रखें अपने बजुर्गों का ध्‍यान, कहीं भूलने की बीमारी भुला न दे सांस लेना भी

जीवन का एकाकीपन बना रहा बुजुर्गों को अल्‍जाइमर का शिकार। 40 से 50 वर्ष में भी हो रही घातक बीमारी।

By Prateek KumarEdited By: Publish:Fri, 21 Sep 2018 03:42 PM (IST) Updated:Fri, 21 Sep 2018 03:42 PM (IST)
रखें अपने बजुर्गों का ध्‍यान, कहीं भूलने की बीमारी भुला न दे सांस लेना भी
रखें अपने बजुर्गों का ध्‍यान, कहीं भूलने की बीमारी भुला न दे सांस लेना भी

आगरा: बात करते- करते बात भूल जाना, रास्‍ते में जाते- जाते कहां जाना है यही भूल जाना। यह मसला इतना गंभीर नहीं है जितना सांस लेते- लेते सांस लेना भूल जाना है। हमारे बुजुर्ग ऐसी ही गंभीर हालत से हो सकता है कहीं गुजर न रहे हों। वो अकेलेे हैं, इसलिये एक बात को बार- बार पूछते हैं। इसलिये नहीं कि उनके पास कुछ काम नहीं है या वो समझ नहीं पाते। थोड़ा सोचिये, कहीं आपके अपने सोच की गंभीर बीमारी अल्‍जाइमर्स से पीडि़त तो नहीं है।

याददाश्त कमजोर होना, कहना कुछ चाहते हैं और कह कुछ रहे हैं। बुजुर्ग ऐसा करें तो कहते हैं सठिया गए हैं। मगर, ऐसा नहीं है। यह अल्जाइमर्स बीमारी के लक्षण हैं। औसत आयु बढऩे और एकाकीपन से बीमारी तेजी से बढ़ रही है। विशेषज्ञों के अनुसार उम्र बढऩे के साथ दिमाग में न्यूरोंस पर प्रोटीन जमने लगती है। बदले माहौल में औसत उम्र बढऩे के साथ बुजुर्ग अकेले रह रहे हैं, पढऩे की आदत भी खत्म हो गई है। इससे याददाश्त कमजोर होने के साथ शरीर में शिथिलता हो रही है। यह अल्जाइमर्स के प्रारंभिक लक्षण हैं।

क्‍या कहते हैं मनोचिकित्‍सक

डॉ. यूसी गर्ग के अनुसार पढऩे की आदत कम होती जा रही है, इससे 45 से 50 साल की उम्र में भी अल्जाइमर्स के मरीज मिलने लगे हैं। प्रारंभिक अवस्था में इलाज से यह बेहतर जिंदगी जी सकते हैं। प्रमुख अधीक्षक मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं चिकित्सालय के डॉ. दिनेश राठौर कहते हैं कि 60 साल की उम्र के बाद अल्जाइमर्स की आशंका बढ़ जाती है, इसलिए केस भी बढ़ रहे हैं। विभागाध्यक्ष एसएन मेडिकल कॉलेज डॉ. विशाल सिन्हा बताते हैं कि 60 साल की उम्र के बाद व्यवहार बदलने लगे तो डॉक्टर से परामर्श ले लेना चाहिए। प्रारंभिक अवस्था में इलाज से अल्जाइमर्स के मरीज बेहतर जिंदगी जी सकते हैं।

 क्‍या है अल्‍जाइमर रोग का इतिहास

अल्जाइमर रोग डॉ.अलोइस अल्जाइमर के नाम पर रखा गया है। इतिहास यह बताता है की 1906 ईस्वी में डॉ.अल्जाइमर नें एक महिला के मस्तिष्क के ऊतकों में परिवर्तन देखा जिसके परिणामस्वरूप असामान्य वह महिला मानसिक बीमारी से मर गयी थी। इस रोग में डॉ.अलोइस अल्जाइमर नें यह देखा की स्मृति का चला जाना, भाषा से जुड़ी समस्या,और अप्रत्याशित व्यवहार आदि प्रमुख लक्षण दिखाई दे रहे हैं। उस महिला की मृत्यु के बाद डॉ.अलोइस अल्जाइमर ने उसके दिमाग का परीक्षण किया और यह पाया की उसके दिमाग में कुछ उतकों के टुकडे फंसे हुए हैं।(जिसे अब न्यूरोफिब्रिलिरी कहा जाता है) साथ ही उसके मस्तिष्क में कई परेशानियाँ हैं (जिसे अब अम्लोइड प्लेक कहा जाता है। डॉ.अलोइस अल्जाइमर ने अपने अध्ययन के दौरान यह पाया की इस बीमारी का प्रमुख कारण प्लेक और उतकों का उलझना है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी पता लगाया कि तंत्रिका कोशिकाओं और मस्तिष्क (न्यूरॉन्स) के बीच संपर्क का न होना भी इस रोग का प्रमुख कारण है। डॉक्टर अब भी इस बीमारी में अपने अनुसन्धान कार्यों को गति दे रहे हैं ताकि इस रोग पर नियंत्रण कायम किया जा सके। साथ कोई बेहतर उपाय निकला जा सके।

पहचानें लक्षणों को

इस रोग के प्रारंभिक लक्षणों में से कुछ प्रमुख हैं जैसे- अनिद्रा,चिंता, परेशानी, भटकाव और अवसाद हैं। डॉक्टरों के द्वारा नियमित प्रक्रिया की जांच करने के लिए नैदानिक परीक्षण, स्मृति परीक्षण, सीटी स्कैन और एमआरआई आदि जाँच किये जाते हैं। इसके अलावा स्मृति का खोना, निर्णय से जुड़ी समस्यायें, सवालों का बार-बार दोहराया जाना, मुसीबत से निपटने में परेशानी का सामना करना, रुपयों का बेहतर प्रबंधन न कर पाना। साथ ही अपने सामान्य दैनिक कार्यों को पूरा करने में असफल रहना आदि। इस चरण में मरीजों का अकसर इलाज किया जाना चाहिए और उसका निदान भी प्रस्तुत किया जाना चाहिए। इस बीमारी के मध्य चरण में रोगी, परिवार के सदस्यों की पहचान नहीं कर पता है। साथ ही अपने कपड़ों के सन्दर्भ में अजीबोगरीब हरकत करता है। इसके अलावा वह प्रतिदिन के कार्यों में भुलक्कड़ प्रवृति का संपादन करने लगता है।  सबसे गंभीर अवस्था में रोगियों में संवाद की कमी देखि जाती है। वह पूरी तरह से दूसरों पर निर्भर रहने लगता है।

जरूरी है अपनों का साथ

अल्जाइमर रोगियों को संभालना एक बड़ी चुनौती भरा कार्य है। इस अवस्था में रोगियों का निरंतर नैदानिक परीक्षण किया जाना चाहिए ताकि उनके व्यवहार में परिवर्तन को समझा जा सके। इस अवस्था में रोगियों को उनके दैनिक कार्यों का संचालन करने के लिए मदद,प्यार और देखभाल की बहुत जरूरत होती है। इस हालत में देखभाल करने वाले को रोगी के साथ खासतौर से दोस्ताना व्यवहार करना चाहिए। रोगियों को सक्रिय रखने के लिए उन्हें कुछ शारीरिक व्यायाम करना चाहिए।

संतुलित आहार और नियमित व्यायाम भी है जरूरी

संतुलित आहार के साथ-साथ नियमित व्यायाम भी इस रोग से बचाव के लिए बेहद जरुरी है। इसी कड़ी में, अल्जाइमर पीड़ितों को हमेशा अपने आप को शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, पढ़ाई-लिखाई, गीत-संगीत और मनोरंजनात्मक गतिविधियों में व्यस्त रखने की सलाह डॉक्टर्स द्वारा दी जाती है। इसके साथ-साथ दिमाग पर जोर पड़ना वाला खेल जैसे कि वर्ग पहेली, स्क्रैबल और शतरंज खेलना इसमें फायदेमंद रहता है तो सुबह में योग करना, ध्यान लगाना और घूमना फिरना भी इस रोग के लिए रामबाण के समान होता है।

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