आगरा में 11 वर्षीय बालक के अपहरण के 15 साल बाद दोषियों को अदालत ने सुनाई उम्र कैद की सजा

डौकी के स्कूल से 23 सितंबर 2004 को हुआ था अपहरण। 19 जुलाई 2005 को नामजद आराेपितें पर दर्ज कराया था अपहरण का मुकदमा। आरोपितों की निशानदेही पर बरामद हुए थे कपड़े नहीं मिला अपहृत। तीनों पर 70 हजार रुपये का अर्थ दंड भी लगाया है।

By Prateek GuptaEdited By: Publish:Sat, 27 Feb 2021 02:31 PM (IST) Updated:Sat, 27 Feb 2021 02:31 PM (IST)
आगरा में 11 वर्षीय बालक के अपहरण के 15 साल बाद दोषियों को अदालत ने सुनाई उम्र कैद की सजा
अपहरण के मामले में 15 साल बाद आरोपितों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है।

आगरा, जागरण संवाददाता। अागरा में 15 साल पहले स्कूल में खेलने के दौरान अपहरण किए गए बालक के मामले में 15 साल बाद अदालत का फैसला आया है। अपहरण के मुकदमे में नामजद तीन अभियुक्तों को अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। विशेष न्यायाधीश दस्यु प्रभावी क्षेत्र की अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। तीनों पर 70 हजार रुपये का अर्थ दंड भी लगाया है। इसकी आधी धनराशि अपहृत के स्वजन को अदा करने के आदेश दिए हैं। हालांकि बालक का आज तक सुराग नहीं मिल सका।

घटना 23 सितंबर 2004 की है। डौकी के गांव गुढ़ा के पूर्व प्रधान चंद्रहंस का 11 वर्षीय पुत्र सतेंद्र स्कूल गया था। वहां से खेलते समय लापता हो गया। पिता ने सत्येंद्र की गुमशुदगी दर्ज करा दी। सात महीने तक पुत्र के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली। पिता चंद्रहंस ने 19 जुलाई 2005 को गवाह हरी सेवक निवासी मुटनई डाैकी के शपथ पत्र के साथ एसएसपी काे प्रार्थना पत्र दिया। इसमें हरी सेवक ने रनवीर, निहाल सिंह, बबलू परमार पर अपहरण का आरोप लगाया।

स्वजन ने कहा कि अभियुक्त दो लाख रुपये फिरौती वसूलना चाहते थे। पुलिस को उनके नाम पहले इसलिए नहीं बताए थे कि बालक के साथ अनहोनी की आशंका थी। आरोपित परमार हिस्ट्रीशीटर है। अपहरण के पीछे प्रधानी के चुनाव की रंजिश भी थी। चंद्रहंस के पिता सरनाम और रनवीर के पिता ने वर्ष 1988 में प्रधानी का चुनाव लड़ा था। दोनों के बीच वर्ष 1992 में मारपीट हो गई थी। इसे लेकर रनवीर रंजिश मान गया था।

उसने बालक सत्येंद्र का अपहरण किया था। पुलिस ने रनवीर, भरत सिंह, राधाकृष्ण, निहाल सिंह, रामनरेश व परमार निवासी डौकी के खिलाफ अपहरण, हत्या और शव छिपाने का की धारा में मुकदमा दर्ज किया था। मुकदमे के दौरान रामनरेश, राधाकृष्ण और निहाल सिंह के अदालत में हाजिर नहीं होने के चलते उनकी पत्रावली अलग कर दी गई।

परमार की निशानदेही पर 15 जनवरी 2006 को अपहृत सत्येंद्र के कपड़े पुलिस ने गांव के रूमाल सिंह के खेत में गड्ढूे से बरामद किए। पुलिस को सत्येंद्र का शव नही मिला। इसके चलते अदालत ने हत्यारोप से तीनो को बरी कर दिया। जिला शासकीय अधिचक्ता मंगल सिंह उपाध्याय ने अदालत में छह गवाह और सुबूत पेश किए। इस पर अदालत ने तीनों को अपहरण का दोषी पाते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

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