Corruption: मुख्यालय हुआ गंभीर, तो झटपट हुई जांच और कार्रवाई, कई सवाल अब भी बाकी

Corruption कोरोना काल में जांच बंद फिर भी प्राइवेट गाड़ी से जांच करने गए अधिकारी। मुख्यालय ने किया दूसरे जिलों में संबद्ध कुछ सवाल अब भी बाकी। कोरोना संक्रमण के कारण किसी भी तरह की विभागीय जांच पर शासन स्तर से रोक है।

By Tanu GuptaEdited By: Publish:Fri, 14 May 2021 01:22 PM (IST) Updated:Fri, 14 May 2021 01:22 PM (IST)
Corruption: मुख्यालय हुआ गंभीर, तो झटपट हुई जांच और कार्रवाई, कई सवाल अब भी बाकी
दोनों आरोपित अधिकारियों व आरक्षी को जिले से हटाकर दूसरे जिलों में संबद्ध कर दिया है।

आगरा, जागरण संवाददाता। लखनऊ से लौटते मथुरा के चांदी कारोबारी ने 43 लाख रुपये वाणिज्य कर अधिकारियों द्वारा हड़पने की शिकायत वाणिज्य कर मुख्यालय में की थी। विभागीय जांच में आरोप सिद्ध होने पर मुख्यालय ने दोनों आरोपित अधिकारियों व आरक्षी को जिले से हटाकर दूसरे जिलों में संबद्ध कर दिया है।

वाणिज्य कर विभाग के एडीशनल कमिश्नर ग्रेड वन एके सिंह ने बताया कि मुख्यालय को मामले की शिकायत मिली थी, जिसकी जांच स्थानीय स्तर पर दो ज्वाइंट कमिश्नर से कराई गई। इसमें असिस्टेंट कमिश्नर अजय कुमार, वाणिज्य कर अधिकारी शैलेंद्र कुमार, आरक्षी संजीव कुमार ने बयान दिया कि वह गुप्त सूचना पर प्राइवेट गाड़ी से जांच करने गए थे। हालांकि मथुरा के चांदी कारोबारी से 43 लाख रुपये लेने की बात उन्होंने नहीं स्वीकारी। स्थानीय जांच करके रिपोर्ट शासन को भेज दी गई, जिसके आधार पर मुख्यालय ने असिस्टेंट कमिश्नर अजय कुमार को मिर्जापुर, वाणिज्य कर अधिकारी शैलेंद्र कुमार को बांदा और आरक्षी संजीव कुमार मुख्यालय संबद्ध किया गया है।

सचल दल में थे तैनात

असिस्टेंट कमिश्नर अजय कुमार वाणिज्य कर विभाग के सचल दल सात में, जबकि वाणिज्य कर अधिकारी शैलेंद्र कुमार यूनिट छह में तैनात थे। आरक्षी भी सचल दल में ही तैनात थे। हालांकि आरोपित आरक्षी ने बयान दिया है कि उसने पहले इस तरह जाने से मना किया, तो उक्त अधिकारियों ने ज्वाइंट कमिश्नर स्तर के अधिकारी से अनुमति लेने की बात कही थी, जिसके बाद वह जाने को राजी हुआ।

बंद है जांच

कोरोना संक्रमण के कारण किसी भी तरह की विभागीय जांच पर शासन स्तर से रोक है। सिर्फ गुप्त सूचना पर विभागीय उच्चाधिकारियों से अनुमति लेकर जांच संभव है। इसके बाद भी असिस्टेंट कमिश्नर और वाणिज्य कर अधिकारी का जांच करने प्राइवेट कार से जाना, व्यापारी के पास से माल न मिलने पर भी उसे विभागीय कार्यालय तक लाना, यह कुछ सवाल है, जो उक्त अधिकारियों की मंशा को गलत साबित कर रहे हैं।

जांच पर उठी उंगलियां

विभागीय जांच में दोनों अधिकारियों को दोषी मान रिपोर्ट मुख्यालय भेज दी गई। लेकिन आरक्षी और दोनों अधिकारियों ने अपने बयान में एक अधिकारी से अनुमति लेकर जांच को जाने की बात कही। विभाग में उनकी भूमिका को लेकर भी चर्चा है कि जिस अधिकारी का नाम संदिग्ध के रूप से सामने आया, उनसे पूछताछ तो दूर जांच टीम में शामिल कर खुद ही क्लीन चिट दे दी।

पहला नहीं है मामला

दो साल पहले रावतपाड़ा में एक पान मसाला व्यापारी से डिप्टी कमिश्नर स्तर के सचल दल अधिकारी द्वारा 50 लाख रुपये छीनने का मामला सामने आया था। उसके उछलने पर अधिकारी ने व्यापारी से ली गई रकम आयकर विभाग को सौंपकर अपनी गर्दन बचाई थी।

फर्जी फार्म मामले में की खानापूर्ति

कमला नगर में वैट के फर्जी फार्म छापने और बेचने का रैकेट पकड़ा गया था। जांच में दर्जनों व्यापारियों, कारोबारियों और फर्मों के नाम भी मिले, मामला करोड़ों का था, लेकिन विभागीय जांच के नाम पर खेल हो गया। बाद में जांच मुख्यालय ट्रांसफर हो गई।

वहीं 21 फर्जी फर्मों द्वारा 100 करोड़ से ज्यादा की इनपुट टैक्स क्रेडिट (आइटीसी) हड़पने के मामले में ठोस सुबूत होने के बाद भी लचर विभागीय कार्रवाई के चलते आरोपित खुले घूम रहे हैं। 

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