सरकार के ढाई साल: लेखा जोखा देख होगी निराशा, आगरा की उम्मीदों को न लग सके पंख Agra News

दुरुस्त हुई पटरी फर्राटे का इंतजार। प्रदेश सरकार के 30 माह पूरे लेकिन पर्यटन व अन्य उद्योगों सहित कई क्षेत्रों में अभी होने हैं कई काम।

By Tanu GuptaEdited By: Publish:Fri, 20 Sep 2019 05:15 PM (IST) Updated:Fri, 20 Sep 2019 05:15 PM (IST)
सरकार के ढाई साल: लेखा जोखा देख होगी निराशा, आगरा की उम्मीदों को न लग सके पंख Agra News
सरकार के ढाई साल: लेखा जोखा देख होगी निराशा, आगरा की उम्मीदों को न लग सके पंख Agra News

आगरा, जागरण संवाददाता। राजनीतिक अस्थिरता और तुष्टीकरण की सियासत को खारिज कर ताजनगरी के मतदाताओं ने जब ढाई साल पहले मौजूदा योगी सरकार को पूरे नौ विधायकों की सूची थमाकर उनके सिर ताज सजाया तो उम्मीद थी कि आगरा सिर्फ नाम से ही नाम सरकार के काम से भी जाना जाएगा। यह उम्मीद, धुंधलाई तो नहीं पर पंख लगना अब भी बाकी है। अस्थिरता और तुष्टीकरण ने जो गड्ढे किए थे, वह तो ढाई साल में भरे लेकिन उस पर योगी की विकास एक्सप्रेस के फर्राटा भरने का इंतजार आगरा के मतदाताओं को अब भी है।

गुरुवार को लखनऊ में आयोजित पत्रकार वार्ता में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी उपलब्धियां गिनाई हैं। विकास और सुशासन पुस्तिका का विमोचन भी हुआ है। खूब विकास के दावे किए गए पर ताजनगरी का खाता खाली ही रहा। कानून व्यवस्था, ओडीओपी योजना, नगर विकास के क्षेत्र में कुछ सफलताएं हासिल हुईं तो तमाम क्षेत्र अधूरे रहे। यहां विकास के सिग्नल का इंतजार ही दिखा। यदि आगरा के नजरिए से देखें तो यहां एमएसएमई के मैन्यूफैक्चरिग सेक्टर को बूस्टर डोज का इंतजार है। इंफ्रास्ट्रक्चर व आवश्यक सेवाओं की गाड़ी जाम में फंसी है। आगरा को ताज के सिवा भी पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की उम्मीदों को अब भी रंग भरने का इंतजार है। आगरा से बड़े शहरों की एयर कनेक्टिविटी की बात चुनाव दौरान की गई, इसके बाद भी आगरा में सिविल एन्कलेव का सपना अभी तक पूरा नहीं हुआ है। औद्योगिक रूप से समृद्ध जिले को जीएसटी की दरों में छूट, विशेष औद्योगिक पैकेज, बिजली की बढ़ी दरों से राहत, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अन्तर्गत इसे काउंटर मैगनेट बनाने, बदहाल इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार, बाह को जिला बनाने, विवि को केंद्रीय विवि का दर्जा देने, एसएन मेडिकल को एम्स का दर्जा, बैराज, कृषि विवि, बाईपास, खंडपीठ, हैंडीक्राफ्ट उत्पाद को कर मुक्त व कलस्टर स्थापना की दरकार थी, लेकिन उम्मीदें अब भी महज उम्मीदें ही हैं।

बटेश्वर को नहीं मिली विकास की राह

भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी का पैतृक गांव बटेश्वर, उनके बिछुड़ जाने का दर्द तो उनके गांव के लोग सह रहे हैं। उनकी याद कर आज भी लोगों का गला भर आता है। उनकी इस नगरी के विकास के लिए वादे तो बहुत हुए, लेकिन ये वादे धरातल पर नहीं दिख पाए। प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी, निधन के बाद मुख्यमंत्री बटेश्वर आए, विकास का वादा किया, लेकिन सीएम का वादा भी कोरा साबित हुआ है। जो विकास कार्य होने थे, उनकी शुरूआत भी नहीं हुई है।

बीते साल सिंतबर में सीएम योगी अस्थि विसर्जन को बटेश्वर आए थे, उनके आगमन की सूचना पर बटेश्वर के विकास का खाका बनाया गया। कितना पैसा खर्च होगा, इस पर भी मंथन हुआ । उनकी खंडहर पड़ी पैतृक हवेली के समतल कराने का काम हुआ। बटेश्वर आगमन पर योगी ने यहां की जनता से कहाकि वे घोषणा नहीं करते, लेकिन एक माह में विकास उन्हें दिखता नजर आएगा। एक माह छोडि़ए, पूरा साल गुजर गया। प्रदेश में सरकार बने भी ढाई साल हो गए, अब हालात ये है कि जिस हवेली पर स्मारक बनाने की योजना थी उस पर दोबारा कंटीले पेड़ उग आए हैैं। अटल के बटेश्वर को योगी की संजीवनी भी नहीं मिल सकी है। आज भी विकास के लिए लोगों के जेहन में एक ही सवाल है कि पता नहीं कब और कौन इस बटेश्वर का विकास करायेगा।

बटेश्वर के लिए बने प्रस्ताव

जर्जर हो चुके बटेश्वर के मंदिरों का जीर्णोद्धार कर उनका संरक्षण करने, पैतृकआवास को 60 वर्ग गज में स्मारक और संग्रहालय का रूप देने की योजना व घोषणा थी। अटल की यज्ञशाला को जोड़ते हुए पार्क, मंदिर श्रंखला को जोड़ा जाना है। जंगलात कोठी का जीर्णोद्धार का भी प्रस्ताव है, जिस पर अटल ने अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंक तिरंगा फहराया था।

आशा और निराशा में झूलता रहा नगर विकास

पीएम शहरी आवास योजना आगरा में धड़ाम हो गई है। तदर्थ रोक और यथास्थिति के चलते एक भी आवास नहीं बना है। यहां तक कि एडीए ने बुढ़ाना में साढ़े आठ सौ आवास के निर्माण का जो प्रोजेक्ट तैयार किया था, उसे ड्रॉप कर दिया गया है। कुछ यही हाल बिल्डरों का भी है। नए नियम के तहत बीस हजार वर्ग मीटर (बिल्डअप एरिया) के बजाए केवल पांच हजार वर्ग मीटर तक का नक्शा पास हो सकता है।

ई-टेंडरिंग लागू फिर भी नहीं रुकी पूलिंग

प्रदेश सरकार ने नगर निगम, एडीए, लोक निर्माण विभाग सहित अन्य पर ई-टेंडरिंग लागू की है। मकसद था टेंडर पूलिंग को रोका जाए लेकिन ठेकेदारों ने इसका तोड़ खोज लिया।

आगरा मेट्रो प्रोजेक्ट

इस प्रोजेक्ट को अब तक 275 करोड़ रुपये रिलीज हो चुके हैं। सिकंदरा से ताज पूर्वी गेट तक पहले कॉरिडोर के सभी स्टेशनों का सर्वे हो चुका है। तकनीकी सर्वे अंतिम चरण में है। प्रोजेक्ट पर कुल 8379 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। इससे शहर में तीस किमी लंबा टै्रक बिछाया जा रहा है। तीस स्टेशन बनेंगे।

धीमी रफ्तार से चल रहे आगरा स्मार्ट सिटी के कार्य

दो हजार करोड़ रुपये से ताजगंज व उसके आसपास के नौ वार्डों को स्मार्ट तरीके से विकसित किया जा रहा है। फतेहाबाद रोड पर 105 करोड़ खर्च किए जा रहे हैं। वहीं पूरे शहर को सीसीटीवी कैमरों से लैस किया जा रहा है। नगर निगम स्थित स्मार्ट सिटी कार्यालय में सेंट्रल कमांड कंट्रोल सेंटर बनाया जा रहा है।

लाेग परेशान, जर्जर हैं रोड

शहर में एडीए, नगर निगम और लोक निर्माण विभाग रोड का निर्माण कराता है। बारिश के चलते अधिकतर सड़कें गड्ढों में तब्दील हो गई हैं। इससे लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

फेल हुआ डोर-टू-डोर कूड़ा कलेक्शन

शहर में डोर-टू-डोर कूड़ा कलेक्शन का अभियान फेल हो गया है। पांच में से एक कंपनी काम छोड़कर जा चुकी है। यूजर चार्ज की वसूली कम हो रही है, जबकि कंपनियों को करोड़ों रुपये का भुगतान किया जा रहा है।

अवैध निर्माण पर नहीं लग पा रही रोक

एडीए अवैध निर्माण को रोकने में नाकाम साबित हुआ है। प्रदेश में गोरखपुर के बाद आगरा दूसरा शहर है। यहां 27 हजार के करीब अवैध निर्माण हैं।

बड़े अपराधी दुबके, बहक रहे छोटे

सूबे में सत्ता बदलने के बाद पुलिस के तेवर बदले। अपराधियों और माफिया पर दनादन कार्रवाई हुई। इसका असर यह हुआ कि साल दर साल संगठित अपराध का ग्राफ गिर रहा है। हर वर्ष निरोधात्मक कार्रवाई का आंकड़ा भी बढ़ रहा है। मगर, थानों में जनसुनवाई की हालत में उम्मीद के मुताबिक सुधार अभी देखने को नहीं मिल रहा।

उत्तर प्रदेश में सपा सरकार को कानून व्यवस्था को लेकर लोग कोसते थे। खाकी बैकफुट पर थी और खादी हावी। सत्ता परिवर्तन के बाद खाकी के तेवर बदले। अपराधी और उनके संरक्षणदाताओं पर कार्रवाई हुई तो अपराध का ग्राफगिरने लगा। तीन वर्षों में कई जघन्य घटनाएं हुईं, लेकिन पुलिस ने उनमें से लगभग सभी का पर्दाफाश कर दिया। कुछ अपराधियों को मुठभेड़ में पैर में गोली लगी। इससे अपराधियों में खौफ पैदा हुआ। गैंगस्टर एक्ट के मामले में पुलिस ने पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष लगभग दोगुनी कार्रवाई की। एनएसए (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) के मामले में वर्ष 2016 और 17 में खाता भी नहीं खुला था। मगर, वर्ष 2019 में पुलिस दो लोगों पर एनएसए तामील कराने में सफल रही है। निरोधात्मक कार्रवाई के कारण अपराध का ग्राफ नीचे गिरा। फिरौती के लिए अपहरण, हत्या और चोरी में कमी आई। लूट के मामले अभी पिछले वर्षों की तुलना में उतने कम नहीं हैं, जितने अन्य अपराध। इसकी वजह पुलिस अधिकारी शत प्रतिशत मुकदमा दर्ज करने को बता रहे हैं। पहले चेन स्नेचिंग जैसी घटना को पुलिस लूट में नहीं लिखती थी। अब यह लूट में लिखी जा रही है। उधर, थानों में जन सुनवाई का हाल अभी बहुत नहीं सुधरा है। हेल्प डेस्क, समाधान दिवस जैसी नई व्यवस्था भी जनता का भरोसा कायम नहीं कर पा रही हैं। अभी अधिकारियों के दफ्तरों में फरियादियों की भीड़ देखी जा सकती है और थाने खाली। यह तस्वीर यही दिखाती है।

छोटे गिरोह बने चुनौती

पुलिस का खौफ अब बड़े बदमाशों में तो हैं, लेकिन छुटभैय्ये बदमाश अभी उतने नहीं डर रहे। ये चेन स्नेचिंग, वाहन चोरी और चोरी जैसी घटनाएं कर रहे हैं। पुलिस समय-समय पर इन्हें गिरफ्तार कर जेल भेजती रहती है। ये गिरोह पुलिस के चुनौती बनते जा रहे हैं।

साइबर अपराध में हो रही बढ़ोत्तरी

अब लूट के बजाय शातिर साइबर क्राइम करने में लगे हैं। इसमें न तो बल का प्रयोग करना है और न ही किसी के सामने जाना। बैठे-बैठे खातों से रकम पार करने जैसा अपराध बढ़ रहा है। वर्ष 2017 में आइटी एक्ट के 90 मुकदमे हुए थे। वर्ष 2018 में 65 और वर्ष 2019 में यह संख्या 89 पहुंच गई।

आंकड़ों की जुबानी, अपराध की कहानी

अपराध, 2019,2018,2017

डकैती, शून्य, 5, 5

हत्या, 89,91,92

लूट, 280,281,265

चोरी, 1891, 2044, 1969

अपहरण, 3,4,5

दुष्कर्म, 58, 67,46

निरोधात्मक कार्रवाई

अपराध, 2019,2018,2017

एनएसए, 2, 0,0

गैंगस्टर एक्ट, 115, 59,64

गुंडा एक्ट, 553,384,641

आबकारी एक्ट, 518, 350, 367

नारकोटिक्स एक्ट, 137,119, 111

(सभी आंकड़े एसएसपी कार्यालय के अनुसार हैं)

ओडीओपी में 34 को मिला 1.04 करोड़ रुपये का अनुदान

एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) योजना में आगरा का चमड़ा उद्योग शामिल है। पिछले वित्तीय वर्ष में ओडीओपी में आगरा में 34 आवेदकों को 1.04 करोड़ रुपये का अनुदान दिया गया। इस वर्ष 100 आवेदकों को 2.5 करोड़ रुपये का अनुदान देने का लक्ष्य है।

एक जिला एक उत्पाद योजना की सफलता में सबसे बड़ी मुश्किल उद्योग आधार, जीएसटी पंजीकरण और किरायेनामे का पेच फंस है। जिला उद्योग केंद्र से प्रोजेक्ट रिपोर्ट पूरी होने के बाद आवेदन बैंकों को भेज दिए गए थे। बैंकों की प्रक्रिया ऑनलाइन होने व जीएसटी पंजीकरण नहीं होने से अधिकांश आवेदकों को योजना का लाभ नहीं मिल सका। दरअसल वित्तीय वर्ष 2018-19 में 730 आवेदन आए थे, जिसमें से केवल 34 ही लाभान्वित हो सके।

स्टोन हैंडीक्राफ्ट व मार्बल इनले के चयन को हो चुकी है बैठक

ओडीओपी में आगरा से स्टोन हैंडीक्राफ्ट व मार्बल इनले वर्क के चयन के लिए पिछले दिनों प्रमुख सचिव सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम एवं निर्यात प्रोत्साहन नवनीत सहगल ने आगरा में कारोबारियों के साथ बैठक की थी। सरकार द्वारा इस पर निर्णय लिया जाना है।

करार हुए, लेकिन नहीं आए निवेशक

उप्र में वर्ष 2018 में हुए इन्वेस्टर्स समिट में आगरा के लिए करीब 27 हजार करोड़ रुपये के करार किए थे। इनमें से कोलकाता की इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी ने करीब 25 हजार करोड़ रुपये का निवेश करने की बात समिट में कही थी, लेकिन वो बोगस निकली। अन्य निवेशकों ने प्रदेश में करीब 2025 करोड़ रुपये के करार किए थे, लेकिन आगरा में पर्यावरण संबंधी बंदिशों के चलते कोई निवेशक आगरा नहीं आया।

खूब बने शौचालय, पर जागरूकता का अभाव

योगी सरकार के कार्यकाल में जिले में शौचालय तो खूब बने लेकिन लोगों में जागरूकता का अभाव दिखा। लोगों को शौचालय के प्रयोग के प्रति प्रेरित करने का अभाव दिखा। स्व'छ भारत मिशन के तहत जिले में तकरीबन 252600 शौचालय बनवाए गए हैं। इसमें केंद्र सरकार का 60 प्रतिशत जबकि राज्य सरकार का 40 फीसदी योगदान रहा। एसजेएम योजना के तहत तकरीबन सवा दो लाख शौचालय बनवाए गए हैं। एसजेएम योजना से छूटने वालों के एलओवी-1 के तहत शौचालय बनवाए गए हैं। इसमें तकरीबन 18741 और एलओवी-2 के तहत 10657 शौचालय बनवाए गए हैं।

बस दावों में गांवों का विकास

योगी सरकार के ढाई साल के कार्यकाल में गांवों के विकास के भी खूब दावे किये गए हैं लेकिन असल में आगरा जिले में गांवों के विकास की रफ्तार धीमी है। तालाबों के निर्माण का काम महज कागजों पर दिख रहा है। रेन वॉटर हार्वेस्टिंग, मेड़बंदी के दावे तो विभाग खूब करता है पर जमीनी हकीकत इससे ही जाहिर हो जाती है कि जलशक्ति अभियान की रैंकिंग में आगरा जिला मंडल में सबसे फिसड्डी रहा।

आंगनबाड़ी केंद्रों की दुर्दशा

योगी के ढाई साल के कार्यकाल में ब'चों के पोषण पर योजनाएं तो खूब बनीं पर जमीन पर पूरी तरह से नहीं उतर पाया। स्थिति ये है कि अब भी आंगनबाड़ी केंद्रों की दुर्दशा है। केंद्रों से आंगनबाड़ी संचालिका नदारद रहती है। आंगनबाड़ी केंद्रों पर अब भी ताले लटके मिलते हैं। देहात क्षेत्र के आंगनबाड़ी केंद्रों पर बिजली की व्यवस्था नहीं है। यही नहीं केंद्रों पर ब'चों के लिए पेयजल की व्यवस्था भी नहीं है।

कोशिशें हुईं पर सिरे नहीं चढ़ीं

पांच मई को मुख्यमंत्री ने सरोजनी नायडू मेडिकल कॉलेज का निरीक्षण किया, लेकिन न तो पूरी तरह चिकित्सा शिक्षा की सूरत बदल सकी और न ही सेहत में सुधार हुआ। एसएन सहित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ की कमी है। यहां तैनात डॉक्टर समय से ड्यूटी पर नहीं पहुंच रहे। वहीं, सरकारी अस्पतालों से मरीजों को दुत्कार कर भगाया जा रहा है। ऐसे में निजी अस्पतालों और झोलाछापों से इलाज विवशता बनी है। स्वास्थ्य विभाग ने झोलाछाप के खिलाफ अभियान चलाया है लेकिन रोक नहीं लग सकी है।

ये मिला :

-मुख्यमंत्री जन आरोग्य योजना से जुड़े 12 हजार परिवार।

-एसएन में केंद्र और राज्य सरकार द्वारा जनवरी 2019 में 200 करोड़ की सुपर स्पेशलिटी विंग का निर्माण कार्य शुरू हुआ।

- जिला अस्पताल में पीपीपी मॉडल से निश्शुल्क डायलिसिस और कैंसर। मरीजों के लिए कीमोथैरेपी की सुविधा

- जिला अस्पताल में सीटी स्कैन की सुविधा, एमआरआइ प्रस्तावित।

ये चाहिए :

-एसएन में 30 फीसद चिकित्सकों की कमी है, जिला अस्पताल में विशेषज्ञ चिकित्सक।

-एसएन में 60 फीसद पैरामेडिकल स्टाफ और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की कमी है।

-सीएचसी, पीएचसी और स्वास्थ्य केंद्रों पर 40 फीसद चिकित्सकों की कमी है।

आधार की 'गाड़ी नहीं पकड़ सकी रफ्तार

आधार कार्ड की अनिवार्यता के बाद लोगों के लिए आधार बनवाना एक बहुत मुश्किल भरा काम हो गया है। सरकार द्वारा जन सुविधा केंद्रों पर आधार कार्ड बनाने की सुविधा बंद करने के बाद डाकघर में लंबी-लंबी लाइन लगती हैं। आलम यह है कि रात भर डाकघर के बाहर लाइन लगानी पड़ती है, तब जाकर सुबह टोकन मिलता है। एक डाकघर में एक दिन में अधिकतम 80 आधार बनते हैं। आधार की समस्या को देखते हुए पिछले दिनों संजय प्लेस में आधार केंद्र खोला गया। इसके बाद जाकर आधार कार्ड बनाने में थोड़ी तेजी आई है, लेकिन इसके बाद भी एक दिन में डाकघर और आधार केंद्र को मिलकर करीब 500 लोगों के आधार कार्ड ही बन पा रहे हैं। डाकघर में आधार बनाने का काम हो रहा है, लेकिन इक्का-दुक्का बैंकों को छोड़कर कहीं पर आधार नहीं बन रहे। आधार बनवाना लोगों के लिए बहुत मुश्किल भरा काम हो गया है।

टाट-पट्टी पर खतरे के बीच पढ़ रहे बच्चे

सरकार शिक्षा के स्तर को फिक्रमंद भले नजर आ रही हो, लेकिन धरातल पर सुधार होता नजर नहीं आ रहा है। नगर क्षेत्र में बच्चे जर्जर भवनों, सड़क, पार्क में संचालित स्कूलों में पढऩे को मजबूर हैं। नगर क्षेत्र के अधिकांश स्कूल एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं।

आगरा में करीब 2957 प्राइमरी और जूनियर हाईस्कूल हैं। नगर क्षेत्र में 166 स्कूल हैं। नगर क्षेत्र की बात करें तो इन स्कूलों में केवल 170 शिक्षक तैनात हैं। अधिकांश स्कूल एकल शिक्षकों के भरोसे चल रहे हैं। गोबर चौकी में सड़क पर, नारायणी बिल्डिंग जगदीशपुरा में केमिकल के ड्रमों के बीच, राधा नगर में खुले पार्क में, छोटा उखर्रा में सड़क पर स्कूल चल रहा है। जबकि मालवीय कुंज स्थित स्कूल का भवन जर्जर है। नगर क्षेत्र के 66 स्कूलों में बिजली कनेक्शन नहीं है। अधिकतर स्कूलों में पेयजल की कोई व्यवस्था नहीं है। देहात की बात करें तो शहर से लगे बरौली अहीर, शमसाबाद, एत्मादपुर, बिचपुरी, खंदौली ब्लॉक में एचआरए वाले विद्यालयों में शिक्षकों की बहुतायत है। मगर दूरदराज स्थित बाह, जैतपुर कला, पिनाहट, जगनेर के स्कूलों में शिक्षकों की कमी है।

यूटा के जिला महामंत्री राजीव वर्मा ने बताया कि स्कूलों की स्थिति में अधिक सुधार नहीं हुआ है। बिजली कनेक्शन सभी स्कूलों में नहीं हैं। बच्चों को दिए जाने वाले जूते-मोजों की गुणवत्ता जरूर कुछ सुधरी है।

नकल पर लगी लगाम

सरकार बोर्ड परीक्षा में नकल पर रोक लगाने में जरूर कामयाब हुई है। इसके चलते बोर्ड परीक्षा में फर्जी परीक्षार्थियों का रजिस्ट्रेशन कम हुआ है। पिछले शैक्षिक सत्र में हाईस्कूल व इंटरमीडिएट की परीक्षा में बैठने वाले छात्रों की संख्या में करीब तीन हजार की गिरावट आई थी। 

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