ब्रज की धरा पर आज भी सांझी के रंग भरती हैं राधा, जानिए श्रम साध्‍य कला का क्‍या है इतिहास Agra News

ब्रज के हर घर मे मनता है सांझी उत्सव सखियां करती हैं सहयोग। करीब पांच साल पहले तक कुछ मंदिरों तक ही सीमित रह गए थे सांझी उत्सव। सांझी मेले ने ला दी जागरूकता।

By Prateek GuptaEdited By: Publish:Mon, 16 Sep 2019 03:13 PM (IST) Updated:Mon, 16 Sep 2019 08:15 PM (IST)
ब्रज की धरा पर आज भी सांझी के रंग भरती हैं राधा, जानिए श्रम साध्‍य कला का क्‍या है इतिहास Agra News
ब्रज की धरा पर आज भी सांझी के रंग भरती हैं राधा, जानिए श्रम साध्‍य कला का क्‍या है इतिहास Agra News

आगरा, किशन चौहान। कहते है कि ब्रज में हर रोज त्योहार व उत्सव मनाया जाता है। ब्रज मंडल राधाकृष्ण की तमाम उन यादों को संजोए है जो उन्होंने द्वापरयुग में लीला के दौरान छोड़ी। हाल ही में बूढ़ी लीला महोत्सव का करहला के महारास के साथ समापन हो गया। लेकिन श्राद्ध पक्ष में सांझी उत्सव की शुरुआत ब्रजमंडल में हो गई है। इस उत्सव में राधाकृष्ण के तमाम मंदिरों व ब्रज के हर घर मे गाय के गोबर से सांझी बनाई जाती है।

मान्यता है कि सांझी राधारानी के सभी खेलों में से सबसे प्रिय था। बृषभानु नंदनी अपनी सखियों के साथ श्राद्ध पक्ष में इस महोत्सव को मानती थी। गाय के गोबर से बृषभानु दुलारी तमाम पक्षियों व पेड़ों, कुंडों का चित्रंकन करती थीं, फिर फूलों व रंगों से इसे सजाती थीं। आज भी लाडली जी मंदिर में रंगों से जगमोहन में सांझी बनाई जाती है। इस दौरान तमाम लीला स्थलों का चित्रंकन किया जाता है। श्राद्ध पक्ष में शुरू होने वाले इस सांझी महोत्सव को ब्रज के हर घर मे कुंवारी कन्या गाय के गोबर से दीवार पर तमाम लीलाओं का चित्रंकन करती है। यह महोत्सव श्राद्ध पक्ष में करीब सोलह दिनों तक चलता है।

कला का नया सवेरा लेकर आया सांझी मेला

विलुप्त प्राय हो चुकी सांझी कला में नया सवेरा लेकर आया ब्रह्मकुंड पर आयोजित होने वाला सांझी मेला। करीब पांच साल पहले तक सांझी केवल कुछ मंदिरों तक सांझी उत्सव सीमित रह गए थे। लेकिन पांच साल पहले ब्रह्मकुंड पर एक बार फिर से शुरू हुए पौराणिक सांझी मेला ने लोगों में जागरूकता ला दी। अब न केवल मंदिर, घर बल्कि स्कूलों तक सांझी कला को पहुंचा दिया है।

ब्रज फाउंडेशन और ब्रज संस्कृति शोध संस्थान द्वारा ब्रह्मकुंड पर आयोजित सांझी मेले का आकर्षण सिर चढ़ कर बोला। रविवार को सांझी प्रतियोगिता में न केवल कलाकारों बल्कि विद्यार्थियों ने भी आकर्षक सांझी बनाकर दर्शकों को मुग्ध कर दिया। भाजपा नेता उदयन शर्मा ने कहा इस सांझी मेले का उद्देश्य बालकों के मन में सांझी कला के प्रति प्यार पैदा करने का है। मेले की बढ़ती प्रसिद्धि और इसमें भाग लेने वाले कलाकारों की संख्या ने आयोजन की सफलता साबित कर दी। ब्रज संस्कृति शोध संस्थान के सचिव लक्ष्मी नारायण तिवारी ने कहा आज सांझी कला की प्रसिद्धि इतनी है कि अनेक विश्वविद्यालय के छात्र-छात्रएं इस पर शोध कार्य कर रहें हैं। सांझी प्रतियोगिता में भाग ले रहे 45 प्रतिभागियों ने मन को मोह लेने वाली सांङिायों का प्रदर्शन किया।

सांझी स्टेंसिल का जादूगर संजय

सांझी श्रमसाध्यता से भरा कार्य है। जिसमें धैर्यता, समर्पण भाव जरूरी है। मथुरा के प्रयागघाट निवासी कलाकार संजय सोनी कला की पारंपरिकता बनाए रखने के साथ-साथ नए प्रयोग किए। इन्होंने सांझी के स्टेंसिल भी बनाए। जडिया घराने के नाम से विख्यात संजय के परबाबा भैंरोमल जडिया ने रंगजी के मंदिर में स्थित सोने के खंभे पर सोना जड़ने का कार्य किया था। आठ वर्ष की अवस्था से ही संजय ने इस कला को अपनाया। संजय जल सांझी, फूल सांझी व सूखे रंग की सांझी को बड़ी कुशलता के साथ बनाते हैं।

क्‍या है जानकारों की नजर में इतिहास

राधारानी मंदिर पर करीब डेढ़ सौ वर्ष से इस महोत्सव को बनाया जा रहा है। मंदिर के सेवायत बृषभानु नंदनी के लिए रोज मंदिर के आंगन में रंगों से सांझी बनाते हैं। इस दौरान राधाकृष्ण की तमाम लीलाओं का चित्रंकन किया जाएगा।

रासबिहारी गोस्वामी, सेवायत, लाडली जी मंदिर

सांझी महोत्सव प्राचीन है। श्रद्ध पक्ष में राधारानी ने गाय के गोबर से सांझी बनाकर उसे सांझी देवी का रुप दिया है। वैसे यह राधारानी का सबसे प्रिय खेल है। जिसे वो अपनी सखियों के साथ बड़े ही आनंद साथ खेलती थी।

गोस्वामी घनश्यामराज भट्ट, प्रवक्ता, ब्रजाचार्य पीठ ऊचागांव

हम आज भी राधारानी की सहचरियों के रुप मे इस महोत्सव को बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाते है। बड़ा अच्छा लगता है जब गाय के गोबर से हम राधाकृष्ण के तमाम लीलाओ का चित्रंकन करते हैं।

गौरी कुशवाह

आज भी बरसाना के हर घर मे सांझी बनाई जाती है। जिसे शाम के वक्त तमाम लड़कियां भोग लगाकर पूजती है। यह महोत्सव लड़कियों का सबसे प्रिय भी है। क्योंकि इस महोत्सव से चित्रंकन की कलाकृतियों का अनुभव भी होता है।

गीता कुशवाह

 

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