Ambedkar University Agra: दुनिया से रुखसत हो गए आनंद, पीएचडी के 30 साल बाद भी नाम के आगे नहीं लगा 'डाक्‍टर'

आंबेडकर विवि आगरा से सन 1991 में पूरा किया था शोध कार्य। शोध उपाधि के इंतजार में कोरोना काल में हो गई मृत्‍यु। स्थाई लोक अदालत ने जिम्‍मेदार अधिकारियों और कर्मचारियों का वेतन काटकर मृतक की पत्नी को दिए हैं क्षतिपूर्ति करने के आदेश।

By Prateek GuptaEdited By: Publish:Thu, 30 Sep 2021 01:47 PM (IST) Updated:Thu, 30 Sep 2021 01:47 PM (IST)
Ambedkar University Agra: दुनिया से रुखसत हो गए आनंद, पीएचडी के 30 साल बाद भी नाम के आगे नहीं लगा 'डाक्‍टर'
आंबेडकर विवि की लचर कार्यशैली के चलते पीएचडी की उपाधि 30 साल बाद भी नहीं दी गई।

आगरा, प्रभजोत कौर। अपने नाम के आगे डाक्टर की उपाधि लगाने की चाहत में हर साल सैंकड़ों लोग शोध करते हैं, लेकिन सिकंदरा निवासी स्वर्गीय आनंद शंकर शर्मा का यह सपना कभी पूरा नहीं हो पाया। 30 सालों तक अपनी शोध उपाधि के लिए जंग लड़ने वाले आनंद शंकर शर्मा पिछले साल कोरोना में जिंदगी की जंग हार गए। 2017 में उन्होंने स्थाई लोक अदालत की शरण ली और अब न्यायालय ने विश्वविद्यालय पर दो लाख रुपये का जुर्माना कर, भुगतान उनकी पत्नी को देने का आदेश दिया है।

आनंद ने 1990 में विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग की अध्यक्ष रह चुकी डा. प्रतिमा अस्थाना के निर्देशन में इतिहास विषय में पंजीकरण कराया था। उनका विषय था वृंदावन के वैष्णव संप्रदायों का इतिहास। 1991 में उनकी मौखिक परीक्षा हुई, कार्य परिषद ने उन्हें उपाधि अलंकृत कर दी पर उन्हें उपाधि मिली नहीं। उपाधि प्राप्त करने के लिए आनंद ने विश्वविद्यालय के कई चक्कर काटे। हर बार अधिकारी और कर्मचारी उन्हें टालते रहे। जब कहीं से सुनवाई नहीं हुई तो सात जनवरी 2017 में आनंद ने स्थाई लोक अदालत में मानसिक उत्पीड़न होने पर 80 लाख रुपये की मानहानि और उपाधि न मिलने की याचिका दायर की। आनंद ने अपनी याचिका में लिखा है कि पीएचडी की उपाधि समय से मिल जाती तो वे किसी कालेज में नौकरी कर रहे होते, पर ऐसा नहीं हुआ। शोध करने के बाद वे जिंदा रहने तक बेरोजगार ही रहे। आनंद ने कहा कि विश्वविद्यालय ने उनका मानसिक उत्पीड़न किया है। पिछले साल आनंद की मौत हो गई। उनकी पत्नी संगीता अब केस लड़ रही है। न्यायालय ने विश्वविद्यालयसे जवाब मांगा लेकिन विश्वविद्यालय ने जवाब नहीं दिया। इसके बाद स्थाई लोक अदालत की बेंच के अध्यक्ष गोपाल कुलश्रेष्ठ और सदस्य नेत्रपाल सिंह व सोनाली सिंह राठौर ने आदेश दिए कि जिन जिम्मेदारों की वजह से आनंद की उपाधि रूकी रही, उनके वेतन से जुर्माने के तौर पर दो लाख रुपये आनंद की पत्नी को दिए जाएं। अगर 60 दिनों के अंदर जुर्माना नहीं दिया गया तो छह फीसद का अतिरिक्त भार लगेगा।

ऐसी ही है विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली

विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली से आहत होने वाले आनंद शंकर शर्मा पहले इंसान नहीं हैं, इससे पहले एत्मादपुर के विमल किशोर खुद को बेगुनाह साबित करने में ही इस दुनिया से रुखसत हो गए। 2004-05 के बीएड मामले में विमल का नाम आने पर उनकी नौकरी भी गई। उनकी मौत के बाद उनकी पत्नी सीमा ने भी स्थाई लोक अदालत की शरण ली थी। दैनिक जागरण ने सीमा के दर्द को साझा करते हुए विश्वविद्यालय से एक पत्र बीएसए कार्यालय भिजवाया।

मेरी जानकारी में यह मामला आया है, अधिकारियों से वार्ता के बाद न्यायालय के आदेश का पालन करने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।

- प्रो. आलोक राय, कार्यकारी कुलपति

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