आगरा में कोरोना संक्रमण काल में पिता पंचतत्व में विलीन, पांच बच्चों का भविष्य दांव

जेपी नगर खंदारी में कोविड लक्षणों से पीड़ित रिक्शा चालक राकेश की 16 मई को हुई मौत। पत्नी और पांच बच्चों के सामने जीवन-यापन का सवाल सामाजिक संस्थाएं कर रहीं मदद। नहीं है पत्नी को याद अब मायके का भी पता।

By Tanu GuptaEdited By: Publish:Tue, 22 Jun 2021 06:10 PM (IST) Updated:Tue, 22 Jun 2021 06:10 PM (IST)
आगरा में कोरोना संक्रमण काल में पिता पंचतत्व में विलीन, पांच बच्चों का भविष्य दांव
16 मइ को कोरोना ने छीन लिया था एक परिवार का मुखिया।

आगरा, जागरण संवाददाता। कोरोना काल में पति को गंवाने वाली कमलेश दोराहे पर खड़ी है। पांच बच्चों के भविष्य का दारोमदार भी उसके कंधों पर है। कोविड लक्षणों से पीड़ित पति की आठ मई को पति की सांसों की डाेर टूट गई। पत्नी के पास जमा पूंजी के नाम पर कुछ सौ रुपये थे जो अंतिम संस्कार में खर्च हो गए। विधवा कमलेश और पांच बच्चों की कुछ सामाजिक संस्थाएं और बस्ती के लोग मदद कर रहे हैं। मगर, यह मदद कब तक जारी रहेगी, यह सवाल विधवा को परेशान कर रहा है।

खंदारी के मऊ रोड स्थित जेपी नगर की रहने वाली 40 साल की कमलेश ने बताया कि पति राकेश रिक्शा चालक थे। उनके पांच बच्चे हैं। सबसे बड़ी बेटी 15 साल की है। छोटा बेटा चार साल का है। मई के दूसरे सप्ताह में पति को कई दिन से तेज बुखार आया। उन्हाेंने पास के ही एक डाक्टर से बुखार की दवा लेकर खा लिया। मगर, बुखार कम नहीं हुआ, जुकाम और खांसी की तकलीफ हो गई। इससे उन्हें सांस लेने में दिक्कत होने लगी थी। उन्हें बताया गया कि पति में कोरोना के लक्षण हैं। जानकारों से उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने के बारे में जानकारी की।

कमलेश के मुताबिक उन्हें लोगों ने बताया कि किसी भी अस्पताल में भर्ती कराने के लिए जगह नहीं है। इस पर उन्होंने घर पर ही पति का इलाज जारी रखा। पति को 16 मई को सांस लेना में ज्यादा दिक्कत होने लगी। एक परिचित की मदद से एंबुलेंस को फोन करके उन्हें एसएन मेडिकल कालेज लेकर गईं। यहां पर डाक्टरों ने पति को मृत घोषित कर दिया। परिवार और बस्ती वालों की मदद से उन्होंने पति का अंतिम संस्कार किया। इसमें उनकी सारी जमा पूंजी खर्च हो गई। उनकी व्यथा देखकर बस्ती के लोगों और कुछ सामाजिक संस्थाओं ने मदद हाथ बढ़ाए। बच्चों के लिए राशन की व्यवस्था की है।

पति ने मकान की नींव खोदी थी। कुछ लोगों ने उनके सिर पर छत का साया करने के लिए सीमेंट, बालू और ईंट भी उपलब्ध कराईं। इससे कि बच्चों को लेकर दर-दर भटकना न पड़े। कमलेश का कहना था कि बच्चों के भविष्य के लिए उन्हें आर्थिक मदद की दरकार है। कुछ नहीं तो विधवा पेंशन ही मिल जाए, इससे कि बच्चों की दो वक्त की रोटी का इंतजाम हो सके। फिलहाल वह खुद दूसरों के यहां झाड़ू पोछा करके किसी तरह से बच्चो को पाल रही हैं।

अपने कंधों पर पति की लाश लादकर रखा था एंबुलेंस में

कमलेश ने बताया कि सबसे मुश्किल वक्त उनके लिए पति के शव को अपने कंधे पर लादकर एंबुलेंस में रखना था। पति को सांस लेने की दिक्कत होने पर वह उन्हें एसएन ले गईं थीं। उनके साथ परिवार और बस्ती का कोई व्यक्ति नहीं था। उन्हें एंबुलेंस से स्ट्रेचर पर डाक्टर के पास लेकर गईं। पति को मृत घोषित करने पर उसे अकेले कंधे पर रखकर एंबुलेंस तक लेकर गई थीं।

पांच साल रहीं बंधक, भूल गईं मायके का पता

कमलेश ने बताया कि उनके पिता रामपाल और मां राजवती मजदूरी करते थे। उनके साथ मजदूरी करने वाला एक व्यक्ति उन्हें धोखे से अपने साथ ले आया। करीब पांच साल तक अपने यहां बंधक बनाकर रखा। इस दौरान उनसे नौकरानी की तरह घर का सारा काम कराया जाता था। पति राकेश के रिश्तेदार को उनके बारे में पता चला। उन्होंने वहां से मुक्त कराके करीब 20 साल पहले उनकी शादी राकेश के साथ कराई। इस दौरान वह अपना मायका तक भूल गईं। बस इतना मालूम है कि वह टीकरी गांव की रहने वाली हैं। जो शायद राजस्थान में कहीं पड़ता है। उनके माता-पिता और परिवार अब कहां और किस हाल में है, वह नहीं जानतीं। 

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