उपेक्षित है चमरौला के शहीदों का स्मारक

28 अगस्त 1942 को बोला था चमरौला रेलवे स्टेशन पर हमला साहब सिंह खजान सिंह सोरन सिंह और उल्फत सिंह हुए थे शहीद

By JagranEdited By: Publish:Wed, 11 Aug 2021 09:34 PM (IST) Updated:Wed, 11 Aug 2021 09:34 PM (IST)
उपेक्षित है चमरौला के शहीदों का स्मारक
उपेक्षित है चमरौला के शहीदों का स्मारक

आगरा, जागरण संवाददाता। शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा.. जगदंबा प्रसाद मिश्र 'हितैषी' ने वर्ष 1916 में यह कविता लिखते समय शायद यही सोचा होगा, लेकिन अफसोस कि चमरौला के शहीदों का स्मारक उपेक्षा का शिकार है। शहीदों के नाम का शिलापट्ट टूट गया है। शहीद स्थल की सुध लेने वाला कोई नहीं है।

अगस्त क्रांति के दौरान देश की आजादी की लड़ाई आगरा में शहर से देहात तक लड़ी गई थी। 14 अगस्त, 1942 को बरहन स्टेशन फूंक दिया गया था। 28 अगस्त को रक्षाबंधन था। पं. सीताराम गर्ग और श्रीराम आभीर के नेतृत्व में चमरौला रेलवे स्टेशन पर हमला बोला गया। यहां मुखबिरी होने की वजह से पहले से ही पुलिस तैनात थी। किशनलाल स्वर्णकार ने स्टेशन के दफ्तर में कैरोसिन छिड़ककर आग लगाने को दियासलाई जलाई ही थी कि पुलिस के एक जवान ने निशाना साधकर गोली चला दी। किशनलाल की अंगुलियां उड़ गईं। पुलिस की फायरिग में साहब सिंह, खजान सिंह और सोरन सिंह शहीद हो गए। सीताराम गर्ग, किशनलाल, सोहनलाल गुप्ता, प्यारेलाल, डूमर सिंह और बाबूराम घायल हुए। सभी शहीद 19 से 20 वर्ष के थे। अंग्रेजों ने शहीदों के शवों की शिनाख्त कराने का प्रयास किया, लेकिन जान-बूझकर लोगों ने पहचान नहीं की। शहीदों की पत्नियों ने भी सुहाग चिह्न नहीं उतारे, जिससे कोई पहचान नहीं पाए। घायलों ने छुपकर अपना उपचार कराया। बरहन और चमरौला पर सरकार ने 25 हजार रुपये जुर्माना लगाया था, जिसे आजादी के बाद भारत सरकार ने माफ किया था।

स्टेशन पर थे गोलियों के निशान

चमरौला रेलवे स्टेशन के टिकट घर की लोहे की मोटी चादर पर गोलियों के निशान कई वर्षों तक बने रहे। प्रदेश सरकार ने भी स्मारक पर पत्थर लगवाया था, जिस पर शहीदों के नाम अंकित किए गए थे।

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