तिब्‍बती धर्मगुरु दलाई लामा बोले, अहिंसा, करुणा, मैत्रीय भारत की पहचान Agra News

रमणरेती आश्रम में हुआ तिब्बती धर्मगुरु का स्वागत। भारत की संस्कृति और संस्कृत भाषा को सराहा।

By Tanu GuptaEdited By: Publish:Sun, 22 Sep 2019 06:38 PM (IST) Updated:Sun, 22 Sep 2019 11:00 PM (IST)
तिब्‍बती धर्मगुरु दलाई लामा बोले, अहिंसा, करुणा, मैत्रीय भारत की पहचान Agra News
तिब्‍बती धर्मगुरु दलाई लामा बोले, अहिंसा, करुणा, मैत्रीय भारत की पहचान Agra News

आगरा, जेएनएन। भगवान श्रीकृष्ण की क्रीड़ा स्थली वृंदावन में तिब्बत के आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा ने भारत की पहचान अहिंसा, करुणा, मैत्रीय की प्रशंसा की है। उन्होंने कहा है कि प्रेम, करुणा, अहिंसा का सिद्धांत आज भी प्रासंगिक है। आधुनिक समय में आधुनिक विषय पढ़ें, लेकिन हजारों वर्ष पुराना करुणा, अहिंसा, प्रेम का संदेश भी पढऩा चाहिए। इसे जानना चाहिए। भारत में विभिन्न परंपरा और संप्रदाय के लोग अपने-अपने धर्म का पालन करते हैं। दुनिया के अन्य देशों को भी यह भारत से सीखना चाहिए।

दलाईलामा मथुरा के महावन स्थित गुरुशरणानंद के रमणरेती आश्रम में श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक लोग भी मानते हैं कि धार्मिक सदभाव महत्वपूर्ण है। आधुनिक शिक्षा प्रणाली में करुणा, मैत्रीय, अहिंसा को पढ़ाना चाहिए। जिस तरह हम शरीर को चलाने के लिए भौतिक सुविधाओं पर ध्यान देते हैं, उसी तरह विवि स्तर तक करुणा, मैत्रीय के संदेश देने चाहिए। इस संदेश से मानसिक विकास के साथ सुख-समृद्धि भी होगी। केवल भारत के लोगों के लिए नही, बल्कि दुनिया के सात अरब से ज्यादा लोगों के लिए इस संदेश को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। आज हर जगह हिंसा है, हथियारों और औजारों का बोलबाला है। इसे कम कर अहिंसा को बढ़ाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि जरूरत है कि इन तीनों को अपनाकर भारत के लोग दूसरों के लिए उदाहरण बनें। उन्होंने संस्कृत पर कहा कि ये भारत की प्राचीन संस्कृति की भाषा है। बौद्ध धर्म में भी संस्कृत भाषा का प्रयोग किया गया है। जब मैं स्कूल में पढ़ता था, तो मेरे गुरु भी हमें संस्कृत भाषा का ज्ञान दिया करते थे। संस्कृत भाषा इतनी जटिल होने के कारण मुझे इतना ज्ञान नहीं हुआ, लेकिन जब यहां संस्कृत में मंत्रोच्चारण किया बहुत अच्छा लगा। वाकई संस्कृत भाषा तारीफ के काबिल है। बौद्ध दर्शन के अनुसार, जहां तक भारतीय परंपरा में प्रमुख शब्द विद्या, चिकित्सा विद्या, बौद्ध विद्या, श्रम विद्या हैं। सभी संस्कृत भाषा में वर्णित हैं। आपने भारतीय भाषा संस्कृत को बनाए रखा उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूं। इससे पहले आश्रम पर उनका मंत्रों के बीच महाभिषेक किया गया।

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