चीन से भी अधिक सक्षम हैं भारत के लघु उद्योग, बस कर्तव्य भूल जाती हैं सरकारी एजेंसियां
आइआइए के राष्ट्रीय सचिव ने कहा कि सरकारी एजेंसियां भूल जाती हैं कर्तव्य। सरकारी मशीनरी की मानसिकता बदले बगैर तेज नहीं हो सकता औद्योगिक विकास। कोरोना से बिगड़े हालात को सुधारने के लिए उद्योगों को आर्थिक पैकेज दिये जाने की बात भी कही।
आगरा, जागरण संवाददाता। भारत के लघु उद्योग चीन से भी अधिक सक्षम हैं। सरकार तो प्रयास कर रही है, लेकिन नीतियों को अमल में लाने की प्रक्रिया कमजोर है। सरकारी एजेंसियां अधिकारों का तो प्रयोग करती हैं, लेकिन कर्तव्य भूल जाती हैं। यदि वो उद्यमियों का सहयोग करें तो हम चीन से भी अधिक दमदारी से विश्व के बाजारों में परचम लहरा सकेंगे।
इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (आइआइए) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक अग्रवाल ने शनिवार दोपहर होटल क्लार्क शीराज में प्रेसवार्ता में यह बात कही। उन्होंने कहा कि उद्योग प्रदूषण नहीं करते हैं। लाक डाउन के समय के वायु प्रदूषण के आंकड़ों से यह बात साबित हो गई है, मगर हर बार उद्योगों को बलि का बकरा बना दिया जाता है। उन्होंने कहा कि सरकारी मशीनरी की मानसिकता जब तक नहीं बदलेगी, तब तक देश में औद्योगिक विकास की गति तेज नहीं हो सकेगी। आइआइए ने सरकार को सुझाव दिया है कि उद्योगों के नियंत्रण को निजी क्षेत्र की एजेंसियां लाई जाएं। प्रेसवार्ता में राष्ट्रीय सचिव अमर मित्तल, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राजीव बंसल, सुनील सिंघल, आगरा चैप्टर के अध्यक्ष अंशुल अग्रवाल, विवेक मित्तल, अशोक गोयल, राजीव अग्रवाल, प्रमोद कुमार अग्रवाल, अभिषेक जैन, अमित बंसल, राजेश गोयल, इंदरचंद जैन मौजूद रहे।
हरियाणा व गुजरात के माडल पर हो काम
अशोक अग्रवाल ने बताया कि संगठन ने उप्र सरकार को इंडस्ट्रियल लैंड बैंक विकसित करने को हरियाणा व गुजरात के माडल पर काम करने का सुझाव दिया है। एक्सप्रेसवे के किनारे सड़क से पांच किमी दूर एनओसी लैंड चिह्नित किए जाएं। इनमें उद्योग लगने से गांव का विकास होगा और युवाओं को रोजगार मिलेगा।
यह मांग उठाईं
-कोरोना से बिगड़े हालात को सुधारने के लिए उद्योगों को आर्थिक पैकेज दिया जाए।
-यूनिट की खपत के आधार पर बिजली बिल लिया जाए।
-लाक डाउन की अवधि का नगर निगम टैक्स माफ करे।-बैंक ऋण की औपचारिकताएं कम की जाएं। ब्याज की दरें घटाई जाएं।
-लीज होल्ड के भूखंडों में विभाजन व नए काम की अौपचारिकताएं कम हों।
-ईज आफ डूइंग कागजों तक सीमित नहीं रहे।
-हादसा होने पर इकाई संचालक के खिलाफ भीड़ के दबाव में कार्रवाई न हो।