Poisonous Liquor Case: अलीगढ़ जहरीली शराब कांड की आगरा फोरेंसिक लैब में जांच शुरू

Poisonous Liquor Case आगरा फोरेंसिक लैब भेजे गए अलीगढ़ जहरीली शराब कांड में मृत 85 से ज्यादा लोगों का विसरा। फोरेंसिक वैज्ञानिकाें की चार टीमें दो चीजों का कर रही हैं परीक्षण। पहली विसरा में कौन सा जहर पाया गया कौन सा केमिकल मिलाकर तैयार की गई थी शराब।

By Tanu GuptaEdited By: Publish:Sat, 12 Jun 2021 05:48 PM (IST) Updated:Sat, 12 Jun 2021 05:48 PM (IST)
Poisonous Liquor Case: अलीगढ़ जहरीली शराब कांड की आगरा फोरेंसिक लैब में जांच शुरू
फोरेंसिक वैज्ञानिकाें की चार टीमें दो चीजों का कर रही हैं परीक्षण।

आगरा, जागरण संवाददाता। अलीगढ़ के जहरीली शराब कांड में मृत लोगाें के विसरा की आगरा फोरेंसिक लैब में जांच शुरू हो गई है। इस पर वैज्ञानिकों की चार टीमें जांच कर रही हैं। अलीगढ़ जहरीली शराब कांड में वैज्ञानिकों ने अपना परीक्षण दो प्रमुख चीजों पर केंद्रित किया है। पहला मृतकों के विसरा में कौन सा जहर पाया गया, दूसरा शराब में कौन सा केमिकल मिलाया गया था। जिसने इतने लोगों की जान ले ली। जहरीली शराब कांड में 85 से ज्यादा मृतकों का विसरा आगरा लैब में जांच के लिए भेजा गया है। फोरेंसिक वैज्ञानिकों की जांच जहरीली शराब का कारोबार करने वालों के खिलाफ पुख्ता सबूत बनेगी।

तीन चरणों में फोरेंसिक वैज्ञानिक करेंगे जांच

फोरेंसिक वैज्ञानिक जहरीली शराब पीने से मृत लोगों के विसरा की जांच तीन चरणों में करेंगे। इससे कि आरोपितों के खिलाफ वैज्ञानिक साक्ष्य जुटाने के साथ ही शराब पीने से होने वाली मौतों की तह तक पहुंचा जा सके।

पहला चरण: विसरा की स्टीम डिस्टिलेशन जांच से मिलेगा वैज्ञानिक साक्ष्य

जहरीली शराब से मौत होने पर इसमें मिथाइल अल्कोहल मिलाया है कि नहीं, इसे जानने के लिए फोरेंसिक वैज्ञानिक स्टीम डिस्टिलेशन तकनीकी का प्रयोग करते हैं। इसमें जांच के लिए भेजे गए विसरे से मिथाइल, ईथाइल और पानी का पता लगाने के लिए स्टीम डिस्टिलेशन प्रक्रिया से गुजारा जाता है। पानी 100 डिग्री सेल्सियस पर भाप बनता है, इसी तरह ईथाइल अल्कोहल 78 डिग्री सेल्सियस और मिथाइल अल्कोल 64 डिग्री सेल्सियस पर भाप बनता है। स्टीम डिस्टिलेशन की प्रक्रिया में सबसे पहले मिथाइल अल्कोहल मिलता है। वैज्ञानिक 15 से 20 मिलीलीटर पानी व मिथाइल अल्कोहल, ईथाइल अल्कोहल मिश्रण (वैज्ञानिक नाम एजियोट्राप मिक्सचर) इस मिश्रण का परीक्षण करके इसमें मिथाइल अल्कोहल और उसकी मात्रा का पता लगाते हैं।

दूसरा चरण: विसरा परीक्षण में यूरिया की जांच

कच्ची शराब बनाने वाले मिथाइल अल्कोहल के अलावा यूरिया भी मिलाते हैं। शराब में यूरिया मिलाया गया है कि नहीं इसे जानने के लिए फोरेंसिक वैज्ञानिक दूसरे चरण में विसरा में मिलने वाले अपच पदार्थों की जांच करते हैं। परीक्षण के बाद यह पता चल जाता है कि शराब में यूरिया मिलाया गया है कि नहीं।

तीसरा चरण: क्लोरल हाइड्रेड की जांच

कच्ची शराब शराब तैयार करने वाले मिथाइल अल्कोहल, इथाइल अल्कोहल और यूरिया के अलावा तेज नशे के लिए क्लोरल हाइड्रेछड का प्रयोग भी करते हैं। इससे कि नशे की तीव्रता को बढाया जा सके। विसरा परीक्षण के तीसरे चरण में वैज्ञानिक उसमें मिले अपच पदार्थों का परीक्षण करके क्लोरल हाइड्रेड का पता लगाते हैंद्ध

आंखों की रोशनी जाना शराब में मिथाइल अल्कोहल मिलाने का पुख्ता संकेत

जहरीली शराब पीने वाले अधिकांश लोगों की पहले आंखों की रोशनी गई, इसके बाद उनकी जान गई। वैज्ञानिकों के अनुसार आंखाें की रोशनी जाना शराब में मिथाइल अल्कोहल को मिलाने का संकेत है। मिथाइल अल्कोहल मिली शराब के सेवन से सबसे पहले आखों की रोशनी जाती है। इसके बाद आक्सीजन का स्तर से गिरने से उसका सेवन करने वाले को सांस लेने में दिक्कत होती है। उसके शरीर में ्रआक्सीलन की मात्रा का स्तर 70 से 60 तक रह जाता है। इसके चलते जहरीली शराब का सेवन करने वाले की मृत्यु तक हो जाती है। 

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