पुलिस ने बच्चों से बचपन छीना, दंपती के पांच वर्ष, पढ़ें आगरा की मन को झकझोरने वाली खबर

हत्या के आरोप में बेकसूरों को भेज दिया था जेल कोर्ट में नहीं मिले साक्ष्य। सलाखों के पीछे गुजारे पांच वर्षों की याद कर आंखों से टपकने लगे आंसू। कोर्ट ने मामले में तत्कालीन इंस्पेक्टर के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। मगर वह भी अब रिटायर हो चुके हैं।

By Tanu GuptaEdited By: Publish:Sun, 24 Jan 2021 09:32 AM (IST) Updated:Sun, 24 Jan 2021 09:32 AM (IST)
पुलिस ने बच्चों से बचपन छीना, दंपती के पांच वर्ष, पढ़ें आगरा की मन को झकझोरने वाली खबर
कोर्ट ने जेल से पांच वर्ष बाद दिए दंपती को रिहाइ के आदेश। प्रतीकात्मक फोटो

आगरा, यशपाल चौहान। इसे पुलिस की लापरवाही या मनमानी। हत्या के मामले में निर्दोष दंपती को ही जेल भेज दिया था। जबकि वे चिल्ला-चिल्लाकर खुद को बेगुनाह बता रहे थे। बिना सुबूतों के पुलिस की कहानी अदालत में नहीं टिक सकी। दंपती को अदालत के आदेश पर अब रिहा कर दिया गया। अब वे बाहर तो आ गए, लेकिन उनके बच्चों का पांच वर्ष में बचपन छिन गया। दंपती के भी पांच वर्ष सलाखों के पीछे गुजर गए। अब उनके गुजरे पांच वर्ष कौन लौटाएगा यह बड़ा सवाल है? हालांकि कोर्ट ने इस मामले में तत्कालीन इंस्पेक्टर के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। मगर, वह भी अब रिटायर हो चुके हैं। 

बाह के जरार गांव में एक सितंबर 2015 को छह वर्षीय रंजीत की गला रेतकर हत्या कर दी गई थी। इस मामले में रंजीत के पिता योगेंद्र ने पास में ही रहने वाले नरेंद्र और उनकी पत्नी नजमा के खिलाफ हत्या का नामजद मुकदमा दर्ज कराया था। अब दोनों साक्ष्य के अभाव में अदालत से बरी हो गए हैं। हत्या के आरोप में पांच वर्ष तक जेल में रहने के बाद रिहा हुए नरेंद्र वर्मा ने जागरण को बताया कि उन्होंने नजमा से लव मैरिज की थी। दिन में पांचवीं तक के बच्चों को स्कूल में पढ़ाते थे। नजमा की चूड़ी की दुकान थी। उन्होंने कोतवाल धर्मशाला में किराए पर कमरा ले रखा था। रात में नजमा बच्चों के साथ इसमें रहती थी। नरेंद्र अपने घर चला जाता था। सब कुछ ठीक चल रहा था। दो सितंबर 2015 को बराबर के बंद घर की छत पर रंजीत का शव मिलने के बाद उनकी जिंदगी तबाह हो गई। नजमा खुद रंजीत के घर उसकी मां श्वेता को सूचना देने गई। मैं थाने से पुलिस को बुलाकर लाया। निर्दोष होते हुए भी हम पर हत्या का आरोप लगाया गया। लोगों ने जाम लगाकर हंगामा कर दिया था। इस दबाव में पुलिस ने आंख बंद कर ली। असली गुनहगारों को ढूंढ़ने के बजाय पुलिस ने हमें ही जेल भेज दिया। जेल में एक-एक पल मुश्किल से बीता। 70 वर्षीय बुजुर्ग पिता भगवान दास पैरवी कर रहे थे। अधिवक्ता वंशो बाबू ने न्याय दिलाने का भरोसा दिलाया। इसके बाद न्याय की लड़ाई लड़ी। मगर, जेल में सभी कहते थे कि तुम बाहर नहीं निकल पाओगे। हमें भी एक बार ऐसा ही लगा था। मगर, पिता की पैरवी से उम्मीद कायम थी। 21 जनवरी को जेल से रिहा हुए तो ऐसा लगा कि नया जन्म हुआ है। अब उनके आंसू नहीं थम रहे हैं। उनका कहना है कि बच्चे अजीत और अंजू पांच वर्ष से बाहर भटक रहे हैं। चार वर्ष तक तो वे दादा भगवान दास के पास ही रहे। आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण भगवान दास ने हाथ खड़े कर दिए। 22 अक्टूबर 2019 से उनके बच्चे आश्रय गृहों में भटक रहे हैं। पहले आगरा फिर फीरोजाबाद और अब दोनों कानपुर में आश्रय गृहों में हैं। गांव तक जाने में डर लग रहा है। इसलिए रिश्तेदारियों में रह रहे हैं। नरेंद्र और नगमा का कहना है कि असली हत्यारोपितों के पकड़े जाने पर ही वे गांव जाएंगे। क्योंकि अभी उनकी बात को गांव के लोग मानने को तैयार नहीं हैं।

ऐसे पुलिस ने की आंख बंद कर विवेचना

- विपरीत समय एफआइआर: वादी ने कहा दो सितंबर 2015 को रात आठ बजे लिखाई। जबकि पुलिस ने दोपहर 12.30 बजे एफआइआर दर्ज करना बताया।

- घटना का कोई चश्मदीद साक्षी नहीं है। वादी के अलावा एक दूसरा गवाह वाकल सिंह को बनाया। यह योगेंद्र के दोस्त हैं। केस डायरी में इनके बयान 24 दिन बाद दर्ज किए गए। उसके बयान भी अविश्वसनीय थे। बचाव पक्ष ने उनके बयानों को साक्ष्य के आधार पर गलत साबित कर दिया।

- पंचनामा में क्राइम नंबर नहीं लिखा गया। जबकि उससे पहले के समय पर पुलिस ने एफआइआर दर्ज होना बताया।

- पुलिस ने घटनास्थल से फिंगर प्रिंट के नमूने और खून आलूदा लिए। इन्हें विधि विज्ञान प्रयोगशाला भेजा गया। मगर, विवेचना में रिपोर्ट शामिल नहीं की। आरोपित बनाए गए दंपती से फिंगर प्रिंट मिलान नहीं कराया गया।

- हत्या में प्रयुक्त चाकू विवेचक ने पति-पत्नी को जेल भेजने के चार दिन बाद बरामद किया। इसे जांच को विधि विज्ञान प्रयोगशाला नहीं भेजा गया।

- जेल भेजे गए आरोपितों से पुलिस कुछ बरामदगी नहीं कर सकी। 

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