पहले मांगते थे भीख, अब दूसरों को दे रहे सीख

झोंपड़ी में रहने वाले शेरअली खान को पढ़ाई के साथ डांसिग में मिल चुके कई पुरस्कार सात वर्ष से शिक्षा से जुड़े तो छोड़ दिया भीख मांगना अब चौराहों पर जाकर बचों को करते हैं प्रेरित

By JagranEdited By: Publish:Thu, 24 Jun 2021 11:30 PM (IST) Updated:Thu, 24 Jun 2021 11:30 PM (IST)
पहले मांगते थे भीख, अब दूसरों को दे रहे सीख
पहले मांगते थे भीख, अब दूसरों को दे रहे सीख

आगरा,जागरण संवाददाता। रत्नमुनि जैन इंटर कालेज में 10वीं कक्षा में पढ़ने वाला शेर अली खान चौराहों पर भीख मांगता था। सात बरस पहले शिक्षा से जुड़ाव हुआ तो जिंदगी बदल गई। पढ़ाई के साथ डांसिंग में भी कई पुरस्कार हासिल किए। उसकी तरह ही कई और उसके साथियों की भी जिंदगी बदल चुकी है। आसमान में ऊंची उड़ान के सपने देख रहे ये सभी बच्चे अब दूसरे बच्चों को भी चौराहों पर जाकर भीख न मांगने की सीख देते हैं।

पंचकुइयां में डीआइओएस कार्यालय के पीछे खाली मैदान में झोंपड़ियों में करीब एक दशक से फैजाबाद के रुदौली के करीब 50 परिवार रहते हैं। सभी परिवारों में सौ से अधिक बच्चे हैं। पहले चौराहों पर भीख मांगकर प्रत्येक बच्चा दिनभर में 50 से सौ रुपये तक कमाता था। इनमें से कुछ रुपये वे नशे में उड़ा देते थे।

वर्ष 2014 में महफूज संस्था के नरेश पारस ने इस बस्ती में जाकर मां-बाप को शिक्षा का महत्व बताया। 56 बच्चों के प्रवेश डायट परिसर स्थित प्राथमिक विद्यालय में कराए। उम्र के हिसाब से कुछ के प्रवेश दूसरी और तीसरी कक्षा में भी हो गए। तब से इन बच्चों की जिदगी में बदलाव शुरू हो गया। इन्हीं में से 17 वर्षीय शेर अली खान की पढ़ाई के साथ-साथ डांसिग में भी विशेष रुचि है। दिल्ली में बाल मेला, ताज महोत्सव व अन्य आयोजनों में स्टेज पर प्रस्तुति दे चुका है। उसे स्कूल व आयोजकों की ओर से प्रशस्ति पत्र व ट्राफी भी मिली हैं। उसने इन्हें अपनी झोंपड़ी में सजाकर रखा है। रखने को जगह न होने से कुछ ट्राफी उसकी स्कूल में ही रखी हैं। शेर अली खान कहता है कि अब वह भीख नहीं मांग सकता। वह चौराहों पर जाकर भीख मांगने वाले बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित करता है। अपनी नजीर देता है। इसी तरह बस्ती में रहने वाला दानिश नौवीं कक्षा में पढ़ रहा है। वह पढ़ाई के साथ डांस और एक्टिग में रुचि रखता है। कई शार्ट फिल्मों में भाग ले चुका है। दानिश भी शेर अली खान के साथ चौराहों पर जाता है। यहीं का आशिक अभी छठवीं कक्षा में है, पढ़ाई के साथ-साथ गाना गाता है। बस्ती में रहने वाली करीना दिल्ली में बाल मेले में माडलिग कर चुकी है। निर्जला भी उसके साथ पढ़ रही है। दोनों पढ़कर शिक्षक बनना चाहती हैं। अपने समुदाय के बच्चों को शिक्षित करना चाहती हैं।

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ऐसे चलता है परिवार का खर्च

दानिश और शेर अली खान ने बताया कि बस्ती के अधिकांश लोग दुकानों के सामने नींबू-मिर्च लगाने का काम करते हैं। सभी ने इलाके बांट रखे हैं। मंडी से नींबू-मिर्च लाते हैं और बाजार से धागा। परिवार के सभी सदस्य मिलकर नींबू और मिर्च धागे में पिरो लेते हैं। शनिवार को स्कूल की छुट्टी कर सुबह चार बजे से ही वे दुकानों के सामने नींबू मिर्च लगाना शुरू कर देते हैं। दोपहर 12 बजे तक वे सभी से पांच-पांच रुपये लेकर घर आ जाते हैं। इस तरह एक सप्ताह में वे 1500 रुपये तक कमा लेते हैं। इसी से परिवार का खर्च चलता है।

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