दशकों पुरानी है आस, कैसे बुझेगी प्यास

जिले में बूंद-बूंद पानी को तरस रहे लोग गिरता जा रहा है भूगर्भ जलस्तर सिचाई के लिए है बड़ा संकट

By JagranEdited By: Publish:Sat, 31 Jul 2021 09:02 PM (IST) Updated:Sat, 31 Jul 2021 09:02 PM (IST)
दशकों पुरानी है आस, कैसे बुझेगी प्यास
दशकों पुरानी है आस, कैसे बुझेगी प्यास

आगरा, जागरण संवाददाता। बूंद-बूंद पानी को जिला तरस रहा है। शहर की दर्जनों कालोनियों में लोग आए दिन पानी नहीं आने को लेकर आक्रोश जताते हैं। यमुना पार क्षेत्र में टैंकर से पानी सप्लाई होता है, तो कई बार पानी को लेकर गंभीर विवाद भी हुए हैं। ग्रामीण क्षेत्र में सिचाई से लेकर पीने के पानी दोनों का संकट है, लेकिन इसके निदान के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है। भूगर्भ जलस्तर गिरता जा रहा है और जलसंचय को बनाए जाने वाले रबर डैम की प्रक्रिया और जटिल होती जा रही है। निर्माण के लिए अब छह की जगह आठ अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) लेने होंगे।

यमुना पर बैराज निर्माण के लिए तीन दशक पहले प्रक्रिया शुरू हुई। अधिकारियों के उदासीन रवैये और राजनीतिक दबाव के कारण ये स्वरूप नहीं ले सका। स्थानीय अधिकारी माडल देखने दूसरे देश गए और बैराज को बदल वर्ष 2016 में प्रस्तावित स्थल पर ही रबर डैम की योजना तैयार की गई थी। वर्ष 2017 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ताज बैराज की संस्तुति दी। वह स्वयं नगला पैमा में इसका शिलान्यास करके गए, लेकिन अभी तक छह में से तीन एनओसी ही मिल पाई हैं। वहीं अब दो एनओसी और लेनी होंगी, जिससे निर्माण को लेकर आशंका गहराने लगी है। बारिश के दिनों में गोकुल बैराज से जितना पानी छोड़ा जाता है, वह बह कर आगे निकल जाता है। ऐसे में कैलाश मंदिर से नगला पैमा तक यमुना सूखी रहती है। रबर डैम बनने से यमुना में 3.5 लाख क्यूसेक पानी रोका जा सकेगा, जिससे भूगर्भ जलस्तर बढ़ेगा। पर्यटकों को ताजमहल के पीछे मोहक ²श्य दिखाई देगा। जलसंकट से जूझती फसलों और शहर को भरपूर पानी मिलेगा।

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ये लेनी होगी एनओसी

ताज बैराज खंड के आवेदन पर केंद्रीय जल आयोग, अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण और एएसआइ ने एनओसी दे दी है। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, एनजीटी और टीटीजेड से स्वीकृति मिलना अभी बाकी है। वहीं अब नेशनल एंवायरमेंटल इंजीनियरिग रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी) और सेंट्रल इम्पावर्ड कमेटी (सीईसी) की एनओसी भी लेनी होगी।

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15 में से 12 ब्लाक हैं डार्क जोन

जिले के 15 में से 12 ब्लाक डार्क जोन में हैं। इनमें बोरिग के लिए अनुमति लेनी होती है। वहीं शमसाबाद, फतेहाबाद क्षेत्र ऐसे हैं जहां प्रति घंटे की दर से पानी खरीदकर किसान सिचाई करते हैं।

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ये है आंकड़ा

- 2.83 लाख हेक्टेअर कृषि योग्य भूमि है।

- 72,000 हेक्टेअर में आलू उत्पादन होता है।

- 1,32,000 हेक्टेअर में गेहूं उत्पादन होता है।

- 62,000 हेक्टेअर में सरसों उत्पादन होता है।

- 1,15,000 हेक्टेअर में बाजरा उत्पादन होता है।

- 5,200 हेक्टेअर में धान उत्पादन होता है।

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