ग्रेटर फ्लेमिगो को भायी जोधपुर झाल, भीषण गर्मी में भी डाले हैं डेरा

आगरा-मथुरा की सीमा पर बनी जोधपुर झाल में ठहरे हैं कुछ समूह हर वर्ष मई में लौट जाने वाला पक्षी अब तक टिका हुआ है

By JagranEdited By: Publish:Tue, 29 Jun 2021 11:59 PM (IST) Updated:Tue, 29 Jun 2021 11:59 PM (IST)
ग्रेटर फ्लेमिगो को भायी जोधपुर झाल, भीषण गर्मी में भी डाले हैं डेरा
ग्रेटर फ्लेमिगो को भायी जोधपुर झाल, भीषण गर्मी में भी डाले हैं डेरा

आगरा, जागरण संवाददाता।

मथुरा-आगरा सीमा पर बनी जोधपुर झाल ग्रेटर फ्लेमिंगो के कलरव से आबाद है। बीते कुछ साल से गुजरात से सितंबर में यहां पहुंच रहा यह पक्षी मई आते-आते लौट जाता है। इस बार यह भीषण गर्मी में भी यहीं डेरा डाले हुए है। संभावना जताई जा रही है कि अब पूरी सर्दी यह पक्षी यहीं रुका रहेगा।

राजहंस परिवार की इस प्रजाति का मूल ठिकाना यूरोपीय देश, दक्षिण अफ्रीका है। सर्दी की शुरूआत में यह बड़ी संख्या में गुजरात और भारत के जलीय क्षेत्रों में पहुंचता है। गुजरात का यह राज्य पक्षी कुछ साल से जोधपुर झाल में भी पहुंच रहा है। सितंबर की शुरूआत में इसके कुछ जोड़े यहां पहुंचते हैं जो मई के अंत तक वापस चले जाते हैं। इस बार, सितंबर 2020 में आए जोड़ों में करीब 300 फ्लेमिंगो अभी तक यहां टिके हुए हैं। यह बदलाव बायोडायवर्सिटी रिसर्च एंड डवलपमेंट सोसाइटी के कामों का परिणाम बताया जा रहा है। सोसाइटी इस झाल को उनके संरक्षण और प्राकृतिक वास के तौर पर विकसित कर रही है।

पक्षी विशेषज्ञ केपी सिंह ने बताया कि ग्रेटर फ्लेमिंगो 2018 से लगातार सितंबर के अंत से मई तक यहां डेरा डाल रहा है। इस साल सबसे अधिक पांच समूह जोधपुर झाल पर पहुंचे हैं। वर्तमान में 300 से अधिक ग्रेटर फ्लेमिगो अपने बच्चों के साथ जोधपुर झाल में रह रहे हैं। कीठम व भरतपुर से पहले पहुंचता है यहां:

जोधपुर झाल में ग्रेटर फ्लेमिगो के अनुकूल वातावरण मौजूद है। यहां बारिश का पानी काफी मात्रा में जमा होता है। मिट्टी में नमक की मात्रा भी है। इसलिए ग्रेटर फ्लेमिगो कीठम और भरतपुर से पहले यहां पहुंचता है।

भारत में पाई जाती हैं इसकी दो प्रजातियां:

लंबी गर्दन, लाल टागे, गुलाबी पंख, लंबी चोंच वाला यह खूबसूरत पक्षी राजहंस परिवार की सबसे व्यापक और सबसे बड़ी प्रजाति है। इस पक्षी की खासियत यह है कि एक टाग पर करीब तीन से चार घटे तक खड़े रह सकता है। इसी मुद्रा में यह नींद भी ले सकता है। पक्षी विशेषज्ञ डा. केपी सिंह ने बताया कि भारत मे फ्लेमिगों की दो प्रजातियां लेशर एवं ग्रेटर पाई जाती हैं। यह खारे पानी के साथ कीचड़ और उथले तटीय लैगून में रहता है।

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