World Rivers Day: सूखती नदियां और गहराता जल संकट, संभलना होगा नहीं तो तरसेंगे बूंद बूंद के लिए

विश्व नदी दिवस पर विशेष। आगरा में यमुना नदी के बजाय बन चुकी है नाला बरसात में ही रहता है पानी। करबन नदी में दूषित जल से हमेशा नजर आते हैं झाग अन्य नदियां सूखी। अब नहीं चेते तो आने वाली पीढि़यां तरसेंगी पानी के लिए।

By Prateek GuptaEdited By: Publish:Sun, 26 Sep 2021 11:10 AM (IST) Updated:Sun, 26 Sep 2021 11:10 AM (IST)
World Rivers Day: सूखती नदियां और गहराता जल संकट, संभलना होगा नहीं तो तरसेंगे बूंद बूंद के लिए
बैराज न होने से सालभर ताजमहल के पीछे यमुना का ऐसा हाल रहता है।

आगरा, निर्लोष कुमार। आज विश्व नदी दिवस है। सितंबर के चौथे रविवार को जनता को नदियों के संरक्षण के प्रति जागरूक करने के लिए विश्व नदी दिवस मनाया जाता है। आगरा में आधा दर्जन से अधिक नदियां हैं। इनमें चंबल को छाेड़ दें तो यमुना और करबन अत्यधिक प्रदूषित हो चुकी हैं और अन्य नदियां बरसाती बनकर रह गई हैं। इससे यहां जल संकट गहराता जा रहा है। आगरा की प्यास बुझाने को बुलंदशहर से पाइपलाइन डालकर गंगाजल लाना पड़ रहा है।

आगरा में सभी नदियां करीब 500 किमी की लंबाई में बहती हैं। इनमें सबसे अधिक लंबी यमुना है। आगरा की नदियों पर अध्ययन कर रहे बायोडायवर्सिटी रिसर्च एंड डवलपमेंट सोसायटी के अध्यक्ष पर्यावरणविद् डाॅ. केपी सिंह बताते हैं कि आगरा की लुप्त हो रही नदियों में वर्ष 1990 तक भरपूर पानी रहता था। जिन नदियों में बाढ़ आती थी, उनका पानी की कमी से सूखना आश्चर्यजनक है। करबन, खारी, उटंगन, किवाड़ नदियों का अस्तित्व खतरे में है। केंद्र सरकार को केंद्रीय जल आयोग की तरह राष्ट्रीय नदी आयोग की स्थापना कर नदियों के संरक्षण व जल बहाव सुनिश्चित करने की नीति तैयार करनी चाहिए। पर्यावरणविद् डा. शरद गुप्ता का कहना है कि जब तक यमुना में नालों का गिरना नहीं रुकेगा, तब तक वो साफ नहीं हो सकती है। यमुना में 61 नाले गिर रहे हैं, जिन्हें टैप किया जाना चाहिए।

आगरा में बहती हैं यह नदियां

यमुना: यमुना आगरा में नगला अकोश से प्रवेश कर शहर में बहते हुए बटेश्वर होकर इटावा की ओर निकल जाती है। यमुना अत्यंत प्रदूषित है और बरसाती मौसम में ही इसमें पानी रहता है। बाकी समय में इसमें नालों का पानी और सीवेज बहता है।

चंबल: मध्य प्रदेश में विंध्याचल पर्वत श्रृंखला में जानापाव पहाड़ी से शुरू होकर 1024 किमी का सफर तय कर आगरा के बाह, पिनाहट में बहती है। इटावा के पचनदा में यह यमुना में मिलती है। चंबल डाल परियोजना के माध्यम से इससे बाह में सिंचाई होती है।

किवाड़: तांतपुर-जगनेर में किवाड़ नदी सोनी खेरा से निकलकर करीब 14 किमी राजस्थान के धौलपुर की डांग में बहती है। यह वापस आगरा में जगनेर के पास देवरी में पुन: प्रवेश कर उटंगन में मिलती है। वर्तमान में यह बारिश के दिनों में छोटे नाले के स्वरूप में दिखती है।

खारी: फतेहपुर सीकरी के तेरह मोरी बांध से करीब 90 किमी की दूरी तय कर मलपुरा, सैयां, इरादत नगर होते हुए अरनौटा के पास उटंगन में मिलती है। बारिश के मौसम में बंधे वाली जगहों पर कुछ दिनों तक पानी नजर आता है। अन्य दिनों में यह सूखी रहती है।

उटंगन: राजस्थान में गंभीर नदी के नाम से पहचानी जाने वाली नदी को आगरा में उटंगन के नाम से जाना जाता है। आगरा में खेरागढ़ व फतेहाबाद होते हुए यह यमुना में मिलती है। यह केवल बरसात में ही बहती है। गंदे नाले में यह बदल चुकी है।करबन: बुलंदशहर की खुर्जा तहसील से अलीगढ़, हाथरस होते हुए यह आगरा की एत्मादपुर तहसील में आगरा-फीरोजाबाद रोड को पार कर झरना नाला के नाम से यमुना में मिलती है। इसमें अलीगढ़ व हाथरस के कारखानों का दूषित जल गिरता है, जिससे इसमें हमेशा झाग नजर आते हैं।

बाणगंगा: बाणगंगा का आगरा के सरकारी दस्तावेजों में उल्लेख नहीं मिलता है, लेकिन आगरा-धौलपुर रेलमार्ग पर उप्र व राजस्थान के बार्डर पर लगा बाणगंगा ब्रिज नाम का बोर्ड इसे बाणगंगा नदी बताता है। सरकारी दस्तावेजों में इसे उटंगन नदी ही मानते हैं। इसका उद्गम जयपुर की बैराठ पहाड़ियों से होता है। जयपुर, दौसा, भरतपुर के रूपवास से होकर आगरा में सैंया के खेड़िया से होकर फतेहाबाद में यमुना में यह मिलती है।

पार्वती: पार्वती नदी के अवशेष ग्वालियर रोड पर सैंया-बरेठा में देखे जा सकते हैं।

शहरी क्षेत्र में भूजल स्तर में प्रतिवर्ष एक मीटर तक की गिरावट

बायोडायवर्सिटी रिसर्च एंड डवलपमेंट सोसायटी द्वारा शहरी क्षेत्र के 38 केन्द्र के भूगर्भ जल विभाग उप्र के विगत दस वर्ष के आंकड़ों का अध्ययन करने पर पता लगा है कि सबसे अधिक भूजल स्तर में गिरावट अमरपुरा क्षेत्र में आई है। यहां भूजल स्तर में 2011 से 2020 तक 16.70 मीटर की गिरावट दर्ज की गई है। कमला नगर में 8.55 मीटर, छलेसर में 8.49 मीटर एवं तोरा व खंदारी में भी भूजल स्तर में गिरावट जारी है। औसतन आगरा के शहरी क्षेत्र में 10 सेमी से 1 मीटर की गिरावट प्रतिवर्ष आई है।

देहात में नदियां सूखीं तो गहराया जल संकट

बायोडायवर्सिटी रिसर्च एंड डवलपमेंट सोसाइटी द्वारा आगरा के भूगर्भ जल के 2019 के (पूर्व मानसून व पश्चात मानसून) आंकड़ों का अध्ययन करने पर पता चला है कि आगरा के शमशाबाद में एक मीटर प्रतिवर्ष, फतेहाबाद में विगत दस वर्ष में छह मीटर गिरावट और सैंया ब्लाक में 11.50 मीटर की गिरावट आई है। इन तीन ब्लाकों में भूजल स्तर जिले में सबसे अधिक नीचे है जबकि इन ब्लाक में खारी और उटंगन नदी मौजूद हैं। इन नदियों में पानी का अभाव भूजल जल स्तर नीचे की ओर जाने का मुख्य कारण है। आगरा के अछनेरा ब्लाक में विगत दस वर्ष में सबसे कम केवल 54 सेमी की भूजल स्तर में गिरावट आई है। इसका कारण इस ब्लाक में सबसे अधिक नहरों का होना है।

भूजल स्तर गिरने के साथ नष्ट हो रही है आगरा की जैव विविधता

नदियों का अपना ईको सिस्टम होता है। नदियों के सूखने से वह बुरी तरह प्रभावित हुआ है। जैव विविधता नष्ट हो रही है। परिणामस्वरूप पर्यावरण व जलीय जीवों व वन्य जीवों के संरक्षण का खतरा उत्पन्न हो गया है। इसके परिणामस्वरूप ईको सिस्टम खत्म होने से जैव विविधता भी नष्ट हो रही है। भूगर्भीय जल स्तर तेजी से नीचे की ओर जा रहा है, परिणामस्वरूप कृषि भूमि की उर्वरकता पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।

राष्ट्रीय नदी आयोग की स्थापना कर नदियों के संरक्षण के लिए हों गंभीर प्रयास

पर्यावरणविद डाॅ. केपी सिंह के अनुसार भारत सरकार को केन्द्रीय जल आयोग की तरह राष्ट्रीय नदी आयोग की स्थापना कर भारत की नदियों के राष्ट्रीय स्तर पर संरक्षण एवं जल बहाव सुनिश्चित करने की नीति तैयार करनी चाहिए।

यह कदम उठाए जाएं

- नदियों पर शोध कार्य को बढ़ावा मिलना चाहिए।

- आगरा जिले के 3687 तालाबों में से केवल 166 तालाबों तक ही नहरों का पानी पहुंच रहा है। जिले के सभी तालाबों तक नदियों का पानी नहरों के माध्यम से पहुंचना चाहिए।

-सिंचाई एवं जल संबंधी विभागों द्वारा और गांव के स्तर पर मनरेगा के अंतर्गत नदियों का पुनरुद्धार प्रारम्भ किया जा सकता है।

-नदियों के किनारे हरित पट्टी का निर्माण कर घास, मूंज व पौधारोपण कर मिट्टी कटान को रोकने के प्रयास करने होंगे।

-यमुना में पानी बहाव की उचित मात्रा निर्धारित करके इसकी तलहटी में सिल्ट जमने से रोका जा सकता है।

-सामाजिक भागीदारी सुनिश्चित की जाए एवं शहरों व कारखानों के नालों का पानी शोधित कर नदियों में डाला जाए।

-राष्ट्रीय स्तर पर योजना बनाकर राजस्थान और मध्य प्रदेश की कई नदियों के पानी को उत्तर प्रदेश के आगरा में सीमावर्ती नदियों में जोड़ा जा सकता है।

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