Devshayani Ekadashi: कल है हरिशयनी एकादशी, जानिए जरूरी नियम और पूजन का महत्व

Devshayani Ekadashi हरिशयनी एकादशी तिथि से जगत के संचालक भगवान विष्णु चार माह के लिए शयन करने चले जाते हैं। 19 जुलाई 2021 सोमवार को रात्रि 1000 से 20 जुलाई मंगलवार को 0717 तक एकादशी है। 20 जुलाई मंगलवार को एकादशी का व्रत (उपवास) रखें।

By Tanu GuptaEdited By: Publish:Mon, 19 Jul 2021 03:42 PM (IST) Updated:Mon, 19 Jul 2021 03:42 PM (IST)
Devshayani Ekadashi: कल है हरिशयनी एकादशी, जानिए जरूरी नियम और पूजन का महत्व
20 जुलाइ को है हरी शयनी एकादशी का व्रत।

आगरा, जागरण संवाददाता। देवशयनी अथवा हरिशयनी एकादशी का व्रत मंगलवार 20 जुलाई को है। आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को हरिशयनी एकादशी कहते है। हरिशयनी एकादशी तिथि से जगत के संचालक भगवान विष्णु चार माह के लिए शयन करने चले जाते हैं। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जय जोशी के अनुसार 19 जुलाई 2021 सोमवार को रात्रि 10:00 से 20 जुलाई मंगलवार को 07:17 तक एकादशी है। 20 जुलाई मंगलवार को एकादशी का व्रत (उपवास) रखें।

देवशयनी एकादशी की व्रत कथा 

युधिष्ठिर ने पूछा: भगवन् ! आषाढ़ के शुक्लपक्ष में कौन सी एकादशी होती है ? उसका नाम और विधि क्या है? यह बतलाने की कृपा करें।

भगवान श्रीकृष्ण बोले: राजन्! आषाढ़ शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम ‘शयनी’ है। मैं उसका वर्णन करता हूं। वह महान पुण्यमयी, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करनेवाली, सब पापों को हरनेवाली तथा उत्तम व्रत है।

आषाढ़ शुक्लपक्ष में ‘शयनी एकादशी’ के दिन जिन्होंने कमल पुष्प से कमललोचन भगवान विष्णु का पूजन तथा एकादशी का उत्तम व्रत किया है, उन्होंने तीनों लोकों और तीनों सनातन देवताओं का पूजन कर लिया।

‘हरिशयनी एकादशी’ के दिन मेरा एक स्वरुप राजा बलि के यहां रहता है और दूसरा क्षीरसागर में शेषनाग की शैय्या पर तब तक शयन करता है, जब तक आगामी कार्तिक की एकादशी नहीं आ जाती, अत: आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक मनुष्य को भलीभांति धर्म का आचरण करना चाहिए। जो मनुष्य इस व्रत का अनुष्ठान करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है, इस कारण यत्नपूर्वक इस एकादशी का व्रत करना चाहिए। एकादशी की रात में जागरण करके शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवान विष्णु की भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने वाले पुरुष के पुण्य की गणना करने में चतुर्मुख ब्रह्माजी भी असमर्थ हैं।

राजन्! जो इस प्रकार भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले सर्वपापहारी एकादशी के उत्तम व्रत का पालन करता है, वह जाति का चाण्डाल होने पर भी संसार में सदा मेरा प्रिय रहनेवाला है। जो मनुष्य दीपदान, पलाश के पत्ते पर भोजन और व्रत करते हुए चौमासा व्यतीत करते हैं, वे मेरे प्रिय हैं। चौमासे में भगवान विष्णु सोये रहते हैं, इसलिए मनुष्य को भूमि पर शयन करना चाहिए।

सावन में साग, भादों में दही, क्वार में दूध और कार्तिक में दाल का त्याग कर देना चाहिए। जो चौमसे में ब्रह्मचर्य का पालन करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है। राजन् ! एकादशी के व्रत से ही मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है, अत: सदा इसका व्रत करना चाहिए। कभी भूलना नहीं चाहिए। शयनी’ और ‘बोधिनी’ के बीच में जो कृष्णपक्ष की एकादशीयां होती हैं, गृहस्थ के लिए वे ही व्रत रखने योग्य हैं। अन्य मासों की कृष्णपक्षीय एकादशी गृहस्थ के रखने योग्य नहीं होती। शुक्लपक्ष की सभी एकादशी करनी चाहिए। 

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