संस्कारशाला: संयम वह मित्र है, जो ओझल होकर भी मनुष्य की शक्ति में विद्यमान है .फोटो

आगरा जागरण संवाददाता। प्रतिस्पर्धात्मक जीवन में आत्मसंयम की कमी से मनुष्य अपने उद्देश्य प्राप्त नहीं क

By JagranEdited By: Publish:Thu, 29 Oct 2020 08:00 AM (IST) Updated:Thu, 29 Oct 2020 08:00 AM (IST)
संस्कारशाला: संयम वह मित्र है, जो ओझल होकर भी मनुष्य की शक्ति में विद्यमान है .फोटो
संस्कारशाला: संयम वह मित्र है, जो ओझल होकर भी मनुष्य की शक्ति में विद्यमान है .फोटो

आगरा, जागरण संवाददाता। प्रतिस्पर्धात्मक जीवन में आत्मसंयम की कमी से मनुष्य अपने उद्देश्य प्राप्त नहीं कर पाता। हम सदैव अपने व्यक्तित्व के आधार पर दूसरों को आंकते हैं और स्वयं उनके बारे में विचार बना लेते हैं।

मानव जीवन में संयमशीलता की आवश्यकता शाश्वत है। सांसारिक व्यवहार व संबंधों को परिष्कृत व सुसंस्कृत रूप से स्थिर रखने के लिए संयम अत्यंत आवश्यक है। प्रत्येक क्षेत्र व जीवन के प्रत्येक पहलू पर सफलता, विकास व उत्थान की ओर अग्रसर होने के लिए संयमित होना जरूरी है। विश्व के महापुरुषों की जीवनियों का अध्ययन करें, तो पता चलेगा कि उन्होंने जीवन में जो सफलता, उन्नति, श्रेय, महानता, आत्म कल्याण आदि की प्राप्ति की, उनके कारणों में संयमशीलता की प्रधानता है। संयम के पथ पर अग्रसर होकर ही उन्होंने जीवन को महान बनाया। इसमें कोई संदेह नहीं कि संयमशीलता के पथ पर चलकर ही मनुष्य सही रूप से मानव, देवता व जन-जन का प्रिय बनता है, जिसके पीछे चलकर मानव जाति धन्य हो जाती है।

अपनी मानसिक वृत्तियों, बुरी आदतों व वासनाओं पर काबू पाना ही संयमशीलता है, जिससे मनुष्य की शक्तियों का व्यर्थ ही ह्रास न होकर केंद्रीयकरण होने लगता है, जिससे जीवन में एक विशेषता आती है और मनुष्य जीवन में उत्कृष्ट बन जाता है। जैसे हम अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए योग व औषधि का नियमित सेवन करते हैं, उसी प्रकार आत्मसंयम के लिए मन को स्वस्थ रखना आवश्यक है।

एक शिक्षक होने के नाते मैं अपने विद्यार्थियों को प्रतिदिन प्रयास करने की प्रेरणा देता हूं। यदि हम थोड़ा भी आलस करेंगे, तो बुरी आदतें हमें अपना गुलाम बना लेंगी और फिर आदतें बदलना आसान नहीं होता। अपनी एक छोटी सी बुरी आदत व मानसिक विकार पर नियंत्रण कर लेना कितना मुश्किल होता है, यह वही लोग जानते हैं, जो इस पथ पर चले हैं, जो मानसिक विचार, वासनाएं व बुरी आदतें, जितने समय से अपना घर किए होती हैं, वे उतनी ही प्रबल व दुर्दमनीय होती हैं। उन्हें पछाड़ देना साहसी व शूरवीरों का कार्य है।

आत्मसंयम के पथिक को प्रतिदिन आत्म-निरीक्षण करना अतिआवश्यक है। अपने विचारों व कृत्यों का सदैव सूक्ष्म निरीक्षण करते रहें। विचारों व कार्यों में परस्पर घनिष्ठ संबंध होता है, जैसे विचार होंगे, वे ही क्रिया रूप में अवश्य परिणित होंगे। इसलिए बुरी विचारधारा से सदैव बचें। विचारों से किए जाने वाले कृत्यों से दूर रहें। आत्म-निरीक्षण के लिए प्रात: उठते समय व सायंकाल सोते समय दिनभर के कार्य-विचारों का लेखा-जोखा करें। समय विरुद्ध जो कार्य विचार आदि किए, उनके लिए सच्चे हृदय से प्रायश्चित करें, भविष्य में न दोहराने का संकल्प लें। इसी तरह प्रात:काल अपनी पिछली कमियों का ध्यान कर दिनभर के व्यवहार व दिनचर्या की योजना सचेत होकर बनाएं।

संयम साधना में संगति व स्थान काफी महत्वपूर्ण है, दुर्विचार वाले व्यक्तियों व उन स्थानों में जहां असंयमित वातावरण व्याप्त है, संयम साधना में सफलता प्राप्त करना संभव नहीं, क्योंकि इनसे बुरी आदतों, दुर्विचारों व दुष्कृत्यों को और प्रोत्साहन मिलता है, जिसके कारण मनुष्य अपने पवित्र लक्ष्य में विफल हो जाता है। कभी-कभी संयोग से अपने इष्ट मित्रों के प्रभाव या स्वच्छ व सात्विक वातावरण में रहकर व महापुरुषों के साथ से मनुष्य बड़ी-बड़ी खराब आदतों व दुर्विचारों को त्याग देता है और जीवन में काफी उन्नति पाता है। अत: संयमशीलता की ओर अग्रसर होने के लिए विपरीत संगति, स्थान, वातावरण का त्याग आवश्यक है।

धैर्य और साहस के साथ इस ओर निरंतर प्रयत्न करने पर संयम साधना अवश्य पूर्ण होती है और मनुष्य अपने लक्ष्य में सफल होता है। जल्दबाजी व अधीरता से लक्ष्य तक पहुंचना प्राय: असंभव होता है। याद रहे हम जिस समाज में रहते हैं, उसे आत्म-संयमित बनाने के लिए प्रेरित करना, हम सभी का कर्तव्य है। महापुरुषों ने कहा है कि तुम जैसा समाज चाहते हो, पहले तुम्हें वैसा बनना होगा, तभी समाज में बदलाव आएगा। सैयद अली हैदर रिजवी, प्रधानाचार्य, दी इंटरनेशनल स्कूल आफ आगरा।

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