Ganga Dussehra: गंगा दशहरा पर दस वस्तुओं के दान से मिलती है दस जन्मों पापों से मुक्ति, पढ़ें पूजन विधि भी
Ganga Dussehra शुक्ल पक्ष दशमी तिथि को इस बार गंगा दशहरा 20 जून रविवार को विधि विधान पूर्वक मनाया जाएगा। दशमी तिथि 19 जून शनिवार की सायं 6ः46 पर लगेगी जो कि अगले दिन 20 जून रविवार को शाम 4ः2 तक रहेगी।
आगरा, जागरण संवाददाता। हर हर गंगे की गूंज जिस दिन हर ओर गूंजेगी वो दिन 20 जून को है। जी हां, 20 जून को गंगा दशहरा का महापर्व है। यमुना किनारे रहने वाले भी इस बार गंगा मैया की जलधारा में डुबकी लगा सकेंगे। आगरा की यमुना नदी में पवित्र गंगा का जल जो बुलंदशहर से लगातार आ रहा है। इस दिन का महत्व दान पुण्य के लिए काफी अधिक बताया गया है। ज्योतिषाचार्य डॉ शाेनू मेहरोत्रा के अनुसार जेष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन राजा भगीरथ की विशेष तपस्या से गंगा जी का अवतरण स्वर्ग से धरती पर हुआ था। गंगा जी को सभी नदियों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। शुक्ल पक्ष दशमी तिथि को इस बार गंगा दशहरा 20 जून रविवार को विधि विधान पूर्वक मनाया जाएगा। दशमी तिथि 19 जून शनिवार की सायं 6ः46 पर लगेगी जो कि अगले दिन 20 जून रविवार को शाम 4ः2 तक रहेगी। गंगा दशहरा के पावन पर्व पर गंगा स्नान करने पर 10 जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है।
पूजन विधि
माता गंगा जी की पंचोपचार व षोडशोपचार पूजा अर्चना करनी चाहिए। पूजा के अंतर्गत 10 प्रकार के फूल अर्पित करके 10 प्रकार के नैवेद्य, 10 प्रकार के ऋतु फल, 10 तांबूल, दशांग धूप के साथ 10 दीपक प्रज्वलित करना चाहिए। गंगा से संबंधित कथा का श्रवण, श्री गंगा स्तुति एवं श्री गंगा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
मां गंगा का पवित्र पावन मंत्र
ओम नमो भगवती हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा।
दान का है विशेष विधान
गंगा दशहरा के पर्व पर स्नान ध्यान करने के बाद ब्राह्मणों को दस सेर तिल, दस सेर गेहूं दक्षिणा के साथ दान देने पर जीवन में अनंत पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इस दिन रात्रि जागरण का विशेष महत्व है। गंगा उद्धार से संबंधित कथा का श्रवण एवं श्री गंगा स्तुति श्री गंगा स्त्रोत का पाठ भी किया जाना चाहिए। अपनी दिनचर्या नियमित रखते हुए गंगा दशहरा के पावन पर्व पर दान पुण्य फलादायी माना गया है।
गंगा अवतरण कथा
भागीरथ एक प्रतापी राजा थे। अपने पूर्वजों को जीवन मरण के दोष से मुक्त करने तथा गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए उन्होंने कठोर तपस्या प्रारंभ की। गंगा उनकी तपस्या से प्रसन्न हुईं तथा स्वर्ग से पृथ्वी पर आने के लिए तैयार हो गईं। उन्होंने भागीरथ से कहा कि यदि वे सीधे स्वर्ग से पृथ्वी पर गिरेंगी तो पृथ्वी उनका वेग नहीं सह पाएगी और वह रसातल में चली जाएगी। यह सुनकर भागीरथ सोच में पड़ गए। तब भगीरथ ने भगवान शिव की उपासना शुरू कर दी। संसार के दुखों को हरने वाले भगवान शिव जी प्रसन्न हुए और भागीरथ से वर मांगने को कहा। भागीरथ ने उनसे आपनी बाद कह दी। गंगा जैसे ही स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरने लगीं गंगा का गर्व दूर करने के लिए भगवान शिव ने उन्हें जटाओं में कैद कर लिया। इस पर गंगा ने शिव से माफी मांगी तो एक छोटे से पोखरे में छोड़ दिया वहां से गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ। युगों युगो तक बहने वाली गंगा की धारा महाराज भागीरथ की कस्टमय साधना की गाथा कहती है। गंगा प्राणी मात्र को जीवनदान ही नहीं देती मुक्ति भी देती है।