Lunar and Solar Eclipse 2020: ग्रहण महज खगोलीय घटना या फिर कुछ और? जानिए इस सवाल का जवाब

Lunar and Solar Eclipse 2020 2020 में कुछ समय के अंतराल में ही छह ग्रहण पड़ेंगे। एक ग्रहण 10 जनवरी को पड़ चुका है जबकि तीन जून-जुलाई में पड़ने वाले हैं।

By Tanu GuptaEdited By: Publish:Wed, 27 May 2020 03:03 PM (IST) Updated:Fri, 05 Jun 2020 01:00 AM (IST)
Lunar and Solar Eclipse 2020: ग्रहण महज खगोलीय घटना या फिर कुछ और? जानिए इस सवाल का जवाब
Lunar and Solar Eclipse 2020: ग्रहण महज खगोलीय घटना या फिर कुछ और? जानिए इस सवाल का जवाब

आगरा, तनु गुप्‍ता। यूं तो सूर्य और चंद्र ग्रहण एक खगोलीय घटना है। वैज्ञानिक और ज्योतिषीय नजरिए से इसका विशेष महत्व है। वैज्ञानिक रूप से ग्रहण एक अनूठी खगोलीय घटना है जबकि धार्मिक और ज्योतिष नजरिए से ग्रहण की घटना व्यक्ति के जीवन पर विशेष प्रभाव डालती है। कई मान्‍यताओं में ग्रहण को अशुभ भी माना गया है। 2020 कोरोना वायरस की महामारी को अपने साथ लेकर आया है और इसी वर्ष छह ग्रहण की घटनाएं इस महामारी के दौर को शंका में बदलती भी हैं। ऐसे में ग्रहण के रहस्‍यों को समझने के लिए जागरण डॉट कॉम ने धर्म विज्ञान शोध संस्‍थान, उज्‍जैन के शोध के बारे में निदेशक डॉ जे जोशी से फोन पर बात की।

उन्‍होंने बताया कि सनातन धर्म में ग्रहणकाल का विशेष महत्‍व बताया गया है। 2020 में कुछ समय के अंतराल में ही छह ग्रहण पड़ेंगे। एक ग्रहण 10 जनवरी को पड़ चुका है जबकि तीन जून-जुलाई में पड़ने वाले हैं। डॉ जे जोशी के अनुसार यूं तो ग्रहण पड़ना महज एक खगोलीय घटनाक्रम भर है। विज्ञान के अनुसार पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है जबकि चंद्रमा पृथ्वी के चारो ओर घूमती है। पृथ्वी और चंद्रमा घूमते-घूमते एक समय पर ऐसे स्थान पर आ जाते हैं जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा तीनो एक सीध में रहते हैं। जब पृथ्वी धूमते-धूमते सूर्य व चंद्रमा के बीच में आ जाती है। चंद्रमा की इस स्थिति में पृथ्वी की ओट में पूरी तरह छिप जाता है और उस पर सूर्य की रोशनी नहीं पड़ पाती है इसे चंद्र ग्रहण कहते है। वहीं जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच में आ जाती है और वह सूर्य को ढ़क लेता है तो इसे सूर्य ग्रहण कहते है।

क्‍या है धार्मिक महत्‍व

डॉ जे जोशी के अनुसार सूर्य देवता के अस्त होते ही चंद्रदेव अपना शीतल प्रकाश पृथ्वी पर बिखेरने लगते हैं। सनातन परंपरा में तमाम देवी-देवताओं की तरह चंद्रदेव भी पूज्य हैं। चंद्रमा के जन्म को लेकर तमाम तरह की पौराणिक कथाओं का जिक्र मिलता है। मत्स्य एवं अग्नि पुराण में चंद्रदेव के जन्म की कथा के अनुसार एक बार जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचने का विचार आया तो उन्होंने उससे पहले मानस पुत्रों की रचना की। इन्हीं मानस पुत्रों में से एक ऋषि अत्रि का विवाह ऋषि कर्दम की कन्या अनुसुइया से हुआ था। जिनसे दुर्वासा, दत्तात्रेय व सोम नाम के तीन पुत्र हुए। मान्यता है कि सोम चन्द्रदेव का ही एक नाम है और वह इन्हीं दोनों की संतान हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के समय जब अमृत निकला तो उसे लेने के लिए देवताओं और दानवों के बीच लड़ाई होने लगी। देवताओं को मिले अमृत पर दानव भी हक जता रहे थे। इस विवाद को दूर करने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी नाम की सुंदर कन्या का रूप धारण उसका बंटवारा करने की बात कही। जब मोहिनी के वेष में भगवान विष्णु देवताओं की पंक्ति में अमृत बांट रहे थे तो राहु नामक असुर भी उनके बीच जाकर चुपचाप बैठ गया। लेकिन इस बात की भनक भगवान सूर्यदेव और चंद्रदेव को लग गई। हालांकि तब तक देर हो चुकी थी और राहु ने अमृत प्राप्त कर लिया था, लेकिन उसी समय भगवान विष्णुने अपने सुदर्शन चक्र से उसकी गर्दन धड़ से अलग कर दी। अमृत पीने के कारण वह मरा नहीं और उसका सिर और धड़ राहु और केतु नामक छाया ग्रह के रूप में स्थापित हो गए। धार्मिक मान्यता के अनुसार राहु और केतु के कारण ही चंद्रग्रहण और सूर्य ग्रहण की घटना घटती है। हालांकि विज्ञान के अनुसार जब सूर्य की परिक्रमा करती हुई पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच में आ जाती है तो चंद्रमा पर पड़ने वाली सूर्य की किरणें नहीं पहुंच पाती हैं और उस पर पृथ्वी की छाया पड़ने लगती है। जिसके कारण चांद दिखना बंद हो जाता है और यह खगोलीय घटना चंद्र ग्रहण कहलाती है। 

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