Jail Manual: अंग्रेजों के जमाने के जेल मैनुअल में बदलाव की तैयारी, इसलिए पड़ी जरूरत

Jail Manual सन 1874 का है उत्तर प्रदेश प्रिजन एक्ट ड्राफ्टिंग कमेटी ने तैयार किया नया मैनुअल। अंग्रेजी में तैयार नए मैनुअल को हिंदी में अनुवादित करने के बाद दिया जाएगा अंतिम रूप। ड्राफ्टिंग कमेटी के कार्य में आई गति का आधार दैनिक जागरण में वर्ष 2017 में छपी खबर।

By Tanu GuptaEdited By: Publish:Sun, 17 Jan 2021 05:09 PM (IST) Updated:Sun, 17 Jan 2021 05:09 PM (IST)
Jail Manual: अंग्रेजों के जमाने के जेल मैनुअल में बदलाव की तैयारी, इसलिए पड़ी जरूरत
अंग्रेजी में तैयार नए मैनुअल को हिंदी में अनुवादित करने के बाद दिया जाएगा अंतिम रूप।

आगरा, जागरण संवाददाता। उत्तर प्रदेशों की जेलों में अंग्रेजों के जमाने के जेल मैनुअल में बदलाव की तैयारी है। सन 1874 के प्रिजन एक्ट के बदलाव के लिए बनी ड्राफ्टिंग कमेटी इसे तैयार कर रही है। मार्डन जेल मैनुअल की भूमिका वर्ष 2016 में ब्यूरो आफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट द्वारा जारी रिपोर्ट के आधार पर तैयार बनी। इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने ड्राफ्टिंग कमेटी गठित की।कमेटी में सेवानिवृत्त एवं जेल के अधिकारियों को शामिल किया गया। कमेटी ने जेल अधिकारियों से मैनुअल में बदलाव के संबंध में सुझाव मांगे थे। नए जेल मैनुअल में इन बदलाव को शामिल किया गया है। अंग्रेजी में तैयार किए गए नए मैनुअल को हिंदी में अनुवादित करने के बाद अंतिम रूप दिया जाएगा।

नए जेल मैनुअल में बदलाव को ड्राफ्टिंग कमेटी के कार्य में आई गति का आधार दैनिक जागरण में वर्ष 2017 में छपी खबर भी है। आगरा के आरटीआई एक्टिविस्ट नरेश पारस ने पांच साल (वर्ष 2012 से 2017 के मध्य) के दौरान प्रदेश की जेलों में हुई बंदियों की मौतों की जानकारी कारागार मुख्यालय से मांगी थी। मुख्यालय द्वारा पांच साल के दौरान दो हजार बंदियों की मौत होने की जानकारी दी गई थी। इसकी खबर दैनिक जागरण ने प्रमुखता से प्रकाशित की थी। आरटीआइ एक्टिविस्ट द्वारा नवंबर 2017 में बंदियों की मौतों के मामले को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के संज्ञान में लाया गया।

आयोग ने डीजी कारागार और उत्तर प्रदेश सरकार से जेल मैनुअल ड्राफ्ट की वर्तमान स्थिति एवं जेलों में अतिरिक्त बैरकों के निर्माण के बारे में रिपोर्ट मांगी। आयोग के निर्देश पर मई 2019 में अवर सचिव द्वारा एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। इसमें कहा गया है कि जेल मैनुअल के ड्राफ्ट के पूरा होने के लिए कुछ और समय की आवश्यकता है। इस पर मानवाधिकार आयाेग ने इस वर्ष छह जनवरी को मुख्य सचिव, उत्तर प्रदेश सरकार को दोबारा स्मरण पत्र जारी किया है। इसमें जेल मैनुअल के ड्राफ्ट की वर्तमान स्थिति और जेलों में अतिरिक्त बैरकों के निर्माण के संबंध में चार सप्ताह में रिपोर्ट देने की कहा है।

इसलिए पड़ी नए जेल मैनुअल की जरूरत

-भारतीय दंड संहिता(आइपीसी) और भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता(सीआरपीसी) में कई बदलाव हो चुके हैं। इसके चलते जेल मैनुअल के कई नियम अप्रभावी हो गए हैं।

-पुराने मैनुअल में सजायाफ्ता बंदियों के बारे में जेल प्रशासन को अधिकार दिए गए हैं। सजायाफ्ता द्वारा उपद्रव करने, गुटबाजी करने आदि पर उसे दूसरे जिले की जेल में स्थानांतरित किया जा सकता। अच्छे आचरण पर उसकी सजा में कमी हो सकती है।

-पुराने मैनुअल में विचाराधीन बंदियों को लेकर अत्यंत सीमित अधिकार दिए गए हैं। उसके द्वारा उपद्रव, मारपीट या गुटबाजी करने पर बैरक बदली जा सकती है। जेल प्रशासन द्वारा अपने स्तर से विचाराधीन बंदी को दंड देने का प्रावधान नहीं है। ऐसे में इन बंदियों के निरंकुश रहने का प्रयास करते हैं।

-अंग्रेजों के जमाने के जेल मैनुअल का उद्देश्य अपराधियों को समाज से अलग-थलग करके जेल में बंद रखना था। आधुनिक समय में जेलों का उद्दे्श्य अपराधी को सिर्फ जेल में बंद रखना ही नहीं है, उन्हें सुधारकर समाज में पुर्नस्थापित करना है। नए जेल मैनुअल में इसका प्रावधान होगा।

-1874 में जब प्रिजन एक्ट बना उस समय अपराधियों जेलों में अपराधियों की संख्या काफी कम थी। अब यह संख्या बढ़कर सौ गुना हाे चुकी है।

नए जेल मैनुअल में यह हो सकते हैं संभावित बदलाव

-बंदियों को दिए जाने वाले भोजन के मानकों में बदलाव होगा। मिर्च और मसालों की मात्रा बढ़ाई जाएगी। अभी तक बंदियों को दिए जाने वाले भोजन में मसालों की मात्रा काफी कम रहती है। इससे कि उन्हें खाना बेस्वाद लगता है।

-बंदियाें को वर्तमान में भाेजन में एक वक्त में 45 ग्राम डाल दी जाती है। नए मैनुअल में दाल की मात्रा 50 ग्राम हो सकती है।

-बंदियों को समाज में पुर्नस्थापित करने के लिए व्यवसायिक पाठ्यक्रमों की संख्या बढाई जाएगी। वर्तमान में गिने चुने ही व्यवसायिक कार्य बंदियों को दिए जाते हैं।

-विचाराधीन बंदियों को दंड देने के लिए जेल-प्रशासन के अधिकारों को बढ़ाया जाएगा।

-विचाराधीन बंदियों को विधिक सहायता देने के प्रावधान में विस्तार किया जा सकता है। इससे कि उसके केस का त्वरित निस्तारण करके जेल में बंदियों की संख्या को कम किया जा सके। जेलों में सबसे ज्यादा संख्या विचाराधीन बंदियों की है। 

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