'भगवान की चरण वंदना से कट जाते हैं सब पाप'
पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर में मुनि वीर सागर ने दिए प्रवचन
आगरा, जागरण संवाददाता। जो व्यक्ति आदर्श, उत्साह, समर्पण सहित प्रभु के चरणों की भक्ति करता है, वह सब कुछ पा लेता है। भगवान की चरण वंदना करने से सब पाप कट जाते हैं। यदि हम भगवान से कुछ पाना चाहते हैं तो हमें भगवान के चरणों को देखना और छूना चाहिए।
पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर, छीपीटोला में सोमवार को मुनि वीर सागर ने ये प्रवचन दिए। उन्होंने कहा कि यदि देवाधिदेव भगवान की ऊर्जा पाना चाहते हैं तो भगवान के चरणों के स्पर्श मात्र से ही ऊर्जा हमारे अंदर समाहित हो जाती है, जो व्यक्ति अपनी काम रूपी कामनाओं को पूर्ण करना चाहता है, वह भगवान की चरण वंदना करने से पूर्ण होती हैं। भीतर कषाय की अग्नि, तीव्र इच्छा वासना की अग्नि प्रज्वलित होती रहती है, उसका दहन भगवान की चरण वंदना करने से होता है।(वि.) शरीर और आत्मा हैं अलग
निश्चित और व्यवहार दोनों के बिना मोक्ष मार्ग अधूरा है। जो दिखाई दे रहा है, वह भी मैं हूं, जो अ²श्य है वह भी मैं हूं। आज शरीर को आत्मा मान लिया है, जबकि शरीर अलग है और आत्मा अलग है। जो दिखाई दे रहा है वह शरीर है, हम उस पर विश्वास करते हैं और जो नहीं दिखाई दे रहा है वह आत्मा है, उस पर हम विश्वास नहीं करते।
गंगे गौरी बाग बल्केश्वर स्थित चंद्रप्रभु दिगंबर जैन मंदिर में सोमवार को आचार्य आदित्य सागर ने ये प्रवचन दिए। उन्होंने कहा कि दर्पण में जो दिख रहा है, वह सत्य नहीं है। रिश्ते रास्ते के होते हैं, मंजिल के नहीं। आत्मा का स्वरूप सभी जीवों में एक-सा होता है। प्रत्येक आत्मा में वह अव्यक्त रूप में विद्यमान है। सचिन जैन, राजीव जैन, प्रवीन जैन, राजेंद्र जैन, रजत जैन, संजीव जैन, राहुल जैन, रजनीश जैन, अंकेश जैन आदि मौजूद रहे। (वि.) समुद्र की तरह मर्यादा का करें पालन: आचार्य ज्ञानचंद्र
समुद्र कभी अपनी मर्यादा नहीं छोड़ता, इसलिए समुद्र की महिमा गाई जाती है। महान लोगों को समुद्र की उपमा दी जाती है। समुद्र में जब भी उफान आता है, तो वो कचरा बाहर फेंक देता है और रत्नों को अपने अंदर ही रखता है। उसी तरह मर्यादा में जीने वाला व्यक्ति अपने दुर्गुणों को छोड़ता जाता है और सद्गुणों को अपने अंदर समाहित करता जाता है। समुद्र की तरह मर्यादा का पालन करें।
सोमवार को महावीर भवन, न्यू राजा की मंडी कालोनी में जैन आचार्य ज्ञानचंद्र महाराज ने ये प्रवचन दिए। उन्होंने कहा कि भगवान महावीर ने कहा है कि पहले मुझे 'ज्ञे' परिज्ञा से जानो, फिर प्रत्याख्यान परिज्ञा से त्याग दो। हम भी अपने दुर्गुणों को जानें और मर्यादित जीवन जीने का प्रयास करें। महावीर भवन में प्रतिदिन सुबह 8:30 बजे से आचार्य के प्रवचन हो रहे हैं। (वि.)