आगरा में अपनों की बेरुखी से बुझ गई ज्योति, मौत के साथ दफन हो गया किशोरी का राज
कानपुर राजकीय बालिका गृह में आगरा की किशोरी की दौरा पड़ने से मौत। राजकीय शिशु गृह आगरा से वर्ष 2017 में स्थानांतरित की गई थी कानपुर। मानसिक रूप से दिव्यांग किशोरी के स्वजन का नहीं लग सका पता।
आगरा, जागरण संवाददाता। अपनों की बेरूखी और बीमारी से जूझती ज्योति की जिंदगी की लौ हमेशा के लिए बुझ गई।वह कौन थी? कहां की रहने वाली थी? उसे कौन और क्यों इस तरह लावारिस हालत में भटकता हुआ छोड़ गया? ऐसे अनगितन सवाल थे। जो उसकी मौत के साथ ही हमेशा के लिए उसी के साथ दफन हो गए। दस्तावेजों में सिर्फ उसका नाम और पिता का नाम ही दर्ज रह जाएगा। करीब चार साल पहले राजकीय शिशु एवं बाल गृह अागरा से दस साल की बालिका ज्योति को कानपुर के राजकीय बालिका गृह भेजा गया था। वह मानसिक रूप से दिव्यांग थी। किशोरी को मंगलवार की रात को खाना खाने के दौरान दौरा पड़ा।वहां के स्टाफ ने उसे अस्पताल में भर्ती कराया। वहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।
अागरा में रेलवे स्टेशन पर सात साल पहले एक बालिका लावारिस हालत में भटकती मिली थी। बालिका को रेलवे पुलिस ने राजकीय शिशु एवं बाल गृह भेज दिया। स्टाफ द्वारा काफी प्रयास के बावजूद बालिका अपने घर का पता नहीं बता सकी। वह अपना नाम ज्योति और पिता का नाम संतू बताती थी। यहां पर उसका मनोरोग विशेषज्ञ से इलाज भी कराया गया। शिशु गृह में दस साल तक के बच्चे ही रखे जाते हैं। इसलिए ज्योति को दस साल का होने पर सितंबर 2017 में राजकीय बालिका गृह, स्वरूप नगर कानपुर में स्थानांतरित कर दिया गया। वहां भी उसकी काउंसिलिंग करके उसके परिवार का पता जानने का प्रयास किया गया। वह अपना और पिता के नाम के अलावा कुछ नहीं बता सकी।
कानपुर में भी उर्सला अस्पताल के डाक्टर चिरंजीव से उसका इलाज भी चल रहा था।राजकीय बालिका गृह की अधीक्षक ने उर्मिला गुप्ता ने बताया कि मंगलवार की रात को सभी बालिका खाना खा रही थीं। इसी दौरान ज्योति को दौरा पड़ा। उसे हैलट अस्पताल ले गए। वहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। पोस्टमार्टम में किशोरी की मौत का कारण स्पष्ट नहीं होने पर उसका बिसरा सुरक्षित रखा गया है। बालिका गृह की अधीक्षक उर्मिला गुप्ता ने बताया चार साल के दौरान ज्योति से मिलने कोई नहीं आया। किशोरी का भगवतदास घाट पर अंतिम संस्कार किया गया।
दिव्यांग होने के चलते पिंड छुड़ाकर चले गए स्वजन
आशंका है कि बालिका के मानसिक रूप से दिव्यांग होने के चलते स्वजन अपना पिंड छुड़ाने के लिए उसे रेलवे स्टेेशन पर छोड़कर चले गए होंगे। स्वजन इस बात को जानते थे कि पुलिस के पूछने पर भी वह अपने परिवार और घर का पता नहीं बता सकेगी। इसलिए वह बेफिक्र रहे होगे।
राजस्थान की होने की आशंका
ज्योति की कद काठी और उसके बातचीत करने के तरीके से स्टाफ का अनुमान था कि वह राजस्थान के किसी जिले की रहने वाली थी। इसके चलते उन्होंने ज्योति को राजस्थान के शहरों के फोटो उसे दिखाए। इससे कि शायद वह इन फोटो को देखकर अपने शहर को पहचान ले। इससे उसके परिवार को खोजना आसान हो जाएगा। मगर, स्टाफ को इसमें सफलता नहीं मिली।