आंबेडकर विवि आगरा के कुलपति प्रो. अशोक मित्तल ने ली उच्च न्यायालय की शरण
राज्यपाल के आदेश पर किया गया था कुलपति को कार्य से विरत। पांच अगस्त को दायर की है रिट आरोपों को बताया निराधार। प्रो. मित्तल के अनुसार उन्हें पक्ष रखने का नहीं मिला मौका। उनका कहना है कि उन्होंने कोरोना संक्रमित होने के दौरान कोरोना प्रोटोकाल का पालन किया है।
आगरा, जागरण संवाददाता। डा. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अशोक मित्तल ने कोर्ट की शरण ली है। प्रो. मित्तल ने अपने ऊपर लगे आरोपों का निराधार बताया है। उन्होंने विगत पांच जुलाई को राज्यपाल द्वारा उन्हें कार्य से विरत किए जाने के आदेश के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में रिट दायर की है। अभी प्रो. आलोक राय के पास आंबेडकर विवि के कुलपति पद का दायित्व है।
प्रो. अशोक मित्तल द्वारा पांच अगस्त को दायर रिट में कहा गया है कि उन्हें कार्य विरत करने से पहले उनसे उनका पक्ष नहीं सुना गया। राज्य विश्वविद्यालय एक्ट के सेक्शन 12(13) के अनुसार आरोपों के बाद भी कुलपति को कार्य से विरत नहीं किया जा सकता है, आरोप सिद्ध होने तक वे कुलपति पद पर आसीन रह सकते हैं। कुछ आरोपों के आधार पर उनके खिलाफ कार्यवाही कर दी गई है। उन्होंने अधिवक्ता डा. अरूण कुमार दीक्षित द्वारा लगाए आरोपों को भी सिरे से नकार दिया है। उनका कहना है कि उन्होंने कोरोना संक्रमित होने के दौरान कोरोना प्रोटोकाल का पालन किया है।
उन्होंने 103 अतिथि प्रवक्ताओं की नियुक्ति में नियमों की अनदेखी के आरोप को भी नकारा है। उनके अनुसार उन्होंने यूजीसी के नियमों का पालन किया है। सेल्फ फाइनेंस स्कीम के तहत ही उनका भुगतान किया गया है। अतिथि प्रवक्ताओं की नियुक्ति स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा की गई है। लीगल एडवाइजर के रूप में हरगोविंद अग्रवाल की नियुक्ति पर अपना पक्ष रखते हुए प्रो. मित्तल ने कहा कि हरगोविंद अग्रवाल को छह महीने के अनुबंध पर रखा गया है। इसी तरह के अन्य आरोपों के जवाब भी साक्ष्यों के साथ दिए गए हैं।
आरोपों पर हुई कार्यवाही
दायर रिट में प्रो. मित्तल ने कहा है कि राज्यपाल ने आरोपों के आधार पर अपनी राय बनाई, उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया। न ही उन्हें आरोपों के पत्र ही प्राप्त हुए थे, इसलिए उन्होंने उच्च न्यायालय से न्याय मांगा है।