Do not Worry: घबराएं नहीं, 80 फीसद लोगों में हैं कोरोना वायरस के मामूली लक्षण, होम आइसोलेशन में हो सकते हैं ठीक
आगरा में कोरोना वायरस के एक्टिव केस तीन हजार के करीब पहुंच चुके हैं। लोग बुरी तरह घबरा रहे हैं। जबकि अब सामने ये आया है कि जो लोग पहले से किसी बीमारी से ग्रसित हैं उनके लिए स्थिति खतरनाक हो सकती है।
आगरा, जागरण संवाददाता। ताजनगरी ही क्या, इस समय तो देश का कोई भी शहर ऐसा नहींं बचा, जहां कोरोना वायरस संक्रमण तेजी से बढ़ न रहा हो। ऐसे में लोग पैनिक का शिकार हो रहे हैं। अवसादग्रस्त हो रहे हैं। अगर आगरा की ही बात करें तो यहां एक्टिव केस अब 3000 के करीब हैं लेकिन इनमें से करीब 80 फीसद लोगों में मामूली लक्षण हैं। ये मरीज होम आइसोलेशन में रहकर प्रोटोकॉल का पालन करते हुए ठीक हो रहे हैं। कोरोना की दूसरी लहर घातक और संक्रामक है लेकिन घबराने की जरूरत नहीं है। सकारात्मक सोच के साथ इस संक्रमण को मात दी जा सकती है।
दरअसल लोग अब भी इसको लेकर जागरूक नहीं हैं और खासकर निम्न आय वर्ग के लोग कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन नहीं कर रहे हैं, यही वजह है कि एक क्षेत्र में एक व्यक्ति संक्रमित है तो वह तमाम लोगों को संक्रमित कर रहा है। इससे हर उम्र के लोग संक्रमित हो रहे हैं, मधुमेह, सांस संबंधी बीमारी, ह्रदय रोग से पीड़ित मरीज भी संक्रमित होने लगे हैं। इनके लिए कोरोना घातक हो रहा है। मगर, 80 फीसद कोरोना संक्रमित मरीजों में सामान्य लक्षण हैं। ये होम आइसोलेशन में पूरी तरह से ठीक हो रहे हैं। एसएन मेडिकल कॉलेज के टीबी एंड चेस्ट डिपार्टमेंट के प्रोफेसर डा. जीवी सिंह का कहना है कि होम आइसोलेशन में कुछ सावधानी बरतें, हर दो घंटे पर आक्सीजन का स्तर देखते रहें। आक्सीजन का स्तर 94 फीसद से कम है, सांस लेने में परेशानी हो रही है, सीने में जकड़न है तो स्वास्थ्य विभाग को सूचना दें, जिससे अस्पताल में भर्ती कराया जा सके।
संक्रमण के आठवें से 10 वें दिन घातक हो रहा कोरोना
कोरोना संक्रमण आठवें से 10 वें दिन घातक हो रहा है। फेंफड़ों में संक्रमण के साथ ही अन्य अंग प्रभावित हो रहे हैं। ऐसे में देर से अस्पताल पहुंचने वाले मरीजों की जान बचना मुश्किल हो रहा है। कोरोना की दूसरी लहर में लक्षण बदल गए हैं। संक्रमित होने के चार से पांचवें दिन पेट दर्द, उल्टी, सिर दर्द के साथ ही बुखार आ रहा है। इन लक्षणों के आने के आठवें से 10 वें दिन के बीच में ज्यादा समस्याएं हो रही हैं। एसएन मेडिकल कालेज के टीबी एंड चेस्ट डिपार्टमेंट के डा जीवी सिंह ने बताया कि कोरोना संक्रमित होने के बाद वायरस से लड़ने के लिए शरीर में साइटोकाइन रिलीज होते हैं। यह आठवें से 10 वें दिन के बीच में सबसे ज्यादा रिलीज होते हैं, इस दौरान सांस लेने में परेशानी होने लगती है। फेंफड़ों में संक्रमण बढ़ जाता है और लिवर सहित शरीर के अन्य अंग प्रभावित होने लगते हैं। आक्सीजन का स्तर 70 से 80 के बीच में पहुंचने पर लोगों को अहसास होता है। वे अस्पताल तक पहुंचते हैं तब तक आक्सीजन का स्तर 50 से 60 के बीच में पहुंच चुका होता है। ऐसे मरीजों की जान बचाना मुश्किल हो रहा है। रेमडेसिवीर से जान नहीं बच रही, अस्पताल का समय हो रहा कम एसएन मेडिकल कालेज में कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज कर रहे डा मृदुल चतुर्वेदी ने बताया कि अभी तक उपलब्ध डाटा के अनुसार, रेमडेसिवीर इंजेक्शन से कोरोना संक्रमित मरीजों की जान नहीं बच रही है। जिन मरीजों में आक्सीजन का स्तर कम हो गया है, संक्रमण ज्यादा है, उनमें रेमडेसिवीर लगाया जाता है तो उन्हें ज्यादा दिन अस्पताल में नहीं रहना पड़ रहा है। इसलिए हर मरीज के लिए रेमडेसिवीर जरूरी नहीं है।