Chaitra Navratri 2021: कल गुड़ी पड़वा पर जरूर करें ये एक काम, सेहत का राज छुपा है इस एक दिन में

Chaitra Navratri 2021 गुड़ी पड़वा को सृष्टि के उत्पत्ति का दिवस कहा जाता है। इस दिन ब्रह्मरन्ध्र खुलता है जो सभी प्रकार से शरीर को स्वस्थ रखता है और स्थूल सूक्ष्म और कारण रूप की तीनों अवस्थाओं में ईश्वर उपलब्धि हो जाती है।

By Tanu GuptaEdited By: Publish:Mon, 12 Apr 2021 03:38 PM (IST) Updated:Mon, 12 Apr 2021 03:38 PM (IST)
Chaitra Navratri 2021: कल गुड़ी पड़वा पर जरूर करें ये एक काम, सेहत का राज छुपा है इस एक दिन में
गुड़ी पड़वा को सृष्टि के उत्पत्ति का दिवस कहा जाता है।

आगरा, जागरण संवाददाता। गुड़ी यानि शरीर और पड़वा यानि शरीर रचना का प्रथम दिवस ऐसा वैज्ञानिक वरदान है जिसके उत्सव से वर्षभर मानव रोगरहित होकर स्वस्थ शरीर धारण करता है। चैत्र का अर्थ है चेतना। कल यानि चैत्र नवरात्र का पहला दिन मानव चेतना को जाग्रत करने का विशेष दिन है। इस दिन सिर ढककर रखने का विशेष महत्व होता है। इसका आधार धार्मिक के साथ वैज्ञानिक भी है। इस बारे में धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जय जोशी बताते हैं कि गुड़ी पड़वा को सृष्टि के उत्पत्ति का दिवस कहा जाता है। इस दिन ब्रह्मरन्ध्र खुलता है जो सभी प्रकार से शरीर को स्वस्थ रखता है और स्थूल, सूक्ष्म और कारण रूप की तीनों अवस्थाओं में ईश्वर उपलब्धि हो जाती है। इसी समय शीतकाल में लिया गया पोषण मस्तिष्क की चेतना को जाग्रत करता है। इसी दिन वंशागत अकस्मात परिवर्तन होता है। विज्ञान में इसे उत्परिवर्तन या म्यूटेशन कहते हैं।

क्या होता है फायदा 

इस दिन टोपी लगाने या सिर पर पल्ला रखने से परमात्मा की शक्तियां शरीर में प्रवेश करती है, वह बाहर नहीं निकल पाती हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कहें तो शरीर से निकलने वाले हार्मोंस, एंजाइम आदि मस्तिष्क रोग जैसे थक्का बनना, मानसिक आघात, मस्तिष्क में फोड़ा होना, मानसिक रूप से विकृत होना आदि बीमारियों से मुक्ति मिलती है और चेहरे पर ओज बढ़ता है। विशेषकर गर्भवती स्त्री एवं जो पुरुष पिता बनने वाले हों ऐसे पुरुष टोपी लगाकर रखें तो संतान संस्कारित, विनम्र, आज्ञाकारी और बुद्धिमान होती है।

इस मंत्र के साथ ढंकें अपना सिर 

शं नो मित्र: शं वरुण:। शं नो भवत्वर्यभा। शं न इंद्रो बृहस्पति:। शं नो विष्णुरुरुक्रम:। नमो ब्रह्मणे। नमस्ते वायो। त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मावाहिष्यामि। ऋतमवाहिष्यामि। सत्यमवाहिष्यामि। तन्मामावीत। तद्धक्तारमावीत्। आवीन्माम्। आवीद्भक्ताश्म। शांति:। शांति:।। शांति:।।

इस पर्व पर शिरोवरण करके यह प्रार्थना करने से स्मृति और बुद्धि में परिपक्वता आती है। क्योंकि इस दिन अंतर्यामी परमेश्वर की ऊर्जाओं का प्रभाव शरीर में होता है। शरीर की सभी अंतरस्त्रावी ग्रंथियां समन्वय प्राप्त करती हैं।

विद्यार्थी रखें विशेष ध्यान

इस दिन विद्यार्थियों को सिर जरूर ढंकना चाहिए। क्योंकि टोपी आदि अग्र मस्तिष्क (डायन सेफेलान), पश्चभाग सुषम्ना (मेड्युला आब्लागगेटा) और पीयूष ग्रंथि पर नियंत्रण रखती है। मस्तिष्क को चैतन्य बनाने में पूरी तरह से तैयार रहती है।

होता है क्रोध पर नियंत्रण

कभी सोचा है आपने कि सभी देवी देवताओं के श्रंगार में मुकुट विशेष होता है। सारे महाराजा मुकुट पहनते थे। इसके पीछे के कारण को डॉ. जेजे बताते हैं कि शिरोवरण न्याय का प्रतीक है। वहीं वैज्ञानिक नजरिय से बताएं तो क्रोध की उत्पत्ति का मुख्य कारण एड्रिनल ग्रंथियों से निकलने वाले हार्मोन है। यह ग्रंथि किडनी के पास होती है। जितना यह हार्मोन अधिक मात्रा में स्त्रावित होगा, उतना ही ज्यादा क्रोध आएगा। इन सभी ग्रंथियों का नियंत्रण पीयूष ग्रंथि करती है। यह मस्तिष्क में पाई जाती है। पढऩे, मंगल कार्यों में, आराधना, न्याय करने आदि में शिरोवरण आवश्यक है। वहीं भोजन और मैथुन के समय सिर नहीं ढंकना चाहिए। इसके पिछे वैज्ञानिक कारण है कि क्रोध पर नियंत्रण के लिए प्रभुत्व वाली ग्रंथि की ऊर्जा के समन्वय के लिए प्रार्थना, दर्शन आदि के समय शिरोवरण करने से क्रोध पर नियंत्रण रहता है और सोचने समझने की क्षमताएं बढ़ती हैं।

त्वचा रोग और कैंसर से मुक्ति

सूर्य से निकलने वाली अल्ट्रावायलेट शरीर में त्वचा रोग और कैंसर रोग की जन्मदाता है। मस्तिष्क, नेत्र रोग को जागृत करके पीड़ा पहुंचाती है। यदि गुड़ी पड़वा पर शिरोपरण करते हैं तो सूर्य की प्रथम किरण की पराबैंगनी किरणों का मार्ग स्‍वत: अवरुद्ध हो जाता है। यदि पूर्वजों ने वैज्ञानिक प्रमाण के साथ इस पर्व का आरंभ किया है तो इसका पालन मानव की सुरक्षा है। शिखा बंधन यदि नहीं हो तो शिरोवरण आवश्यक है। शिखा का बंधन विषरन्ध्र के वियोजन का मार्ग है। पर्यावरण के विष को अंदर प्रवेश नहीं करने देती और अंदर के विष का विसर्जन करती है।  

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