अपने साहित्य से किया था शहीदों का श्राद्ध

बनारसी दास चतुर्वेदी का नाम भी है हिदी साहित्यकारों में महत्वपूर्ण वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ निखिल चतुर्वेदी ने हिदी दिवस पर किया याद

By JagranEdited By: Publish:Wed, 15 Sep 2021 01:34 AM (IST) Updated:Wed, 15 Sep 2021 01:34 AM (IST)
अपने साहित्य से किया था शहीदों का श्राद्ध
अपने साहित्य से किया था शहीदों का श्राद्ध

आगरा,जागरण संवाददाता। बृज के साहित्यकारों ने हिदी की खूब सेवा की। उन्हीं में से एक थे बनारसी दास चतुर्वेदी। हिदी साहित्य की सेवा करने को देशभर में घूमे और दो बार राज्यसभा सदस्य भी रहे। शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए उनके प्रयास आज भी प्रासंगिक हैं।

बनारसी दास चतुर्वेदी, लालपत कुंज निवासी प्रसिद्ध बाल रोग विशेषज्ञ निखिल चतुर्वेदी के नाना थे। हिदी दिवस पर उन्होंने बताया कि उनके नाना ने हिदी को प्रोत्साहन देने के लिए काफी काम किया। दिल्ली में हिदी भवन की स्थापना कराने का श्रेय उन्हीं को है। प्रवासी भारतीयों पर लिखी उनकी पुस्तक काफी लोकप्रिय रही। उन्होंने शहीदों को उनका सच्चा दर्जा दिलाने के लिए 21 किताबें लिखी, जो शहीदों के श्राद्ध के नाम से मशहूर हैं। उनका प्रकाशन आगरा के शिवलाल अग्रवाल एंड संस ने किया था। उन किताबों के प्रकाशन के बाद ही अशफाक उल्लाह खां, रामप्रसाद बिसमिल जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के स्वजनों को पेंशन, नौकरी व अन्य लाभ मिल पाए। इसके बाद उन्होंने अपना जीवन शहीदों के लिए समर्पित कर दिया।

आगरा कालेज से की पढ़ाई

बनारसी दास चतुर्वेदी का भले उनका जन्म फीरोजाबाद में हुआ, लेकिन उन्होंने अपनी पढ़ाई आगरा कालेज से पूरी की। हिदी को प्रोत्सहन देने के लिए तत्कालीन आगरा विश्वविद्यालय ने उन्हें 1980 में डीलिट् उपाधि प्रदान की। यहां से पढ़ाई पूरी करने के बाद वह फर्रुखाबाद में टीचर बने। इसके बाद इंदौर के राजकुमार कालेज में हिदी प्रवक्ता बने। वहां वह महात्मा गांधी और सीएफ एंड्रयूज के संपर्क में आए और उनसे प्रभावित होकर कोलकाता के शांति निकेतन गए। फिर महात्मा गांधी के पास जाकर गुजरात विद्यापीठ के प्रधानाचार्य रहे। सरोजनी नायडू के साथ ईस्ट अफ्रीका की यात्रा भी की। कोलकाता में विशाल भारत समाचार पत्र के 10 वर्ष संपादक रहे। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और अज्ञेय की पहली कविता भी उन्होंने ही छापी। रवींद्र नाथ टैगोर के आश्रम में हिदी भवन की स्थापना कराई। इसके बाद राजा ओरछा ने उन्हें टीकमगढ़ बुला लिया। उन्होंने ओरछा से मधुकर अखबार निकाला। एक बार विध्य और एक बार मध्यप्रदेश से राज्यसभा भी गए। उन्होंने कविरत्न सत्यनारायण की जीवनी लिखकर उनकी भूली-बिसरी यादों से सभी को अवगत कराया था।

आगरा भूला अपने रत्न

हिदी दिवस पर शहर में वैसे तो कई आयोजन हुए, लेकिन अपने शहर से जिन हिदी के महान रत्नों का गहरा नाता रहा, रांगेय राघव, बनारसीदास चतुर्वेदी जैसे महान नामों को याद करने वाले सीमित ही लोग थे। यह हाल उस जगह का है, जो कभी हिदी साहित्य का गढ़ कहा जाता था। इससे साहित्य से जुड़े लोगों में निराशा है।

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