Bhagat Singh Special: यूपी के इस शहर में भगत सिंह का मंदिर,जहां उन्हें भगवान की तरह पूजते हैं लोग

Bhagat Singh Special नूरी दरवाजे स्थित एक कोठी में भगत सिंह रहते थे। यहां पर उनके द्वारा अंग्रेजी हुकूमत को हिलाने के लिए बम बनाए। ये स्थान उनके लिए मुफीद रहा। एक वर्ष में वे हींग की मंडी और नाई की मंडी भी रहे।

By Tanu GuptaEdited By: Publish:Mon, 28 Sep 2020 11:36 AM (IST) Updated:Mon, 28 Sep 2020 05:08 PM (IST)
Bhagat Singh Special: यूपी के इस शहर में भगत सिंह का मंदिर,जहां उन्हें भगवान की तरह पूजते हैं लोग
आगरा के नूरी दरवाजा में भगत सिंह का मंदिर। फाइल फोटो

आगरा, तनु गुप्‍ता। क्रांति की मशाल जलाने वाले सरदार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को याद किया जाता है, उनका आगरा से गहरा नाता रहा है। सरदार भगत सिंह अपने इन दो साथियों के साथ एक वर्ष लगातार आगरा में रहे। यहां नूरी दरवाजे स्थित एक कोठी में वे रहते थे। यहां पर उनके द्वारा अंग्रेजी हुकूमत को हिलाने के लिए बम बनाए। ये स्थान उनके लिए मुफीद रहा। एक वर्ष में वे हींग की मंडी और नाई की मंडी भी रहे। कीठम, कैलाश के साथ ही भरतपुर के जंगलों में ये क्रांतिकारी हथियारों से निशाना लगाने का अभ्यास भी करते थे।

ये है नाता

आगरा कॉलेज की इतिहास की प्रोफेसर डॉ अपर्णा पोद्दार ने बताया कि 23 मार्च 1931 को तीनों क्रांतिकारियों को एक साथ फांसी दी गई। तीनों ही क्रांतिकारी आगरा के लोगों के दिलों में बसते थे। यहां उन्होंने एक वर्ष का कार्यकाल बिताया साथ ही लगातार तीन वर्ष तक वे आगरा के संपर्क में रहे। आगरा इन क्रांतिकारियों के लिए मुफीद था, कारण था कि एक तो आगरा में क्रांतिकारियां गतिविधियों बहुत अधिक नहीं थीं, जिससे आगरा शांत था। यहां रहने पर किसी को शक भी नहीं हुआ, वहीं आगरा में रहने के बाद इन क्रांतिकारियों को कैलाश, कीठम और भरतपुर के जंगलों का भी फायदा मिलता था।

आगरा के दिल में बसती हैं भगत सिंह की यादें

डॉ अपर्णा पोद्दार ने बताया कि किराये का कमरा लेकर वे यहां रहे थे, उस जगह का नाम अब भगत सिंह द्वार है। नूरी दरवाजा पर स्थित ये जगह आज भी शहीद भगत सिंह की यादों को संजोए बैठी है। यहां आज भी वो इमारत है, जहां सरदार भगत सिंह ने एक वर्ष का समय बिताया था, लेकिन आज ये इमारत बेहद जर्जर हो चुकी है। इस इमारत के लिए कोई समाज सेवी संगठन, या प्रशासनिक अमले ने कभी कोई कार्य नहीं किया। सांडर्स हत्‍याकांड में 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह को फांसी दी गई थी। 23 मार्च शहीद भगत सिंह की शहादत का दिन है। इसी दिन लाहौर में उन्हें फांसी दी गई थी। नूरी दरवाजा इलाके में ही अंग्रेजी हुकूमत को हिलाने की प्‍लानिंग की गई थी।

ये थे घटनाक्रम

नवंबर, 1928 में ब्रिटिश पुलिस ऑफिसर सांडर्स को मारने के बाद भगत सिंह अज्ञातवास के लिए आगरा आए थे। भगत सिंह ने नूरी दरवाजा स्थित मकान नंबर 1784 को लाला छन्नो मल को ढाई रुपए एडवांस देकर 5 रुपए महीने पर किराए पर लिया था। यहां सभी छात्र बनकर रहे। ताकि किसी को शक न हो। उन्‍होंने आगरा कॉलेज में बीए में दाखिला भी लिया। घर में बम फैक्‍ट्री लगाई गई, जिसकी टेस्टिंग नालबंद नाला और नूरी दरवाजा के पीछे जंगल में होती थी। इसी मकान में बम बनाकर भगत सिंह ने असेम्बली में विस्फोट किया था।

जुलाई, 1930 की 28 और 29 तारीख को सांडर्स मर्डर केस में लाहौर में आगरा के दर्जन भर लोगों ने इसकी गवाही भी दी थी। सांडर्स मर्डर केस में गवाही के दौरान छन्‍नो ने ये बात स्‍वीकारी थी कि उन्‍होंने भगत सिंह को कमरा दिया था। नूरी दरवाजा इलाके में भगत सिंह का एक मंदिर भी बना है।

बम फोड़ने के बाद किया था सरेंडर

8 अप्रैल, 1929 को अंग्रेजों ने सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल असेंबली में पेश किया था। ये बहुत ही दमनकारी कानून थे। इसके विरोध में भगत सिंह ने असेंबली में बम फोड़ा और 'इंकलाब जिंदाबाद' के नारे लगाए। इस काम में बटुकेश्‍वर दत्त भी भगत सिंह के साथ थे। घटना के बाद दोनों ने वहीं सरेंडर भी कर दिया। इसी केस में 23 मार्च 1931 को लाहौर के सेंट्रल जेल में भगत सिंह को फांसी दे दी गई और बटुकेश्‍वर को उम्रकैद की सजा सुनाई गई।  

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