाम को सवा पांच से छह बजे के बीच बंदरों के झुंड उनकी छत पर आ जाते हैं। रमजान के महीने में भी उनका यह सिलसिला नहीं टूटा है। वह इफ्तारी से पहले बंदरों को छत पर जाकर फल और चने आदि खिलाते हैं।
डांटने पर समझ जाते हैं अपनी गलती
शारिक बताते हैं, कभी-कभी जब कोई बंदर शरारत करता है, उसे डांटने पर वह तत्काल शांत हो जाता है। उनके पास आकर चुपचाप बैठ जाता है। कई बार तो कोई बंदर फल ज्यादा उठाकर ले जाने लगता है तो डांटने पर अपने हिस्से के लेकर बाकी छोड़ जाता है। उनके घर में दर्जनों पेड़-पौधे लगे हैं। बंदरों ने आज तक कोई पौधा तो दूर फूल भी खराब नहीं किया।