Ahoi Ashtmi: संतान की लंबी आयु के लिए माताओं ने रखा निर्जला व्रत, ये है विधान Agra News
21 अक्टूबर को है अहोई अष्टमी का व्रत। माताएं रखती हैं संतान की सलामती के लिए व्रत।
आगरा, जागरण संवाददाता। संतान की मंगल कामना के लिए माताओं ने सोमवार को अहोई अष्टमी का व्रत रखा है। उत्तर भारत में प्रचलित यह करवा चौथ के चौथे दिन और दीपावली से आठ दिन पहले किया जाता है। कार्तिक माह की कृष्णपक्ष की अष्टमी को यह व्रत अाता है। व्रत के महत्व के बारे में धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी का कहना है कि किसी ने कहा है कि ईश्वर हर जगह हरेक के साथ हर वक्त मौजूद नहीं रह सकता है इसलिए उसने मां को बना दिया। मां की प्रार्थना में बहुत शक्ति होती है। ये बात यूं ही नहीं कही जाती। इसके पीछे गूढ़ रहस्य छुपा है।
मां, यह शब्द महज नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ कोख से जन्म देने से ही मां का दायित्व पूर्ण हो जाता है। दुनिया में आदर्श माने जाने वाली मां पार्वती और यशोदा हैं। पुराणों के अनुसार दोनों ने ही अपनी कोख से जन्म नहीं दिया था। मां पार्वती को कामदेव की पत्नी का श्राप था जिसके चलतेे वो अपने गर्भ से संतान को जन्म नहीं दे सकती थीं। इसलिए कहा जाता है कि गणेश जी को पार्वती ने अपने शरीर के मैल और माटी से बनाया था। वहीं भगवान कृष्ण की मां यशोदा के बारे में सभी जानते हैं। कान्हा को जन्म देवकी ने दिया लेकिन ममता उड़ेली यशोदा जी ने। मां की इसी महिमा को और दृढ़ता देता है अहोई अष्टमी का व्रत।
धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी
पवित्र माह कार्तिक मेंं पवित्र त्योहार
कार्तिक मास की काफी महत्ता है और इसकी महिमा का बखान पद्मपुराण में भी किया गया है। कहा जाता है कि इस माह में प्रत्येक दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करने, ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने, गायत्री मंत्र का जप एवं सात्विक भोजन करने से महापाप का भी नाश होता है। इसलिए इस माह में आने वाले सभी व्रत का विशेष फल है और यही कारण है कि इस माह मनाये जाने वाले अहोई अष्टमी पर्व का भी काफी महत्व है। कुल मिलाकर यह पर्व किसी भी तरह की अनहोनी से बचाने वाला है।
क्या है अहोई अष्टमी
पंडित वैभव बताते हैं कि संतान की भलाई के लिए माताएं अहोई अष्टमी के दिन सूर्योदय से लेकर गोधूलि बेला (शाम) तक उपवास करती हैं। शाम के वक्त आकाश में तारों को देखने के बाद व्रत तोड़ने का विधान है। हालांकि कुछ महिलाएं चन्द्रमा के दर्शन करने के बाद व्रत को तोड़ती हैं। चंद्र दर्शन में थोड़ी परेशानी होती है, क्योंकि अहोई अष्टमी की रात चन्द्रोदय देर से होता है। नि:संतान महिलाएं संतान प्राप्ति की कामना से भी अहोई अष्टमी का व्रत करती हैं।
अहोई अष्टमी व्रत विधि
इस दिन सुबह उठकर स्नान करने और पूजा के समय ही संतान की लंबी अायु और सुखमय जीवन के लिए अहोई अष्टमी व्रत का संकल्प लिया जाता है। अनहोनी से बचाने वाली माता देवी पार्वती हैं इसलिए इस व्रत में माता पर्वती की पूजा की जाती है। अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवार पर अहोई माता के चित्र के साथ ही स्याहु और उसके सात पुत्रों की तस्वीर भी बनाई जाती है। माता जी के सामने चावल की कटोरी, मूली, सिंघाड़ा अादि रखकर कहानी कही और सुनी जाती है। सुबह पूजा करते समय लोटे में पानी और उसके ऊपर करवे में पानी रखते हैं। इसमें उपयोग किया जाने वाला करवा वही होना चाहिए, जिसे करवा चौथ में इस्तेमाल किया गया हो। दिवाली के दिन इस करवे का पानी पूरे घर में भी छिड़का जाता है। शाम में इन चित्रों की पूजा की जाती है। लोटे के पानी से शाम को चावल के साथ तारों को अर्घ्य दिया जाता है। अहोई पूजा में चांदी की अहोई बनाने का विधान है, जिसे स्याहु कहते हैं। स्याहु की पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से की जाती है।
अहोई अष्टमी व्रत कथा
प्राचीन काल में एक साहुकार के सात बेटे और सात बहुएं थींं। इस साहुकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं और ननद मिट्टी लाने जंगल गई। साहुकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने सात बेटों से साथ रहती थी। मिट्टी काटते हुए ग़लती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से स्याहू का एक बच्चा मर गया। स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी।
स्याहू की बात से डरकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभीयों से एक एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं वे सात दिन बाद मर जाते हैं। इसके बाद उसने पंडित को बुलवाकर उपाए पूछा तो पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।
सेवा से प्रसन्न सुरही उसे स्याहु के पास ले जाती है। इस बीच थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं। अचानक साहुकार की छोटी बहू देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है। वहां स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहु होने का अशीर्वाद देती है। स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहु का घर पुत्र और पुत्र वधुओं से हरा भरा हो जाता है।