Independence: नेपाल का ‘रंगीला’ ले रहा भारत में दो साल से आजादी की सांस
कीठम स्थित वाइल्डलाइफ SOS के भालू संरक्षण केंद्र में भालू रंगीला नेपाल की सीमा पर तस्करों से कराया था मुक्त।
आगरा, जागरण संवाददाता। दो साल पहले बेड़ियों में कैद था। उसकी मेहनत की कमाई दूसरों की जेब में जाती थी। उनके इशारे पर नाचता था। तब नेपाल की सीमा में था और अब भारत के आंगन में आजाद है। शनिवार को उसने आजादी के दो वर्ष पूरे होने पर जश्न मनाया।
दरसअल, वर्ष 2017 में भारत-नेपाल की सीमा पर तस्कर दो भालू लेकर पहुंचे थे। नेपाल के अधिकारियो ने उन्हें रोक लिया। भालुओं को मुक्त कराकर काठमांडू चिड़ियाघर पहुंचा दिया और तस्करों को सलाखों के पीछे डाल दिया। इसके बाद भारत और नेपाल के अधिकारियों के बीच बातचीत हुई। दोनों देशों की सरकारों के सहयोग से एक भालू को वाइल्डलाइफ एसओएस संस्था हवाले कर दिया। जबकि दूसरी श्रीदेवी नाम की मादा भालू बीमारी से उभर न सकी और चिड़ियाघर में अंतिम सांस ली। वाइल्डलाइफ एसओएस की टीम रंगीला को आगरा लेकर पहुंच गई।
वाइल्डलाइफ एसओएस के वेटरनरी सर्विसेज के उप-निदेशक डॉ. एस इलियाराजा ने कहा कि जब रंगीला पहली बार केंद्र में आया। तो उसके गिरते स्वास्थ्य को सुधाने में कई महीने लगे। वह अभी भी मनोवैज्ञानिक तनाव के संकेत प्रदर्शित करता है। इसको ठीक होने में और समय लेगा। संस्था के सीईओ और सह-संस्थापक कार्तिक सत्यनारायण ने कहा कि भारत में स्लॉथ भालू की आबादी में गिरावट आई है। उन्होंने कहा कि तस्कर चीन की दवाइयों में उपयोग भालुओं के शरीर के अंगों पहुंचाते हैं। भालू के पंजे का सूप और इनके पित्ताशेय की मांग ज्यादा रहती है। संस्था की सचिव व सह-संस्थापक गीता शेषमणि ने बताया कि भारत में नाचने वाले भालू की प्रथा को समाप्त करने और सरकार के साथ साझेदारी में काम करके 628 स्लॉथ भालुओं को बचाया है।