केंद्रीय हिंदी संस्थान में मिटा दीं विदेशी छात्रों की यादें, हरे पेड़ों पर चलाई कुल्हाड़ी

खुले मंच के निर्माण के लिए काटे गए अशोक के हरे पेड़। साहित्यकार रामविलास शर्मा की मूर्ति का स्थान बदलने से भी रोष। पेड़ों को काटने के बाद तने भी हटाए गए। बनाया जा रहा खुला मंच। होना है लैंडस्केपिंग का काम।

By Nirlosh KumarEdited By: Publish:Thu, 21 Jan 2021 03:12 PM (IST) Updated:Thu, 21 Jan 2021 03:12 PM (IST)
केंद्रीय हिंदी संस्थान में मिटा दीं विदेशी छात्रों की यादें, हरे पेड़ों पर चलाई कुल्हाड़ी
केंद्रीय हिंदी संस्थान में हरे पेड़ों की बलि चढ़ा दी गई।

आगरा, जागरण संवाददाता। केंद्रीय हिंदी संस्थान ने अपने पूर्व विदेशी छात्रों की यादों को मिटा दिया है। शिक्षा ग्रहण करने के बाद यहां से रवाना होने से पूर्व अपनी यादों को पौधे के रूप में लगाकर गए विदेशी छात्रों की यादें अब परिसर में नहीं दिखेंगी। संस्थान परिसर में फव्वारे के स्थान पर हो रही लैंडस्केपिंग और खुले मंच के निर्माण को कई हरे पेड़ काटे गए हैं। दो दिन से यह मामला संस्थान में गर्माया हुआ है।

संस्थान परिसर में वर्षाें पुराने फव्वारे के स्थान पर लैंडस्केपिंग यानी बगीचा विकसित करने का काम पिछले वर्ष शुरू हुआ था। इसके साथ ही वहां विदेशी उपवन के आगे एक ओपन स्टेज यानी खुले मंच का भी निर्माण किया जा रहा है। इस खुले के मंच के आगे बने विदेशी उपवन में विदेशी छात्रों द्वारा लगाए गए पौधे हैं, जो अब 20-20 फीट ऊंचे पेड़ बन चुके हैं। इनमें से कुछ पेड़ सोमवार को काट दिए गए। यह पेड़ अशोक के बताए गए हैं। इन पेड़ों के काटने की खबर दैनिक जागरण ने प्रकाशित की। मंगलवार को कटे पेड़ों के तने भी हटा दिए गए। संस्थान में विदेशी उपवन के साथ ही स्वदेशी उपवन भी है, जिसमें स्वदेशी छात्र संस्थान से जाते समय अपनी याद के तौर पर पौधे लगाते हैं। संस्थान में निवर्तमान निदेशक प्रो. नंद किशोर पांडेय के कार्यकाल में फव्वारे के स्थान पर बगीचा बनाने का प्रस्ताव पारित हुआ था। इस फव्वारे के हटने से भी विदेशी छात्र, स्वदेशी छात्र और शिक्षकों में काफी निराशा थी। इंटरनेट मीडिया पर इसे लेकर काफी रोष भी व्यक्त किया गया था।

बदल दिया मूर्ति का स्थान

संस्थान परिसर में साहित्यकार रामविलास शर्मा की मूर्ति भी लगी हुई है, जिसका स्थान अब बदल दिया गया है। इस मूर्ति को अब मुख्य गेट के पास स्थापित कर दिया गया है। इस मूर्ति का अनावरण लगभग 15 वर्ष पहले निवर्तमान निदेशक प्रो. शंभुनाथ के कार्यकाल में हुआ था। उसी समय संस्थान को स्थापित करने में मुख्य योगदान देने वाले मोटूरि सत्यनारायण की मूर्ति भी स्थापित की गई थी। मूर्ति के बदलाव से भी संस्थान में रोष है। कुछ शिक्षकों ने दबी जुबान में इसका विरोध भी किया। उनका कहना था कि जिस साहित्यकार को पाठ्यक्रम में पढ़ाया जा रहा है, उसकी मूर्ति की इस तरह से बेकदरी नहीं होनी चाहिए।

दो दिन से गर्माया हुआ है मामला

पेड़ काटने की खबर दैनिक जागरण में प्रकाशित होने के बाद संस्थान में यह मामला गर्माया हुआ है। मंगलवार को कटे हुए पेड़ों के तने भी हटा दिए गए। अब वहां सिर्फ ठूंठ बचे हैं। इस मामले पर संस्थान की निदेशक प्रो. बीना शर्मा का कहना है कि पेड़ काटे नहीं गए हैं, सिर्फ कांट-छांट की गई है। खुले मंच के निर्माण के लिए यह किया गया है।

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