Hospital Live: डाक्टर साहब प्लीज भर्ती कर लीजिए, सांसें उखड़ रही हैं..जहांं जाओ, हर अस्पताल में नजर आ रही बेबसी
आगरा में तीमारदारों का बुरा हाल..कैसा है मरीज पूछ रहे बस यही सवाल। अस्पताल में भर्ती हो पाना इस समय लगने लगा किसी जंग के जीतने जैसा। अस्पतालों में भी संसाधन होने लगे हैं अब धीरे-धीरे कम। ऑक्सीजन न मिल पाने के कारण एंबुलेंस हो रही हैं खड़ीं।
आगरा, संजीव जैन। कोरोना वायरस सांसों की डोर काट रहा है। किसी तरह इस डोर को संभाले मरीज अस्पताल तक पहुंच रहे हैं। इस उम्मीद में कि यहां इलाज मिलेगा। लेकिन अस्पतालों में व्यवस्था चरमरा रही है। बेड फुल हो रहे हैं। आक्सीजन सिलेंडर लिए मरीज एंबुलेंस में बैठे इंतजार कर रहे हैं कि कब बेड खाली हो और कब उन्हें भर्ती किया जाए। भर्ती होने के कई दिन बाद भी मरीज के इलाज और उसकी सेहत के संबंध में जानकारी न मिल पाने से स्वजन काफी परेशान हैं। संक्रमित मरीज का उपचार करा रहे कई स्वजन से बातचीत की तो पीड़ा सामने आई।
गुरूवार को एसएन अस्पताल से लेकर निजी अस्पताल तक यही हालात दिखे। बल्केश्वर निवासी सुनीता अग्रवाल की कुछ दिन पहले तबीयत खराब हो गई। स्वजन उपचार के लिए डाक्टर के पास ले गए तो कोरोना की जांच कराने के लिए कहा गया। जांच कराई और रिपोर्ट पाजिटिव आई। रिपोर्ट आने के बाद सुनीता की हालत खराब होनी शुरू हो गई और सांस लेने में भी दिक्कत होने लगी। स्वजन ने 108 एंबुलेंस को फोन किया लेकिन एंबुलेंस नही आई। बाद वह किसी तरह आक्सीजन मास्क लगाकर एक आगरा-मथुरा रोड स्थित एक निजी अस्पताल में पहुंचे। यहां बेड खाली न होना बताया गया। घंटों तक स्वजन यहां-वहां भटकते रहे। बाद में किसी तरह वह इस निजी अस्पताल में भर्ती हुए। कमला नगर निवासी याेगेश अग्रवाल को भी उसके स्वजन निजी एंबुलेंस के सहारे लेकर मेडिकल कालेज में भर्ती कराने के लिए गए पर जब वहा योगेश भर्ती नही हो पाए तो उन्हें एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। आवास-विकास निवासी मीनू, शास्त्रीपुरम निवासी नवीन वाजपेयी, नाथ का बाग निवासी अजय, सिकंदरा निवासी अंशुल का भी यही हाल रहा। इन हालात से हताश होकर कई स्वजन ने विरोध भी प्रकट किया। लेकिन अस्पताल के कर्मचारियों ने संसाधन कम होने की बात कह अपनी बेबसी जता दी।
ऐसे हो रहेे तीमारदार परेशान
नामनेर निवासी संजय को एमजी रोड स्थित एक निजी अस्पताल में 15 अप्रैल को भर्ती कराया था। तीमारदार अंकुर की मानेंं तो तब से डाक्टर बस यही बता रहे हैं कि उपचार चल रहा है। मोबाइल पर बातचीत तक नहीं कराई जा रही। ऐसे में अस्पताल के बाहर बैठ ठीक होने का इंतजार करते हैं। फतेहाबाद निवासी गजेन्द्र की मानेंं तो पांच दिन पहले पत्नी को संक्रमित होने पर मेडिकल में भर्ती कराया। भर्ती कराने से पहले घंटों चक्कर काटे और सिफारिश भी लगाई। पहले बेड खाली न होना बताया गया, फिर किसी प्रकार भर्ती किया। अब पांच दिन बाद मरीज की हालत कैसी है, कुछ पता नहीं है। कमला नगर निवासी अरूण जैन की मानें तो संक्रमित होने पर पिता को मेडिकल कालेज में लेकर पहुंचे थे। यहां घंटों बाद किसी प्रकार भर्ती किया गया। डाक्टरों ने बताया कि उपचार चल रहा है। न देखने दिया जा रहा है और न बातचीत कराई जा रही है। पता नहीं कैसा उपचार चल रहा है।
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