Trees Conservation: आओ बचाएं बरगद, पीपल, पाखड़ और गूलर के पेड़, आगरा में सहेजे जा रहे इधर-उधर उग आने वाले पौधे

नालियों के किनारे उगे पौधों को सहेज रहे हैं आगरावासी। धरा को हरा-भरा बनाने के प्रयास में अब तक 400 पौधे नालियों के किनारे से उखाड़कर थैलियों में रोपे। अगले मानसून में पार्कों व सड़कों के किनारे रोपेंगे।

By Prateek GuptaEdited By: Publish:Wed, 06 Oct 2021 11:25 AM (IST) Updated:Wed, 06 Oct 2021 11:25 AM (IST)
Trees Conservation: आओ बचाएं बरगद, पीपल, पाखड़ और गूलर के पेड़, आगरा में सहेजे जा रहे इधर-उधर उग आने वाले पौधे
आगरा में इधर उधर उग आने वाले पौधों को सहेजा जा रहा है। प्रतीकात्‍मक फोटो

आगरा, जागरण संवाददाता। मानसून विदा हो चुका है। हर तरफ हरियाली छाई है। पार्कों व सड़क के किनारे पर उगे पौधे हरियाली बढ़ा रहे हैं। नाली और नालों के किनारे भी पौधे उग आए हैं। इन पौधों को आगरावासी सहेज रहे हैं, जिससे कि गर्मी में वो सूख न जाएं। पाखड़, बरगद, पीपल और गूलर के पौधों को निकालकर थैलियों में लगाकर बड़ा किया जाएगा। उन्हें अगले मानसून में पार्कों व सड़कों के किनारे रोपकर धरा को हरा-भरा बनाने का प्रयास किया जाएगा।

अधिवक्ता केसी जैन ने बताया कि नाली और नालों के किनारे बरसात में आसानी से पौधे उग आते हैं। उन्हें निकालने का विचार सभी को पसंद नहीं आता, उन्हें लगता है कि यह गंदा है। वो अब तक अपनी टीम के साथ नालियों से निकालकर करीब 400 पौधों को थैलियों में लगा चुके हैं। उनका लक्ष्य है कि दो हजार पौधों को नालियों से निकालकर थैलियों में लगाया जाए। जैन ने बताया कि पाखड़, बरगद, पीपल और गूलर के पौधों के बीज बहुत छोटे होते हैं और बड़ी मुश्किल से उगते हैं। नमी के कारण नालियों में यह स्वयं उग आते हैं। शहर के हर व्यक्ति को कम से कम 10 ऐसे पौधों की परवरिश कर, अभियान का हिस्सा बनना चाहिए। उनकी टीम में शामिल रामवीर यादव, आशीष गुप्ता, उमाशंकर कुशवाह, संजीव श्रीवास्तव, राजेश फौजदार हरियाली बचाने को योगदान कर रहे हैं।

पक्षियों का आशियाना है पाखड़

पाखड़ का पेड़ पक्षियों के लिए आशियाना है। यह घनी छाया के लिए भी जाना जाता है। गूलर पक्षियों के लिए फूड फैक्ट्री है। बरगद के फल पक्षियों को खूब पसंद आते हैं। इनका जीवन काल भी 100 वर्ष तक होता है। पीपल सबका पूज्य है। नीम के पेड़ के नीचे नीम के पौधे बारिश में निकल आते हैं। कृष्ण भगवान के प्रिय देसी कदंब के पेड़ के नीचे भी कदंब के छोटे पौधे देखे जा सकते हैं। पालीवाल पार्क में खजूर व पापड़ी के पौधे उग आए हैं। अड़ूसा के पौधे भी उसके बीज से आसानी से स्वयं उग जाते हैं। इन पौधों के स्थानीय प्रजाति का होने से सहेजने की अधिक जरूरत है।

पौधों को पहचानें और उन्हें बचाएं

हरियाली के सिमटते दायरे के बीच हमें पौधों को पहचानने, घर व व्यावसायिक स्थल के समीप उगे पौधों को बचाने, थैलियों में शिफ्ट कर उनकी परवरिश करने और अगले मानसून में उन्हें सही जगह पर रोपने की जरूरत है। इससे बिना किसी लागत के पौधारोपण को पौध तैयार हो जाएगी। इससे हर वर्ष सूख जाने वाले पौधे तो बचेंगे ही, हमें हर वर्ष अच्छे पौधे भी मिल सकेंगे। नर्सरियों से पौधे लेने की भी जरूरत नहीं रहेगी।

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