ताज, किला बनाने वालों की मिट रही पहचान
आगरा: बुलंद मुगलिया इमारतों को बनवाने वालों की दास्तान इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखी हुई है।
आगरा: बुलंद मुगलिया इमारतों को बनवाने वालों की दास्तान इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिख चुकी हैं, लेकिन इन्हें बनाने वालों की निशानी तो सिर्फ पत्थरों तक सिमटी हुई है। वक्त की मार से लगातार पत्थरों के घिसने और उनको बदलने से इमारत के लिए खून-पसीना बहाने वालों के चिह्न भी गायब होते जा रहे हैं।
आगरा में तीन विश्वदाय स्मारक ताजमहल, आगरा किला और फतेहपुर सीकरी हैं। इनके साथ यहां सिकंदरा, एत्माद्दौला, मेहताब बाग, रामबाग, चीनी का रोजा, मरियम टांब समेत अन्य स्मारक हैं। दुनिया भर के लिए आकर्षण ताज 1632 से 1648 के बीच 16 वर्षो में बनकर तैयार हुआ था। जिन मजदूरों ने इसे बनाया उन्होंने अपने दलों और क्षेत्रों के चिह्न रेड सैंड स्टोन और सफेद संगमरमर पर छोड़ दिये। इन्हें मैसन मार्क कहा जाता है। स्मारक में जगह-जगह इन्हें देखा जा सकता है। चमेली फर्श के साथ यमुना किनारा की तरफ स्थित दीवार, मुख्य मकबरे के पत्थरों पर भी ये चिह्न हैं। मगर समय के साथ पर्यटकों के चलने से यह चिह्न घिस रहे हैं। पत्थर में लोनी लगने से भी ऐसा हो रहा है। ताजमहल में चमेली फर्श पर कई जगह से मैसन मार्क मिट चुके हैं। ऐसी स्थिति आगरा किला व फतेहपुर सीकरी में भी है। जबकि पूर्व में अधीक्षण पुरातत्वविद डॉ. डी. दयालन ने ताज में मैसन मार्क की पहचान कर उन्हें अपनी किताब 'ताजमहल एंड इट्स कंजर्वेशन' में भी जगह दी थी।
ताज में किया बचाने का प्रयास
एएसआइ ने इस साल की शुरुआत में ताज में चमेली फर्श पर खराब हुए पत्थरों को बदलवाने का काम किया था। तब विभाग ने यह प्रयास किया कि जो पत्थर अधिक खराब हैं, केवल उन्हें ही बदला जाए। मैसन मार्क वाले पत्थरों को तब छोड़ दिया गया था।